भूमिका: चाँद के पार आदमी

कविता सृजन के पीछे...

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हम जब किसी पुस्तक की रचना कर रहे होते हैं, तब हमारे सामने मात्र एक व्यक्ति नहीं ; बल्कि पूरा समाज, पूरा वर्ग होता होता है जिसमें से कुछ ऐसे दु:ख, ऐसी चिंता हमें आलोड़ित करती है और उसका आलोड़न हमें लिखने पर बाध्य करता है। इसलिए हम कभी यह नहीं कह सकते कि किसी एक व्यक्ति विशेष की वजह हम रचना-कर्म नहीं कर पा रहे हैं। चूँकि हमारे लक्ष्य महान होते हैं , हमारे सम्मुख जनता होती है, इसलिए हम लिखते हैं। रचना-कर्म करना कवि व लेखक का उत्तरदायित्व है! इसमें संकोच दिखाने का अर्थ हमारे भीतर का कवि का मर जाना होता है।कविता मनुष्य के मर्म को उद्भाषित करती है और उस मर्म तक पहुँचने में हमारी मदद करती है, प्रेरणा देती है। अकाल के वक्त जिस तरह जीव पानी बिना बेचैन रहता है, अन्न बिना मरणासन्न तक पहुँच जाता है, ठीक उसी तरह मनुष्य संवेदना तथा प्रेम के अभाव में अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है। कविता मनुष्य को मृत होने से बचाती है। 
आज लोगों के पास गाड़ी है, बंगले हैं, मोबाइल है, लैपटॉप है और भी बहुत कुछ हैं जिसे यहाँ पूरी तरह बता पाना संभव नहीं , फिर भी उसके पास जीवन की खुशी नहीं है! उसे किलकना नहीं आता, वह मुस्कुराना नहीं जानता, वह भयमुक्त नहीं होता, डरा सहमा इंसान अजीब सा लग रह रहा है, रात की नींद उसकी गायब है। और मनुष्य इसी खेल में लगा है कि लोग भय व डर से त्रस्त रहें ; भले दिखावे के लिए उसके पास बहुत संसान व सामान क्यों न हो? पर वह खाली-खाली है। प्रेमचंद की 'ठाकुर का कुँआ' कहनी की गंगी पानी के लिए घड़ा डूबाने से पूर्व ; वह देवता-पितर को गुहारती है और अपने हृदय को मजबूत करती है। सचमुच की जिंदगी में ईश्वर उसे भले मदद नहीं करता; किंतु कविता या कहानी फूटती है वहीं!
हृदय उस सरोवर की तरह है, जहाँ रचना रूपी कमल खिलते हैं । कविताएँ कमल ही हैं। जिसमें एक सुवास है। सुंदरता है और उसके पीछे एक लंबी दास्तां भी, जहाँ कीचड़ है, पानी है, बारिश है, धूप है, सूखा है! कविता इनके बीच से पैदा होती है। तुलसी, टैगोर व दिनकर की कविताएँ भी इसी बीच से निकली हैं। मेरा कविता संग्रह 'चाँद के पार आदमी' जीवन को आलोड़ित, व्याख्यायित करती घटनाओं, संवेगों, खीझों, विचारों, चिंतनों व राजनीतिक उठा-पटक व रोजमर्रा की आपाधापी के प्रतिफल हैं। चाँद जीवन में आया उजास का प्रतीक है और 'उस पार' एक ऐसी जिंदगी की तलाश है जहाँ सारा इंसान खासकर आमजन खुशी पूर्वक , भेद-भाव रहित वातावरण में खुद के सपनों को साकार करे। 'चाँद के पार आदमी' ऐसी जिंदगी की तलाश है पर ऐसी जिंदगी अभी है कहाँ? पर पाना हमारा मकसद है या इस धरती, इस जहाँ को ही ऐसा बना देना लक्ष्य है जहाँ शोषण न हो, हमारी कविताएँ इसी उद्देश्य के लिए समर्पित हैं। 
कविताएँ हमारे जीवन की श्रृंगार हैं, वह जबसे अस्तित्व में है, मनुष्य और सुंदर की ओर जाने को लालायित है। उसकी सुंदरता , उसकी मधुरिमा सदा बनी रही ताकि मनुष्य का जीवन उन्नत बनता रहे। मेरी इस संग्रह की कविताएँ प्रत्यभिज्ञा   प्रदान करने और सुंदर व न्याय के लिए सुकरात की तरह संघर्ष करने को उत्प्रेरित करने के ख्याल से विरचित हैं। अगर इस उद्देश्य की थोड़ी भी पूर्ति होती है तो मुझे खुशी होगी।
 हरेराम सिंह,
धम्म चक्क पवत्तन सुत्त दिवस, 2019

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