गीता-महाबोध

बीएचयू में 'गीता महाबोध' का विमोचन
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'गीता' को अक्सर धार्मिक पुस्तक के रूप में लोग देखते हैं इसे दर्शन व साहित्य के रूप में भी अपनाने और उसे व्याख्यायित करने की जरूरत है!
                                         -डॉ.ललन प्रसाद सिंह
यह वह मौका था जब डॉ.ललन प्रसाद सिंह अपने सद्ग्रंथ 'गीता महाबोध' के विमोचन पर लेखकीय वक्तव्य दे रहे थे।सामाजिक विज्ञान संकाय के एच.एन.त्रिपाठी हॉल में यह आयोजन हिंदी व संस्कृत के लिए ख्यात प्रकाशक किशोर विद्यानिकेतन के डॉ.संतोष कुमार द्विवेदी जी द्वारा आयोजित था और डॉ.द्विवेदी जी बतौर एक संचालक भी बताया कि गीता एक दूसरे को समझने और सम्मान देने की भावना को उत्प्रेरित करने का काम करती है।इसका दर्शन है-अपने को अपने में मिला दो।
ऐसे तो इस कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन व प.मदन मोहन मालवीय जी को माल्यार्पण से हुई ;पर यह विमोचन समारोह एक बौद्धिक विमर्श का रूप ले लिया और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के महानायकों में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,पं. मदन मोहन मालवीय ,पं.जवाहरलाल नेहरू,डॉ.अम्बेदकर ,तिलक, डॉ.राधाकृष्ण से होते हुए वर्तमान की पीढ़ी व नौजवानों की समस्या तक खींची चली आई।इस मौके पर पुस्तक के विमोचनकर्त्ता प्रो.(डॉ.)कौशल किशोर मिश्र ने कहा कि गीता है तो राष्ट्र है।हमारा समाज है।मालवीय जी गीता को सदैव सीने से लगाए रहते थे।गाँधी जी ने अपने समय में कई महत्वपूर्ण शख्सियतों को गीता पढ़ने की सलाह देते थे।अगर पं.जवाहर लाल नेहरू ठीक से गीता पढ़ी होती तो भारत का विभाजन न हुआ होता।गीता ब्राह्मण,क्षत्रिय और शूद्र के बीच के भेद को मिटाती है यह अहंकार व पाखंड  को मिटाने की शिक्षा देती है।यह तेरा मेरा के भाव पनपने नहीं देती।डॉ.ललन प्रसाद सिंह ने 'गीता महाबोध 'को आमजन की भाषा हिंदी में लिखकर गोस्वामी जी की तरह इसे सुबोध एवम् सरल बना दिया ।इसमें संस्कृत,हिंदी,अवधी,ब्रज और भोजपुरी के शब्द हैं।गीता अभावग्रस्त व तनावग्रस्त युवा पीढ़ी की निर्देशिका है।पंखा से लटकर जो युवा अपनी जान गँवा दे रहे हैं वे काश, गीता पढ लिए होते!वे आत्महत्या की ओर कभी न जाते।जीव हिंसा गीता का भाव नहीं है।गीता कलाओं का समुच्चय है।समरसता का बोध कराना गीता का मूल भाव है।ललन जी गीता को उन लोगों तक पहुँचाया है जो समाज के हाशिए पर हैं।गीता को जो सांप्रदायिक चश्में से देखते थे;उनके लिए गीता महाबोध एक सीख है।प्रो.डॉ.ललन प्रसाद सिंह जी धन्यवाद् के पात्र हैं।आपने जो यह महत्वपूर्ण कार्य किया है-यह हम सबके लिए गर्व की बात है।
जबकि इनके पूर्व के वक्ताओं में इतिहास विभाग के प्रमुख प्रो.केशव मिश्र ने 'गीता' पर बोलते हुए कहा कि मोक्ष,ज्ञान और भक्ति में से कोई दो भी यदि जीवन का हिस्सा बन जाएँ तो जीवन सार्थक हो जाए।'गीता महाबोध'विशिष्टजन के साथ साथ आमजन को इसी सार्थकता का पाठ पढ़ाता है।हम और आप जिस शहर में हैं वह गीता से है,काशी हिंदू विश्वविद्यालय गीता से है।प्रोग्रेस को समझने में गीता सहायक है।आज की कई समस्याओं का हल  गीता है।कामिल बुल्के से लेकर बचपन की कई खट्टी-मिट्ठी यादों को गीता से डॉ.केशव जी ने इसके महत्त्व से स्रोताओं को अवगत कराया और कृष्ण के नायकत्व को परिभाषित किया।इस मौके पर उपस्थित समाजशास्त्र के प्रो.