कुशवंशी क्षत्रिय: बुद्ध के पहले और बुद्ध के बाद

कुशवंशी क्षत्रिय: बुद्ध के पहले और बुद्ध के बाद
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प्रो.(डॉ.)राम प्रकाश कुशवाहा कहते हैं कि 'कुशवाहों के इतिहास को समझना है,तो इतिहास को दो खंड में बाँटकर देखो-१.बुद्ध के पहले कुशवाहा और २.बुद्ध के बाद कुशवाहा।हालांकि यह विभाजन वे मूल क्षत्रियों को समझने के क्रम में कर रहे हैं और बताते हैं कि जो यहाँ के मूल क्षत्रिय नहीं हैं,बाहर के हैं ;उन्हें यहाँ के प्राचीन राजाओं ने भारत के भीतर प्रवेश ही नहीं करने दिए। इसलिए उनका ठिकाना देश के सीमा तक ही सीमित रह गया।आज जो बीच-बीच में दिख जाते हैं,जो अपना संबंध सीमा के आसपास से बताते हैं या हैं वे बाद के क्षत्रिय हैं।
              यहाँ के जो मूल क्षत्रिय थे वे बुद्ध के पहले अपनी पूरी पहचान के साथ जीते थे और युद्ध भी करते थे,पर नया क्षत्रिय से कभी भी अपना वैवाहिक संबंध बनाना उचित नहीं समझा,कारण कि वे हूड़ों की संतान थे। पुराने क्षत्रिय में कुशवंशी कुशवाहा भी एक थे। जो मध्य भारत के बहुत ही आक्रामक जाति थी,इन्होंने भी इन्होंने ने भी शक-हूणों को अपने ठिकाने में प्रवेश नहीं करने दिया और एकक्षत्र राज करते रहे। शाक्य भी एक कुशवंशी क्षत्रिय ही थी। जिसमें सिद्धार्थ का जन्म हुआ था जो बाद में चलकर शाक्यमुनि व बुद्ध भी कहलाए।वे गृह त्याग से पहले तक क्षत्रिय शील में ही पले-बढ़े।और कोलिय(कोयरी)के साथ जल के लिए चल रहे कोलिय और शाक्य(पूर्व के दोनों कुशवंशी)के बीच विवाद को समाप्त किया। पर,वहीं सिद्धार्थ जब विशेष ज्ञान की खोज हेतु निकले तो कई ब्राह्मण-ज्ञानियों ने ज्ञान देने से इंकार कर दिया। यह खोज का विषय है। पर,वहीं सिद्धार्थ जब बुधत्व की प्राप्ति करता है और ज्ञान का प्रसार करता है तो उसके ज्ञान से चीड़े ब्राह्मण उसके साथ-साथ उससे रलेटेड उसके पूरे वंश यानि शाक्य कुशवंशियों को निम्न कह दुष्प्रचारित करते हैं ।पर, कुशवाहा भी कम कहाँ थे!वे भी ब्राह्मणों के इस दुष्प्रचार का तनिक भी चिंता न करते हुए क्षत्रिय धर्म के मुताबिक अपने कुल के बौद्धिक व्यक्ति सिद्धार्थ के साथ रहे। और पूरी तरह बुद्धमय हो गए।मानसिकता एक दिन में न तो बनती है और न ही बदलती है।शाक्य कुशवंशियों के साथ भी ऐसा हुआ।
डॉ.राम प्रकाश कुशवाहा के मुताबिक चाणक्य चंद्र गुप्त मौर्य में क्षत्रिय गुण को देखकर ही अपना शिष्य बनाया,वरना वह बनाता नहीं। किंतु,धीरे-धीरे बुद्ध के प्रभाव की वजह कुशवाहा इतना फ्लैक्शलेबल हो गया कि उसकी क्षत्रित्व की अकड़ जाती रही और ब्राह्मण के बहकावे की वजह हिंदू समाज इनमें क्षत्रित्व देखना लगभग छोड़ दिया और ब्राह्मणों ने अपना नया क्षत्रिय 'अबू पर्वत'पर बना लिया और उसे सूर्य व चंद्र से जोड़ दिया,जबकि सूर्य व चंद्र क्षत्रिय नहीं आकाशीय पिंड थे। पर,राम राज्य के पताका पर वह राष्ट्रीय चिह्न था,जो इक्ष्वाकुओं का गौरव बढ़ा रहा था। ठीक उसी तरह चंद्र भी कुरुवंशियों के पताका पर अंकित चिह्न था,जैसे मौर्यों के पताका पर मोर चिह्न था।
फिर भी मूल कुशवंशी क्षत्रिय अपने क्षत्रित्व को समय-समय पर साबित करते रहे और यह बताते रहे कि मुझमें केवल बुद्धत्व की ही प्रेरणा नहीं हैं,बल्कि श्री राम पुत्र कुश का कुशत्व भी है। तब से वहीं अबू पर्वत वाले नया क्षत्रिय बनबनाए हुए हैं और कुशवाहों के क्षत्रित्व को नकार रहे हैं। उसी कुशवाहों को जो मानव कल्याण के निमित्त डॉ.राम प्रकाश कुशवाहों के शब्दों में 'मेरा कोई अरी नहीं वाली उपाधि कोईरी धारण'कर लिया था। डॉ.कुशवाह कोईरी को जाति नहीं,उपाधि मानते हैं जो मूलत:कुशवंशियों की है जैसे महतो।
पर,आज कुशवाहा समाज सचेत है,जागरुक है। वह अपने क्षत्रित्व का प्रमाण डंके की चोट पर दे रहा है और वीरोचित व्यवहार न्याय के साथ कर रहा है।
(साभार-'कुशवाहा-वंश का इतिहास',डॉ.हरेराम सिंह)

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