हरेराम सिंह की कविताएँ
हरेराम सिंह की कविताएँ 1. छल! मैं तुम्हें जानता था कि छल में माहिर हो जब बीएचयू में आया था कई छात्र जो चेहरे पढ़ नहीं पाते समझते थे तुम्हें देवता जबकि सच है कि तुम शुरू से थे दलित-पिछड़ों का विरोधी इनका हक़खाऊ! और अपना चेहरा दिखा ही दिया! तुमलोग कबकत खून पिओगे जोकों की तरह सूअर तो गू खाता है और गंदगी साफ़ करता है चलो एक तो बड़ा काम करता है! ' नॉट फाउंड सुटेबल' क्या होता है रे पतित बता-बता यही तुम्हारी योग्यता है रे प्रतिभा-हत्यारे! बहुजन विरोधी चिकनी बोली बचन वाले विषैले सर्प तुम किस जंगल से आया? न जाने कितने ऐसे विषधर विश्वविद्यालयों में निछुका विचर रहे हैं रह-रह डँस रहे है गरीब आदिवासी छात्र-छात्राओं को एक अंक देकर इंटरव्यू में उनके मूत्र से अपनी संतानों को अमर बना रहे हैं? यह कबतक चलेगा रे 'गऊ' हत्यारे क्या तुम्हें पता नहीं कि सीधी-साधी जनता गरीबी और जहालत की मार से बेहाल है और हजारों वर्षों से इन्हें तुमलोग दूहते आए? तुम्हें शर्म नहीं आई 'पंत-संस्थान'के तथाकथित रखवाले कि पिछड़े वर्ग के छौने राष्ट्र की संपत्ति हैं? इनकी आशाओं को मारना देश को मारने के समान ...