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Showing posts from August, 2020

भारत में जाति आ व्यवस्था और गोत्र

भारत में जाति-व्यवस्था और गोत्र ................... महर्षि कश्यप के आदि पूर्वजों को सिंधु घाटी सभ्यता के जनक के रूप में पौराणिक आख्यानों में जनक के रूप में स्वीकार किया गया है। और यह भी कि काश्यपवंश से ही सूर्यवंश,इक्ष्वाकु वंश व रघुवंश (जो बाद में अलग हो गए)की उत्पत्ति हुई हैं।(यूनियनपीडिया) पर,कुछ लोग ब्राह्मणों की महत्ता स्थापित करने के लिए इन ॠषियों को ब्राह्मण सिद्ध करते हैं।पं.हेमंत रिछारिया ने गोत्र का अर्थ बताया है-इंद्रिय आघात से रक्षा करने वाले।गो अर्थात इंद्रिय वहीं त्र से आशय रक्षा करना है। प्राचीन काल में चार ऋषियों के नाम से गोत्र परंपरा आरंभ हुई।अंगिरा,कश्यप, वशिष्ठ और भृगु ।बाद में जमदग्नि,अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य इनमें नये जुड़ गए। और गोत्र का अर्थ हो गया प्राचीन ऋषियों की संतान ।पर,वंश परंपरा सबकी अपनी -अपनी ज्यों-ज्यों बढ़ी त्यों-त्यों गोत्र का अर्थ बदला और लोग अपने कुल-पूर्वजों से जुड़े लोगों को अपना गोत्र या गोतिया बताया ।और थोपी हुई ब्राह्मणी गोत्र व्यवस्था से मुक्त होने लगे।कुशवाहों के गोत्र ऋषि कश्यप के नाम पर सिर्फ कश्यप न रहा। बल्कि स्थान व कर्म के नाम पर

कुशवंशी क्षत्रिय: बुद्ध के पहले और बुद्ध के बाद

कुशवंशी क्षत्रिय: बुद्ध के पहले और बुद्ध के बाद ...........…..... प्रो.(डॉ.)राम प्रकाश कुशवाहा कहते हैं कि 'कुशवाहों के इतिहास को समझना है,तो इतिहास को दो खंड में बाँटकर देखो-१.बुद्ध के पहले कुशवाहा और २.बुद्ध के बाद कुशवाहा।हालांकि यह विभाजन वे मूल क्षत्रियों को समझने के क्रम में कर रहे हैं और बताते हैं कि जो यहाँ के मूल क्षत्रिय नहीं हैं,बाहर के हैं ;उन्हें यहाँ के प्राचीन राजाओं ने भारत के भीतर प्रवेश ही नहीं करने दिए। इसलिए उनका ठिकाना देश के सीमा तक ही सीमित रह गया।आज जो बीच-बीच में दिख जाते हैं,जो अपना संबंध सीमा के आसपास से बताते हैं या हैं वे बाद के क्षत्रिय हैं।               यहाँ के जो मूल क्षत्रिय थे वे बुद्ध के पहले अपनी पूरी पहचान के साथ जीते थे और युद्ध भी करते थे,पर नया क्षत्रिय से कभी भी अपना वैवाहिक संबंध बनाना उचित नहीं समझा,कारण कि वे हूड़ों की संतान थे। पुराने क्षत्रिय में कुशवंशी कुशवाहा भी एक थे। जो मध्य भारत के बहुत ही आक्रामक जाति थी,इन्होंने भी इन्होंने ने भी शक-हूणों को अपने ठिकाने में प्रवेश नहीं करने दिया और एकक्षत्र राज करते रहे। शाक्य भी एक कुशवंशी क्ष

