कुशवाहा-वंश का इतिहास
कुशवाहा क्षत्रिय: देशी नस्ल बनाम विदेशी नस्ल
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इतिहास में जिन्हें 'नव्य क्षत्रिय'(New Kshatriya) , 'शक-हूणों के वंशज' तथा 'माउंट अबू पर पवित्र या बनाए गए अग्नि वंशीय'जिस क्षत्रिय का जिक्र आता है ,उनसे हमारा राम और कुश का तनिक भी नस्लीय संबंध नहीं रहा है।राम का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था। सीता बिहार की थीं। अत:उत्तर प्रदेश और बिहार से संबंध रखने वाले या इससे माईग्रेट कुशवंशी कुशवाहा ही देश के 'प्राचीन क्षत्रिय'(Ancient Kshatriya) हैं। और राम इनके पूर्वज हैं।कुशवाहों का जो घराना अयोध्या, कुशीनगर, कन्नौज, वाराणसी,रोहतास गढ़,मगध आदि से संबंध रखते हैं,वे कुश के असल वंशज हैं। रोहतास गढ़ ,जो विंध्य पर्वतमाला के कैमूर पहाड़ी वाले संभाग पर अवस्थित है।यहाँ कुश के वंशज कूर्म कुशवंशी ने अपनी राजधानी बनाई थी,और इन्हीं के वंशज् कैमूर पहाड़ी के उस पार (दक्षिण ओर)उतर कर मध्य प्रदेश के नरवरगढ़ में दक्षिण कौसल,कुशीनगर, रोहतास गढ़ के बाद अपना नया ठिकाना बनाया था और वहाँ से कुछ लोग राजस्थान भी माई ग्रेट किए और वहाँ भी अपना गढ़ बनाया ।आज रोहतास-गढ़ के कुशवाहे भी सतना,साकेतनगर ,मिर्जापुर आदि जगहों पर जा बसे हैं। ये सभी अपने को कुश के वंशज् यानी कुशवंशी क्षत्रिय मानते हैं,पर 'नव्य क्षत्रिय' अर्थात राजपुत को अपना नहीं स्वीकार करते ।किंतु जो लोग कुश के वंशज होने का सही दावा पेश करते हैं,उनसे बेटी-रोटी के संबंध बनाने में भी नहीं चूकते हैं। ये क्षत्रिय युद्ध के साथ कृषि कर्म को हेय नहीं समझते।इनमें से कुछ अपने को 'कोलिय अथवा कोईली या कोयरी गणराज्य'से भी खुद का संबंध बताते हैं,जो कुशवंशियों की एक प्रचीन शाखा है। ऐसा इतिहासकार शिवपूजन सिंह शास्त्री, इतिहासकार गंगा प्रसाद गुप्त, इतिहासकार डॉ.ललन प्रसाद सिंह, इतिहासकार विलियम आर.पिच मानते हैं।
कुशवाहा-वंश का इतिहास इतना प्राचीन है कि इसमें कई उपशाखाएँ बाद में बन गईं,जो देखने में अलग लगेंगी-जैसे-शाक्य,कोलिय,कछवाहा,काछी,कोयरी,मौर्य,रेड्डी, चोल व केड़वा-पटेल;पर हैं वे एक हीं। इसे 'कुश -वंश'या 'कुशवाहा-वंश'से समझना आसान होगा,पर सिर्फ कछवाहा की नज़र से देखना थोड़ा दुष्कर! क्योंकि कुश की अपनी एक वंश परंपरा है,इसे 'kush dynasty'से समझा जा सकता है,कुशवाहा -वंश परंपरा से समझा जा सकता है;जातीय नजरिया से नहीं।कुछ लोग जब ये कहेंगे कि ये सब कछवाहे या कोयरी ही क्यों नहीं हैं,तो वे इतिहास को और इतिहास की कड़ी को नहीं समझ रहे। जब वे कुश-वंश परंपरा को समझ जाएंगे ,तब वे समझ जाएंगे कि भारत ही नहीं,मिश्र में फैला कुश-साम्राज्य और कोरिया -गणतंत्र भी कुश के वंशजों से संबंधित है। इसलिए जयपुर राज घराने की राजकुमारी दीया कुमारी ने कहा था कि केवल हम ही नहीं,और बहुत से लोग हैं जो कुश के वंशज् हैं।जो भारत और भारत के बाहर भी बड़ी संख्या में हैं और यह हमारे लिए गौरव की बात है।
इसलिए जब इतिहास 'कुश-वंश' की बात दुहराता है,तो वह व्यापक अर्थ में दुहराता है।उसकी नज़रों में जो-जो भी कुश के वंश परंपरा के अंग हैं,वे सभी कुशवाहा हैं,कुशवाहा क्षत्रिय है। और कुशवाहा समाज का उत्थान भी इसी में है कि वह व्यापक अर्थ में 'कुशवाहा'शब्द का इस्तेमाल करे। और वह व्यापक शब्द 'कुशवाहा-वंश' है और उसकी वंश परंपरा की सारी कड़ियाँ उसकी वास्तविकता व विस्तार दोनों है।
आज कुशवाहा समाज के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, मनोवैज्ञानिक स्तर पर हासिए पर जाने का प्रमुख कारण 'तंग नजरिया' है,जहाँ वह कुशवाहा शब्द को बड़े अर्थ में न लेकर लोकल यानि क्षेत्र-विशेष तक की पहचान से जुड़कर ही अपने को धन्य समझ लेता है और इसी वजह उसका विकास बहुमुखी स्तर पर नहीं हो पाता।
इस इतिहास ग्रंथ के माध्यम से कुशवाहा -क्षत्रिय बंधु से आग्रह करता हूँ,कि वह तंग नजरिए त्यागकर संपूर्ण कुशवाहा -वंश को विस्तार दे ,मजबूत बने और प्रगति के पथ पर कदम-ताल मिलाकर कुश के गौरव को बढाए।
(साभार:'कुशवाहा-वंश का इतिहास',डॉ.हरेराम सिंह)
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