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Showing posts from June, 2020

फ्रीडम फाइटर रामधारी सिंह

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सामाजिक क्रांति के योद्धा फ्रीडम फाइटर रामधारी सिंह एवं रोहतास की भूमि  ................................ ....................डॉ.हरेराम सिंह.. समाज में कई तथ्य ऐसे हैं जिसे बहुत ही चालाकी से छुपा दिया गया है ताकि ओबीसी का मनोबल बढ़े नहीं ,ऐसा बहुत कुछ ब्रिटिश काल के समय और उसके बाद हुआ है ।डॉ ललन प्रसाद सिंह की मानें तो भारत की ऐसी बहुत सी जातियां हैं जो प्राचीन काल और मध्य काल में शासक रही हैं और आज वह सामाजिक आर्थिक या राजनीतिक स्तर पर पिछड़ गई हैं। कुशवाहा ,यादव, कुर्मी ,लोधी ,बिंद आदि कई जातियां बहुत ही मजबूत स्थिति में रहे हैं इतिहास में; पर जमीन पर अंग्रेजों के कब्जे और उनके हाथों से राजपूत व भूमिहारों और कहीं ब्राह्मणों के हाथों में जमीनों के खिसकने और सत्ता में इनके आने के बाद -बहुत से प्रमुख जातियां हाशिए पर चली गईं। बिहार के पिछड़ों में खासकर रोहतास के बहुतों के पास जमीनें थीं और यह जमीनें कई राजनीतिक कारणों से उनके हाथों से निकल गए, फिर भी पिछड़े समाज के लोगों ने हिम्मत नहीं हारी ।और लगातार संघर्ष कर रहे हैं ।इनके संघर्ष और शौर्य की गाथा को लिखने की जरूरत है।इतिहासकार जेम्स क

कुशवाहा सुमित्रा देवी कि सुशील बहू मीरा कुमार

कुशवाहा आगे आओ  .......... बिहार की पहली महिला कैबीनेट मंत्री कुशवाहा समाज से थीं। नाम था सुमित्रा देवी।बहुत ही सुशील व प्रतिभासंपन्न महिला।कुशवाहा समाज की राजनीतिक ताकत।पर,दुर्भाग्य कि इन्हें बहुत कम लोग जानते हैं-कुशवाहा समाज को,पर इनकी बहू यानी कुशवाहा  समाज की बहू मीरा कुमार जी(जगजीवन राम जी की पुत्री व पूर्व लोकसभा स्पीकर) को लगभग सभी लोग जान रहे हैं ।इनके पति मंजुल कुमार जी कुशवाहा समाज से हैं। सुंदर जोड़ी मंजुल कुमार व मीरा कुमार    ने एक सुंदर व सभ्य बालक को जन्म दिए जो कुशवाहा समाज के हीरा हैं,नाम है-अंशुल अभिजीत।         सुमित्रा जी के दूसरे लड़के राजशेखर जी कुशवाहा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।कुशवाहा समाज चाह रहा है कि कुशवाहा सुमित्रा देवी के दोनों पुत्र मंजुल कुमार व राजशेखर जी व पोते अंशुल अभिजीत जी बिहार व देश के कुशवाहा समाज का प्रतिनित्व करें। **जय कुश**जय कुशवाहा क्षत्रिय**

