सुमन कुमार सिंह

जड़ से काटी गई स्त्री
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हर बार रोती है स्त्री
जब जड़ से काटी जाती है
पिता- भाई के सामने
मंड़प में

एक नया संसार बसाने के स्वप्नों बीच
अपने आँगन से
अपना बचपन

मीठी स्मृतियों को
विदा देती है रोते-रोते
रीती हुई स्त्री
भरती है एक-एक बूँद
जीवन को
अपने स्त्रीत्व की मिठास से
रोते-रोते
हँसते-हँसते! 
         डॉ. हरेराम सिंह 

लंबे समय बाद पिछले 22 अप्रैल को मित्र कवि डॉ. हरेराम सिंह भी आरा में उपस्थित थे। यह अवसर स्मृति शेष गुंजन जी की पहली बरसी का था। हरेराम सिंह और उनकी संगीनी श्रीमती सुमन कुशवाहा की उपस्थिति सुखद लगी। इस अवसर पर हरेराम जी ने अपना सद्यः प्रकाशित हिंदी-भोजपुरी का काव्य संकलन 'जड़ से काटी गई स्त्री' भेट किया। संकलन की कविताओं में ग्राम्य जीवन का सामाजिक  यथार्थ पूरे वैविध्य व पूरी तल्खी से प्रश्नांकित है। संकलन पर वरिष्ठ कवि-आलोचक चंद्रेश्वर जी की लिखी भूमिका भी ध्यान आकर्षित करती है। संकलन पढ़ा जाना चाहिए। हरेराम भाई को बधाई!

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