वह लड़की
नींद में पढ़ रहा हूँ... एक लड़की मुझे कभी प्यार , कभी गुस्से से पढ़ा रही है- 1. नर्मल रहिए... कुछ नहीं होगा । 2. प्रैक्टीकल बनिए... 3. इतना भावुकता अच्छी नहीं 4. रिलैक्स... रिलैक्स... 5. सेलफिस बनिए.... 6. पटना है... आरा नहीं 7. प्रेम में तड़पिएगा... अचानक DP गायब । मैं अपनी माँ को ढूँढ़ता हूँ। माँ ... वह लड़की गायब हो गई... वह पूछती हैं... कौन ? ........ ........ मैं माँ से कहता हूँ... जो तुम- सा दिखती है । माँ ... समझ जाती हैं... वे कहती हैं... बहुत तड़पाती है... ! फिर वे सोचते हुए कहती हैं... दूर चली जाएगी तो क्या करोगे? मैं चुप हो जाता हूँ। माँ टुकुर-टुकुर निहार रही है । अचानक माँ के आँचल में छिपना चाहता हूँ। तभी होश आता है- माँ तो कब की चल बसी है । मैं उस लड़की की आँचल में पनाह लेना चाहता हूँ... जैसे वह माँ हो। तभी मुझे समझ आता है- माँ जैसी ही होती है - प्रेमिकाएँ । तभी कहीं से आवाज सुनाई देती है- बिल्कुल जानी- पहचानी । माँ जैसी- "किसी से इतनी मुहब्बत ठीक नहीं है बेटा । तुम्हें जिंदा रहना है।"