हरेराम सिंह के कुछ गीत

चाँदनी-पुरवैया की अठखेलियाँ
............
मेरे साजन जीवन को खुशियों से भर देना
पलकों के सहारे हृदय में उतर जाना
मेरा आँगन छोटा न है,जो है तेरा ही है
मेरे साजन आँगन को खुश्बूओं से भर देना

आई तेरी अँगना बाबुल-मइया छोड़ के
गाँव की सखिया,प्यारी गइया छोड़ के
गाँव की बगिया की कोयल सुध जगाई
तेरी यादों में जीना तब से सीख पाई
मेरे साजन साँसों में खुश्बू भर देना
मेरे साजन जीवन को.................

देख रही हूँ इधर पुरवैया बिगड़ रही है
खिड़की पर चाँदनी मध्य पहर हँस रही है
"तेरे पिया कहा हैं?"हमसे पूछ रही है!
चाँदनी-पुरवैया अठखेलियाँ कर रही है
मेरे साजन पास आकर उन्हीं को लजा जाना
मेरे साजन जीवन को...................

अभी एक मैना मीठी तान सुना फूर्र से गुजर गयी
माथे की बिंदी सूरज की लाली पा चमक गयी
दूर कई किसान - धनखेत के गीत गा रहे हैं
झूम-झूमकर गुच्छ बालियाँ के, गौरैयों को बुला रहे हैं
मुझसे बर्षों का प्रेम हैं तुझे,तू आकर सबको जता जाना
मेरे साजन जीवन को...................

तू सूरज की लाली,होठों पे उतर जा
मेरा चाँद बनके,आँखे में चमक जा
मैं तेरी चाँदनी तू मेरा हमसफर है
उम्रभर के नगीने,मन की लहर है
मुझे अकेला छोड़के, कहीं को न जाना
मेरे साजन जीवन को..................


एक टक निहारूँ
......
हमारे कोई मित न हवै रे
किससे करूँ आने का वादा?
अभागा, हमसे न कोई ज्यादा

किसी को मिल गए राम प्रभु,
किसी को मिल गए श्री कृष्ण,
हमारे जीवन को केहू न मिलौ रे!

एक टक निहारूँ, इस संसार को
उमड़े दिल करने को प्यार रे
रात को अँखिया, बतियावन को चाहे
सजदा करूँ मेरे गरु वाहै

तुझ में भूलाना चाहूँ 
स्वयं को घुलाना चाहूँ
दगा के खेल पास-पड़ोस खूब जानै
हमारे कोई मित न हवै रे!

आते हैं लोग, पर करते बात चतुराई के,
खाकै बड़े हो गए, पूछे कौन राई कै?
एक ओर धँसे गाल, दूसरी ओर सुघराई के
सच को झूठ कहैं, थूकै पान खाई कै!

इनसे कैसे दिल लगाऊँ, तूही बताऊ?
जो झूठ बौलै, उनसे प्रीत बढ़ाऊँ?
यह बात समझ में न आवै रे
मेरौ मनवा भी न समझावै रे!

जानू रे...जानू रे...
मेरौ दिल क्या करै!
तेरे बिन जीने को जी ना करै!


.तेरे होने से हूँ मैं
......
तू नहीं रहती तो टूटकर पंखों की तरह बिखर गया होता,
आसमां से गिरते अगिन में जलकर मिट गया होता!
मेरा वजूद ही क्या था तेरे आने से पहले?
तू आई नहीं होती मेरी जिंदगी में तो सिमट गया होता!
बिजली की तारें जो बिछाई है कुछ लोगों ने,
नासमझ मैं,गलती से उसमें लिपट गया होता!
ये आँधी,ये पानी और ये कड़कती बिजलियाँ.
तू सिरहाने ग़र नहीं रहती तो सिहर गया होता!
ये रात की चाँदनी,ये सुबह की धूप,इतनी खूबसूरत है,
समझ में आई,काश मैं तुमसे पहले मिल गया होता! 
भुरभुरी मिट्टी से जो खुश्बू आती है अभी भी.
उस दिन तुम ग़र नहीं आती खेतों में,मैं बिछड़ गया होता!
दिख रहा हूँ तेरी वजहों से वरना कबका.
घर से दूर ,अकेले में कहीं निकल गया होता!


.उन्हें आकर बताना साथी
.............
चलते-चलते सफर में तुम्हारा याद आना
सपनों में खोना,आँखों में पानी भर आना

चल रही है ठंड़ी हवाएँ,दिशाओं को चिरती हुई
साथी मेरे पिछली बातों को यूँ मत भूल जाना

सोन के कगार पर उड़ रही है सोन चिरैया
पंडूक-पपीहा बोल रहे,इस रस्ते सदा आना-जाना

ख्वाबों में मंजिल लिए, गए हो राह के साथी
तुम्हारे अपने इंतजार कर रहे ,मंजिल पा के आना

आँखों में बरसों की साध है,हिम्मत से काम लेना
दुश्मन भी पीछे पड़े हम सबके,यह जंग है हमें जीतना

जब तुम गए थे यहाँ से,दुश्मनों से भीड़ंत हुई थी
तुम्हारे साथी की शहादत का बार-बार याद आना!

बेकार न जाए खून की एक बूँदे साथी
हम सब एक साथ हैं,एक दिन उन्हें है बताना

पगडंड़ियों की धूलि
......
जिंदगी जो मिली है, उसे प्यार से जी ले
कल रहे न रहे, इत्मीनान से  दीदार कर ले

क्या करना है किसी की, शिकवा व शिकायत?
मिले तो बाँहें फैलाकर, गले से मिल ले

यह हकीकत है-बागों में फूल हैं तो काँटे भी
एक पंखुड़ी को छूकर देखो, फूलों को चूम ले

अभी सर से गुजर गई, सर्र से इक चिड़िया
हरी घासों पे लेटकर, मीठी तान सुन ले

चकवा-चकई का प्रेम है: अद्भुत - अद्वितीय
जिंदगी प्यार के लिए है, प्यार में जीना सीख ले

हम कहीं भी रहें, रहेंगे तो मिलेंगे ही कभी
पल फिसल न जाए हाथों से, होठों से चूम ले

पगड़ंड़ियों की धूलि , कितनी है मुलायम!
गुजरा इस बार तो, लगा बचपन को भींग लें!

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