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मैं रक्तबीज हूँ!

                          मैं रक्तबीज हूँ!                                                                                                    हरेराम सिंह की कविताएँ जिंदगी बहुत खूबसूरत है लोग अगर जीने दें                                         गर जीने न भी दें तो यह कमाल की है! १.बच्चों ने आज देखा   बगुलों का झुंड़  उतरा है     पसरे धान खेत में  मच्छी खाने    और निकलने ही वाला है   ओस की बूंदें  धान के पत्तों पर जमें हैं मोती जैसे    बडा सुहाना सवेरा दूर दू तक तक हिम जाला   कहीं नीम के पेड़ खडे  कहीं महुए बाँस    कहीं बालकों के झुंड खडे    तो कहीं बालिकाओं का दल चला   चद्दर गमछा टोपी बांधे  डलिया में चूरा भेली फांके    कितना अद्भुत कितना कोमल  पर ये क्या ?  देखो देखो -धन खेत से कोई आ रहा    हाथों में बगुले ला रहा  कुछ काले काले क्वाक हैं    चोंचों में उनके नाक हैं    कितना निर्दयी कितना धृष्ट ये मानव भी न     देख बालक कांप उठे   ठरे सहमें खलिहान से चुप चाप घर चले   और जोर जोर से रोने लगे   माँ ने पूछा क्या हुआ?   बच्चों का क्रंदन और बड गया ! २.किस गुनाह की सजा मिल रही? किस गुनाह की सज