नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी
नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी
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नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी का छिटकना हमें याद है।
तुम्हारे हाथों की नर्म अंगुलियों का बहकना हमें याद है।।
कितने प्यार से छुआ था उस घड़ी,तुमने मेरे हाथ को।
फिर भी तड़पे थे हम दोनों,दिल का तड़पना हमें याद है।।
बड़ा गोस्सा था तुम्हारे अंदर,जाना उस रात को।
चुपके से सर्द रातों में,तेरा निकलना हमें याद है।।
लगा था पूरी तरह नेस्तनाबूद कर डालोगी।
तुम्हारी सहेलियों का,शहनाईयों के संग सिसकना हमें याद है।।
चाँदनी रात में तुम्हारा चेहरा ,सचमुच चाँद से कम न था।
अनजानी नदी की तरह आँखों में ख़ुमारी बन,तेरा बहना हमें याद है
भेजते हुए टूट गई थी,लगा था तुम्हें कि हमें तुने कुछ न दिया।
आज भी तुम्हारे छलकते अश्कों का,सिहरना हमें याद है।।
कांप जाता हूँ,चाँदनी रात के बाद अँधेरे को देख।
क़दम रुक जाते हैं,अँधेरी रातों से तेरा कुछ कहना हमें याद है।।
सुबह सूरज निकला तो न जाने क्यों बहुत बदला था!
उसका न चाहते हुए भी ,ख़ुद से बदलना हमें याद है।।
+++डॉ.हरेराम सिंह+++
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