मेरे शहर की रवायत

मेरे शहर की रवायत
.......
मेरा शहर कभी ऊँघता नहीं
जगता रहता है रात भर
या नींद में ही स्वप्न देखता है
मधुर- मधुर 
कुशवाहों के रोहतासगढ़ की तरह 
सर ऊँचाकर अपने शहरवासियों को संदेश देता है
जीवों शान से
अपनी भुजाओं पर विश्वास करों
इन कुशवाहों की तरह

मेरा शहर खुशनसीब है
कि यहाँ सभी रंग के फूल सभी दिशाओं में खिलते हैं
सोनवागढ़ के उस पार भी
सोन नद के पानी से सींचकर निहाल हो जाता है
जब बारिश की बूँदे काव नदी से होकर गुजरती हैं
मछलियों के हौसले देखते बनते हैं
'महतो' किसानों की दँतारियाँ
अँग्रेजों व जमींदारों के गर्दन पर गिरने से नहीं चूकती
वजह; 'महतो' में ताब है वह 'राय' में कहाँ?
ऐसा मानते हैं लोग
और अदब के साथ महतो जी को सलाम करते हैं!

मेरा शहर दूर है जरूर राजधानी से
पर; आशीर्वाद पाया है ऐसा
कि कोई भूखे मर नहीं सकता
और कोई किसी का हक़ मार नहीं सकता
जो मारेगा वह टिकेगा नहीं
क्योंकि यहाँ का हर बच्चा न्याय निमित्त लड़ना जानता है
अपने और ग़ैरों की पहचान आँखों में झाँकर कर लेता है
प्यार के आगे झुकना उसकी संस्कृति का हिस्सा है
और जो स्त्रियों की इज्जत लूटकर बड़े बनते हैं
उनके शिश्न को छह इंच छोटा करना उसकी ड्यूटी है!

Comments

Popular posts from this blog

हरेराम सिंह

साहित्यकार डॉ.हरेराम सिंह