धंधा
दोस्ती का धंधा
.........लघु-कथा...
एक आदमी के बारह दोस्त थे.बारहों में से चार कहने के ,चार सचमुच के और चार जरूरत पड़ने पर उसके पक्ष में लाठी लेकर खड़े रहने वाले दोस्त थे.पहले चार जब भी मित्र की हाल-चाल जानने के लिए फोन करते,वह फोन काट देता.ये चारों समझते हमसे कोई भूल हुई है.पर उसका दोस्त समझता-ससुरे !फोन कर माथा चाटेगा.इसलिए काटो.पर,इसकी जब जरूरत पड़ती फोन लगाता और आए दिन पैसे का डिमांड करता.पैसा मिलता तो ठीक,वरना दोस्ती कैसी?इस बात को पहले चार कभी समझ नहीं पाए;क्योंकि चारों कभी आपस में मिले न थे,न एक दूसरे को जानते थे.किसी ने एक बार उसमें से एक को समझाया था कि वह दोस्त जिसे तुम दोस्त समझ रहे हो;वह तो तुम्हें दोस्त समझता ही नहीं है.क्योंकि उसकी बहन से मुझे प्यार हो गया था.वह भी मुझसे पैसे ठगती.मैं प्यार में डूबा रहता.पर वह तो 'इनज्वाय'दूसरे से करती.उसके भी बारह दोस्त थे.चार को बारी-बारी से इस्तेमाल करती ,चार से 'इनज्वाय'करती और चार को फुसलाकर-मुस्कान पर ही अपने पक्ष में लड़ने के लिए खड़ा किये रहती है.जो तुम्हारा दोस्त है वह बारह के अलावा दो सगी बहनों से दोस्ती कर लिया है और प्यार के नाम पर पैसे खींचता है.
इन सब बातों पर पहले चार में से एक को यकीन नहीं हो पा रहा था.क्योंकि वह समझता था कि वह 'सचमुच'वाला दोस्त है.पर एक दिन उसका भ्रम टूट गया.वह किसी रेस्तरां में खाना खा रहा था ,तभी उसके कान में दूसरे कुछ दूर की टेबल से आवाज आई-साला,'कुंदना' समझता है कि हम उसके असल दोस्त हैं.जानते हो उससे पाँच हजार रुपया ठगा हूँ.सोचा तुम चारों को उसमें से कुछ खर्च करूँ.क्योंकि तुमलोग मेरे असल दोस्त हो.जब बकर -बकर कुंदना करेगा या बार-बार फोन करेगा तो मुस्टंडा,घुसटंडा,लंपटटंडा व बंपटटंडा से कह पिटवा दूँगा.सौ रुपये में तो चारों खुश हो जाएँगे.घर से पैसा थोड़े लगाना है!उसी की लाठी उसी के सर.
कुंदन इतना सुन चकरा गया.वह जल्दी चुपके से वहाँ से निकला.रास्ते में सोच रहा था-न जाने और कितने मूर्ख बने होंगे अबतक.और न जाने कितने बनेंगे.दिल्ली,मुंबई,हैदराबाद में ऐसा सूनता हूँ.अब तो डेहरी-ऑन-सोन,बिक्रमगंज और सासाराम में भी ऐसे मित्र बड़ी संख्या में मिलेंगे.जो लूटने के नया तरीका ईजाद कर लिए हैं.दोस्ती ऐसा करो कि विश्वास जम जाए और फिर लूटो.ऐसी दोस्ती टूटती है तो दुख सिर्फ उसका होता है जो लूटा गया.'दोस्ती का धंधा 'करने वाले को दुख व गम कहाँ?दो छूटेंगे और चार कतार में हैं.क्योंकि ये सब उनकी प्रिप्लानिंग है.जो ठगे गए -मानसिक,शारीरिक व आर्थिक रूप से उनका कोई प्रिप्लानिंग नहीं होती.दोस्ती की वेश्यावृत्ति आधुनिक युग की सच्चाई है.ऐसे मित्र नराज या न बोलने के नखड़े भी खूब दिखाते हैं.
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