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लोकतंत्र

लोकतंत्र .....हरेराम सिंह लोकतंत्र क्या किसी मुट्ठी का पत्थर है कि मारे किसी के मुँह पर और वह औंधे मुँह गिर पड़ा हाँ, वह पत्थर भी है जनता का प्यारा पत्थर जो पड़ते हैं सिर्फ राजाओं के मुँह पर तानाशाहों के मुँह पर कट्टरपंथियों के मुँह पर कठमुल्लाओं के मुँह पर पाखंड़ियों के मुँह पर लोकतंत्र क्या चिमनी का भट्ठा है कि जो चाहे झोंक दोगे जिसे चाहों जला दोगे जिसे चाहे भर दोगे हाँ, लोकतंत्र भट्ठी है जिसमें जलेंगे  एक जाति, एक नस्ल, एक मजहब, एक विचार के क्रूर सपने जिसमें जलेंगे जनता के दुश्मन! लोकतंत्र क्या दुधमुँहा बच्चा है? बिल्कुल नहीं  कि जैसे जी चाहे फुसला लोगे, नचा लोगे, डरा दोगे और नाजायज होने की शक में मार दोगे? बिल्कुल नहीं । लोकतंत्र दुधमुँहा बच्चा है सिर्फ माँ के लिए चाहे तो डाँट सकती है चाहे तो पुचकार सकती है चाहे तो सीने से लगा सकती है चाहे तो उसे देखकर मुस्कुरा सकती है चाहे तो उसे बीमार देख बेचैन हो सकती है चाहे तो उसे मरते देख रो सकती है उसके लिए लड़ सकती है! कुछ भी कहो- लोकतंत्र तुम्हारे लिए नहीं है, तुम्हारे परदादाओं के लिए नहीं है जैसे नाजियों के लिए नहीं है, हमासों के लिए नहीं