आनंद प्रकाश सिंह ने आयोजकों को धन्यवाद देते हुए महाभारत की बर्बरिक की कथा के पीछे की घटना और पांडव के जीत की और कौरवों की हार की कथा को पूर्व नियोजित माना और आज के समय व संघर्ष को निशाना लेते हुए कहा कि बर्बरिक तीन दिन में महाभारत समाप्त कर देता फिर अर्जुन के नायकत्व या कृष्ण का चिंतन का क्या होता ?'गीता महाबोध' में कृष्ण को परिभाषित करने के लिए डॉ.ललन प्रसाद सिंह ने बताया है कि कृष्ण स्वयं को राम जैसे धनुर्धर ,कपिल मुनि जैसे साधक और पीपल जैसे वृक्ष बताया है।इसका हवाला देते हुए बीएचयू सामाजिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ.आनंद प्रकाश सिंह ने बताया कि गीता कल्याणकारी है।अपने को 'क्षत्रिय'बताते हुए संस्कृत से दूर होने का कारण भी बताया और यह भी कि समाजशास्त्रीय अध्ययन को गीता एक नई रोशनी प्रदान करेगी।
'गीता महाबोध' सद्ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे व संस्कृत के विद्वान प्रो.राकेश पाण्डेय ने कहा कि गीता महाबोध का विमोचन काशी विश्वविद्यालय की संस्कृति के अनुरूप है।प्रो.ललन प्रसाद सिंह के इस सद्ग्रंथ को पढ़कर बड़ा आनंद आया।इन्होंने कठिन गीता को ऐसे सरस व सरल ढंग से प्रस्तुत किया है कि मैं इसे सिर्फ मैं पद्यानुवाद नहीं कह सकता।मैं 1970 में पढने आया था और छात्र संघ का प्रेसीडेंट था ।मेरे साथ कुछ गंभीर एक्सीडेंट हो गया था तब से मैं उदास रहने लगा था।घर जाने पर मेरे पिता जी ने मुझे गीता पढ़ने को दिये और मेरा अवसाद जाता रहा।जो हो गया सो हो गया ,बस आगे देखो। कर्म करते जाओ।यही गीता का संदेश है। 'स्थित-प्रज्ञ' गीता का मूल है और प्रज्ञ का अर्थ विशेष प्रकार की समझ है।बौद्धों का मठ ब्रह्म मठ है यानी वहाँ प्रज्ञता है।गीता साधना और निर्वाण को देती है।हालाँकि निर्वाण बौद्धों में ज्यादा प्रयुक्त है पर गीता में भी है-गीता मक्ति की रास्ता बतलाती है।ब्रह्म विहार गौतम बुद्ध के प्रिय शब्द थे।मालवीय जी रोज गीता पढते थे।'तत्वमसि' का सिद्धांत गीता का है।तितिक्ष=सहिए का संदेश भी गीता का है।अपने कष्टों को भूलना गीता का दर्शन है यह निराशा पर विजयी दिलाती है।डॉ.ललन प्रसाद सिंह हिंदी के वेदव्यास हैं।आपके इस सत्कर्म से आपके पूर्वज खुश होंगे और आपकी पीढियाँ आबाद हों।गीता सभी उपनिषदों का सार है।सभी उपनिषद् गाय है।'गीता महाबोध' में सोलहों कला का निर्वाह डॉ.ललन प्रसाद सिंह ने की है।गीता भगवान कृष्ण की आशीर्वाद है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मंचासीन विद्वान अतिथियों को 'शॉल' व 'बुके' से सम्मानित किया गया।प्रो.कौशल किशोर मिश्र जी को प्रो.ललन प्रसाद सिंह ने,प्रो.राकेश पाण्डेय जी को डॉ.संतोष द्विवेदी,प्रो.केशव मिश्रा जी को प्रो.ललन प्रसाद सिंह,प्रो.आनंद प्रकाश सिंह जी को डॉ.हरेराम सिंह और प्रो.ललन प्रसाद सिंह को श्री जितेंद्र सिंह ने सम्मानित किया।इस मौके पर प्रख्यात तसाहित्यकार रामप्रकाश कुशवाहा,श्री आशुतोष द्विवेदी,श्री आलोक पंकज जी,श्री भीष्मदेव सिंह व बहुत सारे विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएँ,शोधार्थी व मीडिया बंधु उपस्थित थे।धन्यवाद ज्ञापन डॉ.अनुराग श्रीवास्तव ने किया।सिंह नेशनल लिटरेचर की प्रस्तुति 'जिंदगी तू अगर...' ने स्रोताओं का दिल जीत लिया।यह कार्यक्रम एच.एन.त्रिपाठी हॉल में दिनांक 8/11/21 समय दो बजे अपराह्न से शाम चार बजे तक चला।जहाँ हॉल पूरी तरह भरा रहा।चाय की चुस्की समारोह को गर्माहट से भर दी।
.......प्रस्तुति-डॉ.हरेराम सिंह.......बीएचयू में " गीता महाबोध " का विमोचन
डॉ.हरेराम सिंह द्वारा सम्मानित हुए डॉ.आनंद प्रकाशसिंह

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