रात

सुप्रभात
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कुछ तो बात है तुझमें कि खींचा चला आता हूँ
लोग पूछते हैं हमसे कि क्या देख लिया है!
रात न जाने कैसे सर्द में तब्दील हो रही है
तुम्हारी यादें गर्म ताजगी दे जाती हैं
पूछता हूँ ख़ुद से कि मैं कौन हूँ
गर्म साँसें तुझे ढूँढ़ लेती हैं
गंगा की लहरों में एक अक्स झिलमिलाता है
जब भी जाता हूँ -तुझसे मिल आता हूँ

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