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Showing posts from May, 2023

हरेराम सिंह

युवा कवि हरेराम सिंह का कविता संग्रह ' रात गहरा गई है !  ’ कुछ समय पूर्व मुझे प्रियवर सुमन कुमार सिंह जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ ।  इसका प्रकाशन 2019 में ही हुआ था लेकिन तब से हरेराम जी से भेंट नहीं हुई है । यह पुस्तक भी वे मेरी अनुपस्थिति में ही सुमन जी को दे गए थे । यह उनका संभवतः पहला ही संग्रह है जिसके कारण इसमें उनके प्रारंभिक दौर की कुल 141 रचनाएं शामिल हैं । इसमें प्रकृति है ,परिवार है , गांव -समाज है , सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश है और कई आदरणीय लोगों के प्रति सम्मान और श्रद्धा से ओतप्रोत भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति है । अपनी एक रचना में उन्होंने मुझे भी सादर स्मरण किया है। -नीरज सिंह

डॉ.हरेराम सिंह को मिला कविवर पोद्दार रामावतार 'अरुण' सम्मान

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डॉ.हरेराम सिंह को मिला कविवर पोद्दार रामावतार 'अरुण' सम्मान .........  डॉ.हरेराम सिंह को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन-पटना ने हिन्दी भाषा एवं साहित्य की उन्नति में मूल्यवान सेवाओं के लिए , सम्मेलन के 42 वें महाधिवेशन में " कविवर पोद्दार रामावतार 'अरुण' सम्मान से विभूषित किया . यह सम्मान अध्यक्ष बिहार विधान सभा माननीय श्री अवध बिहारी चौधरी  व बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ.अनिल सुलभ के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया. इस मौके पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पदाधिकारियों सहित जाने-माने साहित्यकारों, हिन्दी प्रगति समिति अध्यक्ष  व बिहार गीत के रचयिता सत्यनाराण जी, पूर्वकुलपति मंडल विश्वविद्याल मधेपुरा डॉ.अमरनाथ सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.सीपी ठाकुर, अतिथि प्रोफेसर केंद्रीय वि.वि.ओडिसा डॉ.जंगबहादुर पाण्डेय मौजूद थे। बताते चले कि डॉ.हरेराम सिंह तेरह वर्ष की उम्र से लगातार लिखते आ रहे हैं और अबतक चालीस पुस्तकें लिख चुकें हैं। इनकी महत्वपूर्ण पुस्तकों में " हाशिए का चाँद" , "रात गहरा गई" है!, "मेरे गीत याद आयेंगे&q

हाल-ए-कुशवाह

कुशवाहा समाज राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश का वंशज है, इसीलिए इन्हें कुशवंशी भी कहते हैं। राम और बुद्ध दोनों इक्ष्वाकु वंश के थे। एक समय में अफ्रीका भी कुश के अधिन था, ऐसा हिन्दी के प्रख्यात लेखक आचार्य चतुरसेन ने लिखा है। इनका इतिहास ज्ञान राहुल सांकृत्यायन से भी ज्यादा और विकसित था। ' बोल्गा से गंगा' ब्राह्मणों की बड़वरगी में लिखा गया उपन्यास है। राहुल जी को राम से बैर थी, चूँकि वे ब्राह्मण थे। राम आज भी और कल भी समाज के एक आदर्श थे। उनके बिना भारत अधूरा है। कुशवाहा को प्राचीन जाति है, कोइरी ब्रीटिश काल के पूर्व शायद ही कोई कहता था, सब कुशवंशी कहते थे। राजस्थान में डांगी या डड़ोत कछवाहा बिहार में दांगी कहे गए, सुकियार शाक्य का अपभ्रंष है। बुद्ध राम के ही वंशज थे। कुशीनगर ( कुश द्वारा बसाई नगरी) को उन्होंने अपने पूर्वजों की नगरी बतायी है।  कई विदेशी जातियों और अंबेदकर धर्म(नव बौद्ध) मानने वाले, जो क्रमश: शक-हूड के वंशज हैं और महार-चमार जाति के हैं, कुशवाहा में 'हीन भावना' भरने के लिए उन्हें राम के विरुद्ध खड़ा कर रहे हैं, ताकि कुशवाहा की स्थिति महार-चमार से भी निम्न हो जाए,