भोजपुरी लोक-गीत, रचनाकार- हरेराम सिंह

                         [1]

सुनु-सुनु रे ग्वालन लड़की , निकली तू चितचोर।
अतना बड़ संसार में, लागे मनवा नाहीं मोर।

तू कहाँ गंगा पार के, हम कहाँ रोहतास के।
सुनु रे अहिरिन लइकी, फँसल हियरा बिन जाल के।
तोहरी इयाद में जागल रहनी, हो गइले भोर।
अतना बड़ संसार में, लागे मनवा नाहीं मोर।

तू दीयरा के उमगल गंगा, हम मैदान के फूल।
तोहरे बिछोहवा अइसे, जइसे हियरा में धंसल सूल।
इ उमरिया भारी लागे, जइसे बाड़े थोर।
अतना बड़ संसार में, लागे मनवा नाहीं मोर।

कास फुलइले, सावन गइले, नदिया थरइले लोर।
तोहरे सुरतिया बिसरत नाहीं, विरह के अगिया पोर।
सुनु-सुनु रे साँवर लइकी, लहरिया उठे जोर।
अतना बड़ संसार में, लागे मनवा नाहीं मोर।

                            [2]
पटना शहरिया से , चलली रे निंदिया।
आवे में देर भइल, उदास मोरी बिंदिया।

कवनी कसूर दइयो, रोवे रे सेजरिया।
पनिया बीच मीन तड़पे, काटे ला रतिया।
कतनो मनाई मन के, तबो न माने।
अरे टूटी गइले ना, आसरा के नेहिया।

सवनी बरिसवा बरसे, नाहिं उ रुके।
अँखियन से आँसू बरसे, होठवा जे सूखे।
पिरितिया के बाढ़ में, जियरा बहेला।
अरे डूबी गइले ना, भँवर बीच दीयना के बतिया।

सोंस-घड़ियाल बाड़े, जिनगी के दुश्मनवा।
अँधेरी रतिया में सोची, पिराए मोरी मनवा।
सीनवा बीच बइठल, करवा से हुकवा के दाबीं।
अरे तइयो न मिटे ना, उ जियते मुआवे बल के जबरिया।
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