कुशवाहा क्षत्रियों की कुल देवियाँ

कुशवाहा क्षत्रियों की कुल देवियाँ और स्त्री-स्वाभिमान ........... कुशवाहा क्षत्रिय भारत के प्राचीन क्षत्रियों की एक शाखा है।इसके आदि-पुरुष राम के ज्येष्ठ-पुत्र कुश हैं। कुश ने पहली दफा अन्न देवी 'अन्नपूर्णा देवी'की पूजा अपने राज्य में शुरु की।यह पूजा बिना किसी वाह्याडंबर के फसलों की कटाई के वक्त होती थी।धीरे-धीरे कुशवाहा समाज विस्तार पाते गया।लोगों के ठिकाने बदले।कुछ ने अन्य पूर्णा  देवी जी की पूजा आज भी करते हैं। इसमें कुशीनगर का इलाका मुख्य है। डॉ.ललन प्रसाद सिंह ने बताया कि उनके पूर्वज 'मातृ देवी'की पूजा करते थे,जो कुश वंश से संबंधित हैं। इस तरह ऐसा प्रतीत होता है कि ठिकाने बदलने के साथ ही अलग-अलग अपनी कूल देवी स्वीकार कर लिए। इतिहास में यह नई बात नहीं है।कुशवाह भगवान सिंह नरवरिया भी यह स्वीकार करते हैं कि ऐसा कई बार हुआ होगा। उनके मुताबिक आगरा के आसपास 'बोलोन वाली माता'को कुशवाहा लोग अपना कुलदेवी मानते हैं। वहीं झारखंड़ी कुशवाहा 'शाकंभरी देवी'को अपना कुल देवी मानते हैं।कन्नौज व मैहर के पास के कुशवाहा 'अल्हत माँ'को अपना कुल देवी मानते हैं। राज

कुशवाहा-वंश का इतिहास

कुशवाहा क्षत्रिय: देशी नस्ल बनाम विदेशी नस्ल .............. इतिहास में जिन्हें 'नव्य क्षत्रिय'(New Kshatriya) , 'शक-हूणों के वंशज' तथा 'माउंट अबू पर पवित्र या बनाए गए अग्नि वंशीय'जिस क्षत्रिय का जिक्र आता है ,उनसे हमारा राम और कुश का तनिक भी नस्लीय संबंध नहीं रहा है।राम का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था। सीता बिहार की थीं। अत:उत्तर प्रदेश और बिहार से संबंध रखने वाले या इससे माईग्रेट कुशवंशी कुशवाहा ही देश के 'प्राचीन क्षत्रिय'(Ancient Kshatriya) हैं। और राम इनके पूर्वज हैं।कुशवाहों का जो घराना अयोध्या, कुशीनगर, कन्नौज, वाराणसी,रोहतास गढ़,मगध आदि से संबंध रखते हैं,वे कुश के असल वंशज हैं। रोहतास गढ़ ,जो विंध्य पर्वतमाला के कैमूर पहाड़ी वाले संभाग पर अवस्थित है।यहाँ कुश के वंशज कूर्म कुशवंशी ने अपनी राजधानी बनाई थी,और इन्हीं के वंशज् कैमूर पहाड़ी के उस पार (दक्षिण ओर)उतर कर मध्य प्रदेश के नरवरगढ़ में दक्षिण कौसल,कुशीनगर, रोहतास गढ़ के बाद अपना नया ठिकाना बनाया था और वहाँ से कुछ लोग राजस्थान भी माई ग्रेट किए और वहाँ भी अपना गढ़ बनाया ।आज रोहतास-गढ़ के कुशवाहे