शार्दूल कुशवंशी की भोजपुरी कविताएँ

शार्दूल कुशवंशी की भोजपुरी कविताएँ ........ बुधुआ ....... जिनगी भर बुधुआ पाथते रह गइल खपड़ा-नरिया, तबो न छवाइल ओकर घर हो, फूस के फूसे रह गइल, चमकल ना दीवाल,अउरी फरस हो, जाति के कुम्हार रहे उ,घड़ा भी उ पारत रहे, गांव के पंडित जी के घरे,फिरिये में पहुंचावत रहे, ओकर पसंद ना रहे ,ई काम  आपन मेहरी से बतियावत रहे, पर ,डर रहे कि कहीं गांव से उ निकालल न जाओ, काहे कि ओकर आपन जमीन ना रहे, ई सोच-सोच उ आपन के कोसत रहे, विधना के गरियावत रहे। .... बाँस ..... बाँस के कोठी में भूआ फूटल, कि सगरे बात फैल गइल, कोयरी-कुरमियन के कमाई पे  टिकल बा जान, ई काहे बोललस बात, बबुआनन के मुहल्ला में शोर मच गइल, गाँव में हो गइल ताना-तनी,बैक्वर्ड-फारवड के बात भइल, कोईरी-कुम्हार,अहिर-चमार सब एक भइले, तिवारी के फाटल कपार, अब एहनी के उलझावल जाव, नाहीं त हमनी के चल जाई राज, मिसिरा जी समझईले रात के, बबुआन टोली में बात, तबे एगो लइका उठके जोर से बोललस, मार ओहनी के लात, यह प सिगासन सिंह उठले,बोलले खबरदार! तोहनी के बइठले खाय के आदत कब जाई? अउर उल्टा बोले हजार, पंडित जी के हिगरा के बोलले, उ बांस के कोठी में बांस जनमल बाड़े,तू ह

धूप ही धूप

जिंदगी छांव खोजती है,पर मिलती कहां है वह और जिंदगी गूजर जाती है ऐसे ही। लोग पूछते हैं हमसे कि क्या पाया जिंदगी में? मैं जवाब देता हूं-धूप ही धूप! वे यह सुन थोड़ा गंभीर होते हैं और थोड़ा मुस्कुराते हैं और धीरे से पर हां में गर्दन झुकाते हुए कहते हैं ठीक कहते हैं भाई मेरे और मैं भी मुस्कुरा देता हूँ एक हाथ थोड़ा उपर कर कि आज धूप बहुत कड़ी है, पर ,कड़ी होने से क्या? +++डॉ.हरेराम सिंह+++

मंडल आयोग और ओबीसी साहित्य

ओबीसी की समस्याओं और उपलब्धियों को रेखांकित करना प्रत्येक ओबीसी का धर्म है।ओबीसी भारतीय समाज का वैज्ञानिक कलासीफिकेशन है,अतएव ऐसा साहित्य जो इस क्लाफीकेशन को संपूर्णता में प्रतिबिंबित करता है,वह ओबीसी साहित्य ही है। देश भर में ओबीसी लेखकों की कमी नहीं है और न ही उनके द्वारा रचित साहित्य की कमी है,बस जरूरत है यह बताने की कि फलां ओबीसी लेखक हैं। अगर ओबीसी लेखक संगठन बनता है,तो ओबीसी लेखक और उनका साहित्य स्वत: स्पष्ट हो जाएगा,लोलो-पोपो या कनफ्यूजन नाम की कोई बात रह ही नहीं जाएगी। मतलब,ओबीसी लोगों के लिए ,ओबीसी द्वारा लिखा गया साहित्य ही ओबीसी साहित्य है।ओबीसी पर शोध करने के लिए सभी फ्री हैं।फिलहार सीडी सिंह की पत्रिका "पहचान" ओबीसी साहित्य को प्रमुखता से छाप रही है। कौन प्रयासरत हैं ,की जगह सभी ओबीसी लेखक प्रयासरत हो जाएं,तो कोई किसी का मुंह ताकने वाली बात ही नहीं रह जाएगी। पर,दूसरे के द्वारा लिखा साहित्य ओबीसी साहित्य होगा कि नहीं यह फ्यूचर बताएगा,कारण कि ओबीसी के मिजाज को गैरों द्वारा लिखा ओबीसी साहित्य कितना ताकत दे रहा है,यह तो पूरी ओबीसी बिरादरी व ओबीसी के मान्य एक्सपर्ट बन