और नहीं समझ में आए तो समझिए कुशवाहा बंधु

और नहीं समझ में आए तो समझिए  कुशवाहा बंधु-
1. " राम " को जितनी सामाजिक स्वीकृति है, दूसरे लोग जितना स्वीकारते व पूजते हैं, उतना सम्राट अशोक को नहीं ; और कुश , राम से हैं। 
सामाजिक स्वीकृति ही आपको उन्नत बनाएगी। इसलिए कुशवाहा और कोष्टक में शाक्य मौर्य दांगी आदि।

इंडियन सोसाइटी कुशवाहा को जितनी सहजता से पचा लेगी, अपना लेगी। उतना मौर्य को नहीं । इसलिए कुशवाहा में सब पच जाएँगे। उत्पति भी इससे यानी कुशवाहा से बताना आसान व लॉजीकली है। मौर्य में इतिहास है चिपकाने वाला 'लासा' नहीं ।

राम लोगों के दिल पर राज करते हैं। हथियार के बल पर राजा बना जा सकता है, पूजनीय नहीं । कुशवाहा को गर्व होना चाहिए कि राम और बुद्ध उनके बीच से होकर भी , सबके हैं!

राजपूत "काकन" को अपना मुख्य आइकन नहीं बनाया।
भूमिहार "डोमकटार" को मुख्य आइकन नहीं बनाया।
और बनाती भी क्यों? ठीक उसी तरह कुशवाहा "कोइरी" को अपनी मुख्य पहचान नहीं बनाया। क्योंकि वह लोकल आइडेंटिटी है।
भारतीय समाज पर व जाति व्यवस्था पर अनुसंधान करने पर यह स्पष्ट होगा कि कुशवाहा ही केंद्र में क्यों, मौर्य नहीं । 
क्योंकि वह जाति के कनसेप्ट में फीट नहीं बैठेगा । इतिहासकार नहीं ; समाजशास्त्रियों से , मनोवैज्ञानिकों, साहित्यकारों से, कलाविदो से राय ले लिजिए। बात स्पष्ट होगी।

यादवों ने कभी नहीं कहा कि यदु काल्पनिक है, कृष्ण काल्पनिक हैं, केवल लोरिक ही ऐतिहासिक हैं, तो वे जुट नहीं पाते। यूपी उन्हें नहीं मिलता न बिहार। कुशवाहा क्षत्रिय को यह जाने बिना कि यदि वे आपस में लडेंगे तो कुश, बुद्ध, अशोक, आल्हा ऊदल कुछ भी नहीं बन पाएँगे।

यही नहीं ; यादव आज ये भी नहीं कहता कि अहिर या गोपालक शब्द ही प्राचीन है। काल्पनिक व ऐतिहासिक के चक्कर से ज्यादा एकजुटता पर वह बल दे रहा है। कृष्ण  जी की जयंती भी मनाता है और लालू जी का भी! वे हमसे होशियार हैं।
उनके देखा-देखी भी एक दूसरे को स्वीकारिए कुशवाहा बंधु! जाति में ज्यादा कानून क्या पढ़ना? " कुशवाहा " शब्द में सब पच जाएँगे। जैसे " यादव " में सब अहीर व गोपालक पच गए।

आप समझिए। मैं सबकी बात कर रहा हूँ।मौर्य से शाक्य या शाक्य से मौर्य? प्रत्येक राज्य की सरकार के पास जाइए। बिहार, झारखंड, बंगाल, उडिसा आदि राज्य का अवलोकन करिए। बहुत कुछ स्पष्ट होगा।

कुशवाहा सिर्फ कुशवाहा है चाहे वह इसके किसी भी उपजाति है। अहीर, और बनिया से सिखिए। बिहार का जाति गणाना एक उदाहण है। यादव एक दूसरे पर सवाल नहीं उठाते ऐतिहासिक व अनैतिहासिक का।

एक दूसरे को स्वीकारिए कुशवाहा बंधु। जाति में ज्यादा कानून क्या पढना? " कुशवाहा " शब्द में सब पच जाएँगे। जैसे " यादव " में सब अहीर व गोपालक पच गए।

इतिहास लिखने पर इतिहास बनेगा। इसलिए सब ऐतिहासिक हैं।उदाहरण देख लिजिए। हमसे डोम समझदार है। यादव समझदार है बनिया समाज। 
बिहार सरकार का सामान्य प्रशासन से प्रूफ्ड यह उदाहरण है।

कुछ कुशवाहा अंबेदकर को अपना खास मानने लगे हैं। वैसे कुशवाहा कुशवाहा ग्रूप या संगठन में भी उन्हीं की बात करते हैं जैसे वे उन्हीं के वंशज हों। ऐसे कुशवाहों से निवेदन है 'अम्बेदकर महासभा' बना लें, कुशवाहा सभा बनाकर कुशवाहा को भ्रमाए नहीं ।इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी । कुशवाहा को देखने से ऐसा लगता है कि कुशवाहा के पास कोई अपनी धारा/ विचारधारा नहीं है और न ही वंश की एकता है। पर सच्चाई है कुशवाहा के प्रत्येक भाग ऐतिहासिक हैं। बस एक दूसरे पर शक करना इन्हें छोड़ना होगा और एक दूसरे को सम्मान करना सीखना होगा। इतिहास के प्रति कठोर आग्रह
जातीय एकता के लिए खतरनाक है। कुशवाहा इन दिनों ऐतिहासिकता में ही उलझा है। ऐतिहासिक  शब्द के प्रति खास आग्रह , लडवाने व आपस में कटवाने के लिए 'दूसरों' ने गढ़ा है।

कुशवाहा सिर्फ कुशवाहा है चाहे वह इसके किसी भी उपजाति से संबंधित क्यों न हो। अहीर और बनिया से सीखना होगा। बिहार का जाति गणाना एक उदाहण है। यादव एक दूसरे पर सवाल नहीं उठाते ऐतिहासिक व ऐनेतिहासिक का।
कुशवाहा/ कुशवंशी/ कछवाहा शब्द भी मौर्य व शाक्य की तरह ऐतिहासिक हैं।


इन दिनों कुशवाहा के कुछ संगठन ऐसे लग रहे हैं-जैसे यह 'कुशवाहा ' का ग्रूप नहीं ; बाभन और चामार जन के हैं। मानव होने के नाते सबकी भलाई की बात समझ में आती है, पर कुशवाहा ग्रूप में...कुशवाहा आपस में लड रहे हैं। फिर इन्हें कोई सत्ता कैसे देगा? जनता की भलाई और आपसी एकता ही किसी जाति को सत्ता दिलाती है!

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