फ्रीडम फाइटर रामधारी सिंह

सामाजिक क्रांति के योद्धा फ्रीडम फाइटर रामधारी सिंह एवं रोहतास की भूमि 
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....................डॉ.हरेराम सिंह..

समाज में कई तथ्य ऐसे हैं जिसे बहुत ही चालाकी से छुपा दिया गया है ताकि ओबीसी का मनोबल बढ़े नहीं ,ऐसा बहुत कुछ ब्रिटिश काल के समय और उसके बाद हुआ है ।डॉ ललन प्रसाद सिंह की मानें तो भारत की ऐसी बहुत सी जातियां हैं जो प्राचीन काल और मध्य काल में शासक रही हैं और आज वह सामाजिक आर्थिक या राजनीतिक स्तर पर पिछड़ गई हैं। कुशवाहा ,यादव, कुर्मी ,लोधी ,बिंद आदि कई जातियां बहुत ही मजबूत स्थिति में रहे हैं इतिहास में; पर जमीन पर अंग्रेजों के कब्जे और उनके हाथों से राजपूत व भूमिहारों और कहीं ब्राह्मणों के हाथों में जमीनों के खिसकने और सत्ता में इनके आने के बाद -बहुत से प्रमुख जातियां हाशिए पर चली गईं। बिहार के पिछड़ों में खासकर रोहतास के बहुतों के पास जमीनें थीं और यह जमीनें कई राजनीतिक कारणों से उनके हाथों से निकल गए, फिर भी पिछड़े समाज के लोगों ने हिम्मत नहीं हारी ।और लगातार संघर्ष कर रहे हैं ।इनके संघर्ष और शौर्य की गाथा को लिखने की जरूरत है।इतिहासकार जेम्स कर्नल टॉड ने लिखा है कि रोहतास गढ़ का निर्माण कुशवाहा ने करवाया है और इसी रोहतासगढ़ पर ओबीसी के बड़े साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने' ममता 'नाम की चर्चित कहानी लिखी है ।इसी रोहतास जिले के शिवसागर थाना के कोनार गांव के रामधारी सिंह जी थे जो अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन गए ;कारण कि उस इलाके में पहलवानी, घुड़सवारी और तलवारबाजी के लिए ख्यात थे और अंग्रेजों की नजर में कुख्यात थे ।कारण स्पष्ट है- ब्रिटिश हुकूमत फूटी आंख भी  रामधारी सिंह को नहीं सुहाती थी और वे 1942 ईस्वी के आंदोलन में सासाराम के पास कुम्हऊ रेलवे (ब्रिटिश काल में)स्टेशन को तोड़फोड़ करने और रेल की पटरियों को क्षतिग्रस्त करने के आरोप में बंदी बना लिए गए थे और इसके बाद उन्हें सासाराम मंडल कारा में बंद कर दिया गया, इसके बाद वे पटना जेल भी ले जाए गए ।इतना ही नहीं दानापुर छावनी से बक्सर आने वाली ट्रेन के परिचालन को बाधित करने एवं क्षति पहुंचाने के जुर्म में इन्हें अंग्रेजों द्वारा बहुत पीटा गया ,फिर भी रामधारी सिंह ना जाने किस लोहे के बने हुए थे कि बार-बार पिटाई व जेल जाने के बावजूद भी अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने से बाज नहीं आते थे। इनके साथियों में खड़ारी के गुलठी  सिंह एवं सासाराम के राजाराम कंसेरा थे ।रामधारी सिंह बिहार की पहली कैबिनेट मंत्री सुमित्रा देवी के साथ भी मिलकर गांधी जी द्वारा छेड़ा गया असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया ।इससे स्पष्ट है कि रामधारी सिंह ने अपने इलाके व मातृभूमि की रक्षा के लिए कभी अपनी चिंता न की,जबकि वे  65 बीघे जमीन के काश्तकार थे और उस जमाने में सातवीं बोर्ड पास थे।