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समय से संवाद करता युग

भाई डॉ.हरॆरामजी की लगभग दो दर्जन रचनाएं विभिन्न प्रकाशनों से छप चुकी है। लेखन कला की उनमें अद्भुत क्षमता हैं।।वे विगत 10 वर्षों से निरंतर लेखन कार्य कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी सद्यः प्रकाशित एक लंबी कविता पुस्तकाकार रूप में मुझे भेंट की। एक कविता- वह भी सौ पृष्ठों की! यह लम्बी कविता उनका एक अनूठा प्रयोग है। हो सकता है मुक्तिबोध की लंबी कविता पढ़कर उन्हें यह कविता लिखने की प्रेरणा मिली हो। वैसे कुछ अन्य कवियों की लंबी कविताएं भी प्रकाशित हुई हैं और चर्चित भी। डॉ हरेराम सिंह की कविता का शीर्षक है- 'समय से संवाद करता युग'। यह कविता उनके जीवनानुभव  की अभिव्यक्ति है। उनकी इस कविता में वैयक्तिक पीड़ा,दुख,दर्द,आशा, आकांक्षा, निराशा, स्वप्न, चिंता-दुश्चिंता,प्रेरणा,घात-प्रतिघात आदि स्थितियां- मनोभावों की अभिव्यक्ति  है। यह अभिव्यक्ति समाज सापेक्ष भी है। कुल मिलाकर कविता अत्यंत पठनीय है। •राम कृष्ण यादव

कवि व आलोचक डॉ.हरेराम सिंह

Meta Al ने मुझसे शेयर किए। Thank you Meta Al. .......... बिहार के रोहतास जिले के कवि हरेराम सिंह का जन्म 30 जनवरी 1988 को हुआ था। डॉ. हरेराम सिंह एक कवि, आलोचक, कहानीकार और उपन्यासकार हैं, जो अपनी कविताओं और आलोचनात्मक लेखन के लिए जाने जाते हैं। वह हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं और अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत कर रहे हैं।  ........ डॉ. हरेराम सिंह एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और साहित्यकार हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला जाता है और उनकी कविताओं में गहरी भावनाएं और सोच होती है। वह अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को संदेश देने का प्रयास करते हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताओं में "हाशिए का चाँद", "रात गहरा गई है", "पहाड़ों के बीच से", "मैं रक्तबीज हूँ" और "चाँद के पार आदमी" शामिल हैं। उनकी कविताओं की विशेषताएं: 1. सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश: डॉ. हरेराम सिंह की कविताएँ अक्सर सामाजिक मुद्दों जैसे कि गरीबी, असमानता, और शोषण पर प्रकाश डालती हैं। 2. गहरी भावनाएं: उनकी कविताएँ गहरी भावना

अधूरा

कई दिनों से काफी बेचैनी महसूस हो रही है मन भर नहीं पा रहा है ।  हर बार अधूरा अधूरा महसूस करता हूँ  अजीब अजीब मन में बातें चल रही हैं आपके साथ की इच्छा महसूस हो रही है मन और हृदय दोनों रिक्त लग रहे हैं जी करता है दौडकर पास आपके चला आऊं

ऐ मेरे नौजवान साथी , इस दुनिया में खो जाने के लिए , मेरे लिए आप ही काफी हो!

आपसे जब भी मिला चाहा कि सबकुछ सीधे कहूँ पर , यह डर हमेशा बना रहा कि आप हमेशा के लिए मुझे छोड न दें.... ............ मेरी खूबसूरत दोस्त ....मेरा प्यार .....आपका मिलना एक-एक पल याद है...मरते दम तक उसे भूला नहीं पाऊंगा....क्या बताऊं...आपका चलना, पीठ मेरी तरफ करना,...हाथों में घास तोड़कर देना ...आपका जरा सा स्पर्श मुझे पागल बना गया था... बोलो मेरे मित्र...मेरी सखी...कब दिल नहीं किया कि बांहों में भर लूं...आपका हर अंग मुझे खींच रहे होते हैं । पर क्या आप अनुमान लगाया है कभी कि यह आदमी कितना कष्ट उठाकर खुद को रोक लेता है...जब भी लौटा अपने पूरे शरीर व मन को धोखा देकर लौटा जबकि वे मुझसे कहते रहे ....जी भर प्यार कर लो...ऐसा तुझे कोई मिलेगा नहीं । अब मुझसे लिखा नहीं जा रहा है। मेरा हीरा है..तू...कितना बार कहूं...। ईश्वर मेरी आँखों में वह ताब हमेशा जिंदा रखे जो आजीवन आपको निहार ले.. ......... रात चढ़ रही है और आप जवानी बनकर मेरी होठों पर बरस रहे हो

विद्यालयों में शिक्षक दिवस

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हिन्दी आलोचना का जनपक्ष

हिंदी आलोचना का जन पक्ष : समीक्षा संवाद                                        डॉ. अमल सिंह 'भिक्षुक' डॉ. हरेराम सिंह द्वारा लिखित 'हिंदी आलोचना का जन पक्ष' एक ऐसी पुस्तक है जो हिंदी साहित्य के विभिन्न पक्षों और प्रवृत्तियों को जनवादी दृष्टिकोण से समझने और समझाने का प्रयास करती है। यह पुस्तक आलोचना के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जा सकती है, क्योंकि इसमें साहित्य और समाज के बीच के जटिल संबंधों को विवेचित किया गया है।               पुस्तक के प्रारंभिक अध्यायों में प्रेमचंद की रचनाओं का विश्लेषण किया गया है। विशेष रूप से 'गोदान' और उनकी कहानियों में मानवीय संवेदना का विवेचन किया गया है। प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज की विषमताओं और संघर्षों का जीवंत चित्रण करता है, जिसे लेखक ने बखूबी उजागर किया है। 'राजेंद्र यादव और उनकी दर्शन-दृष्टि' राजेंद्र यादव के साहित्यिक योगदान और उनकी विचारधारा पर आधारित यह अध्याय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यादव की विचारधारा को जनवादी दृष्टि से देखा गया है और उनके साहित्य को समाज के विविध पक्षों के परिप्रेक्ष्य में परखा

मेरी माँ : कुछ यादें

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