बिहार में कुशवाहा की खापें-

बिहार में कुशवाहा के गोत्र: १.कुशस्थली,कन्नौजी २.बनाफ़र ३.जलहार,ज़रहार,जलहार ४.बनाफ़र ५.गोंयता ६.हरदिया,हल्दिया,हार्डिया ७.सांढ़ैला ८.भाम ९.केवान,केवानी १०.पिपरपतिया ११कमरोयां १२.भगतिया १३.मगधिया १४.सुकीयार/साक्यार .../.... आज ही के दिन  बीएचयू के मेघावी छात्र मात्र 21 वर्ष की उम्र में शहीद प्रभु नारायण ने  खगड़िया स्टेशन पर उतर कर अपने सहयोगियों के साथ खगड़िया थाना में अंग्रेज के दलाल सिपाही को भारत से भगाने के लिए चले थे । अंग्रेजों ने उन्हें तीन बार बोला रुको-रुको जब शहीद प्रभु नारायण नहीं रुके तब थाना के सामने अंग्रेज के दलाल सिपाहियों ने शहीद प्रभु नारायण को गोलियों से भून डाला!उन्होने आखिर दम तक तिरंगा को हाथ में थामे रहा और अंग्रेजों को भगाने के लिये देशभक्ति का नारा बुलंद करते रहे।उनकी शहादत की खबर ने जिलेवासियों को झकझोर कर रख दिया और देखते देखते पुरे जिला में आम जनों,युवाओं का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया ।इस प्रकार खगड़िया में 1942 का भारत छोड़ों आन्दोलन में युवाओं ने उनकी शहादत का बदला लेने के लिये अंग्रेज अधिकारियों का नींद हराम कर दिये ।ऐसे वीर सपूत को आज खगड़िया याद कर  क

उत्तर प्रदेश में कुशवाहों की खापें

उ.प्र.में कुशवाहों की खापें- १.साकिया २.साकसेनिया ३.चौदहिया   ४.खुररिया

बिहार के कुशवाहों के कुश

कुशवाहों के कुश,उनके रीति-रीवाज और स्वतंत्रता-संग्राम ............. कुश ने अपने समय में न्याय-परक व्यवस्था की थी।उसमें सबसे महत्वपूर्ण था- स्त्रियों के साथ न्याय व समानता का व्यवहार ।उन्होंने अपने ही काल में माँ सीता के निर्वासन पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए। और अपने पिता से इसका जवाब मांगा।तब से कुश पूरे स्त्री जाति की नजरों में नायक(Hero)बन गए। औरतों कहना शुरु किया-पुत्र हो तो कुश जैसा।इसी वजह से बाद की पीढ़ी जो स्त्रियों की आई वह शादी से पूर्व सपने देखने लगीं कि काश,मेरा पति भी कुश जैसा हो। जो पुरुष माँ को इतनी इज्जत करता हो,माँ के न्याय के लिए किसी से भी लड़ने के लिए तैयार हो,वह पुरुष निश्चित ही महान है। और वह निश्चित ही पत्नी,बेटी,और अन्य स्त्रियों के साथ इज्जत से पेश आएगा और उसे न्याय दि लाएगा।इस तरह इक्ष्वाकु कुल का गौरव कुश ने बढाया।उनके युग में स्त्रियाँ काफी स्वतंत्र हुईं,उन्हें कई तरह के विशेषाधिकार दिए गए। वे समाज में अपना विचार स्वतंत्र रूप से रख सकती थीं। इस तरह'कुश साम्राज्य'बढ़ने लगा। स्त्रियों ने भी अपने हाथों से बिने 'कुश आसन'ऐसे पुरुषों को बैठने के लिए देत

मध्य प्रदेश के कुशवाहों की खापें

१.सिलौरिया(Siloreya) २.सकोरिया (skoriya), ३.हार्डीया( hardiya) ४.देसवारे( desvare) ५.बड़े रिया(baderiya) ६.छोटे रिया (choteriya) ७.नरवरिया( Narwariya) ८.चंपावत (champawat) ९.तारोलिया(Taroliya) १०.कारकोलिया( Karkoliya) ११.राणावत(Ranavat) १२.शेखावत (Shekhawat) १३.बामोरिया(Bamoriya) १४.सिंघासिया(Singhasiya) १५.बड़गईंया( Badgaiyan) १६.नथावत(Nathawat) १७.चुड़ावत(Chudawat) १८.पन्नामी(pannami) १९.कच्छछवारे(kachchware) २०.कासौरिया(kushauriya) २१.सगरैया(Sagaraiya) २२.सुगरिया(sughariya) २३.पहाडिया(pahadiya) २४.गडारिया(Gararira)