भारत में जाति आ व्यवस्था और गोत्र
भारत में जाति-व्यवस्था और गोत्र ................... महर्षि कश्यप के आदि पूर्वजों को सिंधु घाटी सभ्यता के जनक के रूप में पौराणिक आख्यानों में जनक के रूप में स्वीकार किया गया है। और यह भी कि काश्यपवंश से ही सूर्यवंश,इक्ष्वाकु वंश व रघुवंश (जो बाद में अलग हो गए)की उत्पत्ति हुई हैं।(यूनियनपीडिया) पर,कुछ लोग ब्राह्मणों की महत्ता स्थापित करने के लिए इन ॠषियों को ब्राह्मण सिद्ध करते हैं।पं.हेमंत रिछारिया ने गोत्र का अर्थ बताया है-इंद्रिय आघात से रक्षा करने वाले।गो अर्थात इंद्रिय वहीं त्र से आशय रक्षा करना है। प्राचीन काल में चार ऋषियों के नाम से गोत्र परंपरा आरंभ हुई।अंगिरा,कश्यप, वशिष्ठ और भृगु ।बाद में जमदग्नि,अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य इनमें नये जुड़ गए। और गोत्र का अर्थ हो गया प्राचीन ऋषियों की संतान ।पर,वंश परंपरा सबकी अपनी -अपनी ज्यों-ज्यों बढ़ी त्यों-त्यों गोत्र का अर्थ बदला और लोग अपने कुल-पूर्वजों से जुड़े लोगों को अपना गोत्र या गोतिया बताया ।और थोपी हुई ब्राह्मणी गोत्र व्यवस्था से मुक्त होने लगे।कुशवाहों के गोत्र ऋषि कश्यप के नाम पर सिर्फ कश्यप न रहा। बल्कि स्थान व कर्म के नाम पर