शायद इसी कारण उस जमाने के सामंतों के मन में इनके प्रति घृणा उत्पन्न हो गई क्योंकि इनकी शोहरत  दूर-दूर तक फैल गई थी ;उन्हें सामाजिक जकड़बंदी तनिक भी पसंद नहीं थी ,जबकि ये स्वयं ही कुशवंशी परिवार में जन्मे थे ,इनके पिता जी का नाम कन्हैया सिंह महतो था और माताजी का नाम राम देई था इनकी पत्नी शिव मुन्नी देवी ढाई किलो सुबहऔर ढाई किलो शाम दूध आड़े पर का बैठाया, पीने को देतीं।रामधारी सिंह सांवले रंग के गबरु जवान थे ,लंबाई साढ़े पांच फुट थी। इन्होंने पर्यावरण सुरक्षा के दृष्टिकोण से  500 से अधिक पेड़ लगाए।इतना ही नहीं अपने इलाके में चली आ रही बरसों पुरानी कुप्रथा का अंत भी इन्होंने किया ।वह प्रथा थी पिछड़े व दलित समाज के लोग गली में, सामंतों के दरवाजे के आगे से छाते ताने गुजर नहीं सकते थे, और ना ही घोड़े की सवारी कर सकते थे।पर रामधारी सिंह जब घोड़े पर निकलते तो सामंतों के सीने घोड़े के टाप की आवाज से दरकने लग जाते ।
कई बार उन लोगों ने इन्हें मजा चखाने की सोची पर चखा न सके;कारण कि जो खुद अंग्रेजों को मजे चखाएँ हों,उनको कोई भला क्या मजा चखा पाएगा? इसलिए शिवसागर इलाके के लोग इन्हें आजादी बाद 'सामाजिक क्रांति के योद्धा' के तौर पर भी रेखांकित करने लगे थे। रामधारी सिंह शिक्षा के महत्व को समझते थे इन्होंने अपने आसपास के गांवों में पिछड़े और दलितों को शिक्षा के प्रति जागरुक किया और स्वयं अपने पुत्रों को रांची और अमरावती भेजकर उच्च शिक्षा दिलवाने की व्यवस्था की। इनके पुत्र डॉ चंद्रमा सिंह जाने-माने साहित्यकार और हिंदी के प्रोफेसर हैं और पोती डॉ अमृता धीर जानी-मानी प्रतिष्ठित महिला व प्रधानाध्यापिका हैं और इनके भीतर अपने दादाजी वाली छवि स्पष्ट दिखती है।
 ऐसे तो रोहतास जिले में और भी कई वीर सपूतों को जन्म दिया है खासकर पिछड़े समाज से ,उनमें से से सेनुवारगढ़ के क्रांतिवीर फौजदार सिंह कुशवंशी,संझौली के झड़ी महतो,राम दयाल सिंह, काराकाट के करूप के वीर बालक लाल मोहर सिंह और नासरीगंज प्रखंड के यादव कुशवाहा वीर थे ।नीलहो आंदोलन की शुरुआत ऐसे तो पश्चिम चंपारण से मानी जाती है; पर नासरीगंज के पास बलिया- कोठी में अंग्रेजों के विरुद्ध यादव, कुशवाहा ,कुर्मी किसानों ने नील की खेती करने से मना कर दिया था, इसमें काराकाट प्रखंड के गम्हरिया के भी कई कुशवाहा व  यादव किसान थे ।इस पर लंबे शोध की जरुरत है। पर ,कुछ लोगों का कहना है कि इस आंदोलन को शांत करने के लिए अंग्रेजों ने गरीब किसानों को जमीन देकर उनमें  फूट पैदा कर दी और नील की खेती होती रही। इसके बावजूद भी संझौली ,काराकाट,सासाराम ,तिलौथू के इलाके के और कई नाम है जो पिछले समाज से है और जिन पर अंग्रेजों के खिलाफ साजिश करने के आरोप लगे थे।
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संपर्क :ग्राम+ पोस्ट- करुप इंग्लिश ,भाया :गोड़ारी, जिला: रोहतास (बिहार). पिन नंबर 802214 ,मोबाइल 82983 96681

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