मैं चाहता था कि दिल उतारकर सीने की ताखे से, रख दूँ तेरे कदमों में और तुम्हें खुश कर दूँ डॉ.हरेराम सिंह कि क्या नौजवान साथी मिला है; तुम भी कह दो सहसा! पर हर बार ऐसा करने से, मुझे रोक लेती जिम्मेवारियाँ और मैं नये खिले उस फूल की तरह हो जाता; जिसकी कोमल पंखुड़ियाँ मुरझा जातीं, जेठ की दुपहरिया की धूप की मार से! मैं चाहता था आसमान से तारे तोड़कर लाऊंगा और सजाऊँगा घर ऐसा कि देखने वाले देखें कि घर ऐसे भी सजाया जाता है! जहां उजाला फैला रहता है हमेशा; पर,मैंने भूल कर दी तारों को शीतल समझकर और मेरा घर उजड़ गया! मैं चाहता था कि समाज धर्म और जाति के रास्ते से , दूर निकल जाए; इतना दूर कि कभी यह खबर न आए कहीं से कि किसी ने किसी की हत्या कर दी धर्म व जाति के नाम पर; पर,ऐसा हुआ कहाँ? दुनिया में होड़ मच गई इसी रास्ते सत्ता पाने की; दुनिया पर राज करने की। मैं कभी खून का छोटा कतरा देख सहम जाता था और कहाँ आज है? कि रोज मिलती है धमकियाँ मुझे खून करने की। मैं देखता हूँ हर जगह खून का कतरा बह रहा है जिस जगह बहना चाहिए थी प्रेम की निर्मल-धारा! पर,यह भी हकीकत है...
मैं आपको सुन सकता हूँ । आपको समझ सकता हूँ । अपने दुःखों को ताक पर रखकर, समझौता कर सकता हूँ क्योंकि आपसे प्रेम करता हूँ । पर जिस दिन दुनिया आपकी न ही सुनेगी, न ही समझेगी उस दिन आपको लगेगा यह लड़का न सिर्फ मेरी सोच के करीब था; बल्कि दिल के भी करीब था । मुझे एक झलक पाने के लिए महीनों और कभी अंदर - अंदर वर्षों तड़पा करता था , रोया करता था , भगवान से मिन्नते मांगा करता था, उसकी हरकत बचकानी नहीं थी, उसका प्रेम था । शायद उसकी जिंदगी में प्रेम का अभाव था, आया था मुझसे प्रेम मांगने । और तो और उसे ही मालूम थी - टाइम, प्रेम और आदमी की वैल्यू । वह यह भी कि उसकी आँखों में पानी जरूर था । पर, वह न कमजोर था, न बहुत गरीब । वह कमजोर, भावुक , भीखेरा इसलिए था; क्योंकि वह मुझसे प्रेम कर बैठा था ...!!! वह साल में दो- तीन अच्छी मुलाकातें मांगता था जिसे वह गर्व के साथ प्रेम कह सके । वह डटकर अपनी जिम्मेवारियों को निभा भी रहा था । बस, कुछ अभाव थे उसकी जिंदगी में... जिसे पूरा कर रहा था वह मेरी आँखों में देखकर । आपको हैरत होगा एक दिन कि क्या मुझमें उसे दिख गया था कि वह मेरे लिए पागल था....!!!
कुशवाहा क्षत्रिय की उप-जाति समूह और उनके वैवाहिक -संबंध ............... 1.कुशवंशी क्षत्रिय श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज् कुशवंशी क्षत्रिय कहलाए.यह वर्तमान में कुशवाहा के नाम से जाति के रूप में जाने जाते हैं.बिहार,उ.प्र,म.प्र,राजस्थान,दिल्ली व कश्मीर में यह मुख्य रूप से बसे मिलते हैं.यह अपने को कुश का वंशज् मानते हैं.इन्हें कछवाहा व काछी भी कहा जाता है.इनका मुख्य ग्रंथ रामायण है. 2.शाक्यवंशी क्षत्रिय यह लोग स्वयं को बुद्ध का वंशज् मानते हैं.यह अपने को क्षत्रिय से ज्यादा खत्तिय कहलाना पसंद करते हैं.यह लोग त्रिपिटक को अपना मुख्य ग्रंथ मानते हैं.उ.प्र,उत्तराखंड व देहली में यह मुख्य रूप से पाए जाते हैं.यह स्थानीय रूप में शाक्यसेनिया भी कहलाते हैं. 3.मौर्यवंशी क्षत्रिय यह लोग चंद्रगुप्त मौर्य,अशोक व चित्रांगदा मौर्य के वंशज् खुद को मानते हैं.इनका बसाव मुख्यत: उत्तर प्रदेश व राज्य स्थान है.ये अशोक के धम्मनीति पर ज्यादा बल देते हैं. 4.कोईरी क्षत्रिय कुशवंशियों की यह शाखा अपने को राम का वंशज मानती है.यह शाखा का यह भी मानती है कि इनके पूर्वज 'रामग्राम'गाँव बसाए थे...
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