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Showing posts from April, 2021

𑂋𑂯𑂲 𑂩𑂵 𑂎𑂵𑂞𑂫𑂰 𑂧𑂵𑂁 𑂥𑂮𑂵𑂪𑂰 𑂣𑂩𑂰𑂢

𑂋𑂯𑂲 𑂩𑂵 𑂎𑂵𑂞𑂫𑂰 𑂧𑂵𑂁 𑂥𑂮𑂵𑂪𑂰 𑂣𑂩𑂰𑂢,𑂍𑂱𑂮𑂢𑂫𑂢 𑂯𑂯𑂩𑂵𑂪𑂰, 𑂎𑂵𑂞𑂫𑂰 𑂪𑂴𑂗 𑂔𑂰𑂫,𑂪𑂰𑂏𑂪 𑂥𑂰 𑂠𑂪𑂰𑂪,𑂍𑂱𑂮𑂢𑂫𑂢 𑂯𑂯𑂩𑂵𑂪𑂰, 𑂥𑂢𑂹𑂯𑂍𑂲 𑂩𑂎𑂰𑂆,𑂍𑂱𑂮𑂰𑂢 𑂯𑂵𑂁𑂏𑂰 𑂧𑂵𑂁 𑂢𑂡𑂰𑂆,𑂍𑂰𑂁𑂗𑂹𑂩𑂶𑂍𑂹𑂗 𑂎𑂵𑂞𑂲 𑂯𑂷𑂆, 𑂥𑂵𑂧𑂸𑂞 𑂯𑂧𑂢𑂲 𑂧𑂩𑂥,𑂃𑂧𑂲𑂩𑂢 𑂍𑂲 𑂄𑂏𑂱 𑂔𑂩𑂥,𑂎𑂵𑂞𑂫𑂰 𑂥𑂵𑂒𑂰𑂆, 𑂇 𑂥𑂅𑂘𑂲 𑂦𑂰𑂮𑂢 𑂠𑂱𑂯𑂲,𑂯𑂧𑂢𑂲 𑂮𑂳𑂢𑂥,𑂍𑂱𑂮𑂢𑂫𑂢 𑂯𑂯𑂩𑂵𑂪𑂰, 𑂍𑂵𑂯𑂴 𑂢𑂰 𑂣𑂴𑂓𑂵 𑂍𑂰 𑂯𑂰𑂪-𑂒𑂰𑂪 𑂥𑂰,𑂎𑂵𑂞𑂫𑂷 𑂣𑂵 𑂠𑂷𑂮𑂩 𑂍𑂵 𑂄𑂫𑂵𑂫𑂰𑂪𑂰 𑂩𑂰𑂔 𑂥𑂰, 𑂔𑂱𑂢𑂏𑂲 𑂍𑂵 𑂛𑂰𑂪 𑂯𑂧 𑂮𑂥𑂍𑂵 𑂓𑂱𑂢𑂰𑂆, ,𑂒𑂱𑂩𑂆 𑂍𑂵 𑂣𑂴𑂞 𑂢𑂱𑂯𑂢 𑂏𑂩𑂠𑂢 𑂧𑂷𑂚𑂰𑂆, 𑂏𑂰𑂀𑂫 𑂔𑂫𑂩𑂱𑂨𑂰 𑂧𑂵𑂁 𑂋𑂍𑂩𑂵 𑂩𑂰𑂔 𑂥𑂰,𑂨𑂯𑂲 𑂒𑂍𑂹𑂍𑂩 𑂧𑂵𑂁 𑂍𑂷𑂩𑂷𑂢𑂰 𑂥𑂠𑂢𑂰𑂧 𑂥𑂰. 𑂫𑂱𑂩𑂷𑂡 𑂔𑂞𑂅𑂪𑂰 𑂣𑂵 𑂣𑂳𑂪𑂱𑂮 𑂧𑂰𑂩𑂲,𑂨𑂯𑂲 𑂙𑂩𑂵 𑂧𑂰𑂩𑂵,𑂍𑂱𑂮𑂢𑂫𑂢 𑂯𑂯𑂩𑂵𑂪𑂰. 𑂗𑂱𑂥𑂱𑂨𑂰 𑂣𑂵 𑂮𑂳𑂢𑂱-𑂮𑂳𑂢𑂱 𑂢𑂱𑂢𑂱𑂨𑂰 𑂢 𑂄𑂫𑂵,𑂩𑂰𑂔𑂫𑂰 𑂍𑂮𑂰𑂆 𑂞𑂢𑂱 𑂢 𑂮𑂳𑂯𑂰𑂉, 𑂥𑂱𑂗𑂱𑂨𑂰 𑂍𑂵 𑂪𑂏𑂢 𑂥𑂰𑂗𑂵,𑂐𑂩 𑂧𑂵𑂁 𑂣𑂆𑂮𑂰 𑂢𑂅𑂎𑂵,𑂏𑂩𑂲𑂥𑂲𑂨𑂰 𑂩𑂳𑂪

कुशवाहा और मौर्य

कुशवाहा को एकीकृत करने की शक्ति सिर्फ कुश में ...... राम के पुत्रों में बड़े कुश के वंशज् कुशीनगर व रोहतासगढ़ में कुशवंशी कहे गए जिन्हें मुख-सुख की वजह कुशवाहा कहा गया.ये बाद में चलकर मध्य प्रदेश में क्रमश: कच्छवा या कछवाहा कहे गए.यहीं कछवाहा सत्ता और जमीन से जहाँ बेदखल हुए काछी कहलाए.कुशवंश की कड़ी में शाक्य भी हुए और शाक्यों की वह शाखा जो तराई की ओर गई -पिपल्ली वन में निवास की मौर्य कहलाए.डॉ.आशा विनोद ने 'चंद्रगुप्त मौर्य'(ISBN:978-93-84558-68-0)ने लिखा है कि "विडूडभ ने गौतम बुद्ध के जीवन काल में ही शाक्यों पर तीन बार आक्रमण किया था,लेकिन उन दिनों गौतम बुद्ध कपिलवस्तु आ गए थे ,अत:विडूडभ को सफलता नहीं मिली थी,लेकिन अंतिम युद्ध में शाक्य कमजोर पड़ गए और उनमें से कुछ लोग हिमालय की तराई में स्थित पिप्पल वन की ओर चले गए और वहीं पर बस गए .उस समय यहां पर पीपल के वृक्षों का घना जंगल था और बड़ी संख्या में मोर रहते थे.शाक्य वंश के लोग पीपल और मोर दोनों को पसंद करते थे ,अत:यहीं पर जंगल साफ करके खेती करने लगे.कालांतर में इस क्षेत्र का नाम पिपप्ली वन और इन लोगों को मोर पक्षी का संरक्

Fakir Mohan Senapati's story- 'Rabati' and 'Dakmunshi'

फकीर मोहन सेनापति की कथा- साहित्य में ओड़िया जाति की खूश्बू  .......डॉ.हरेराम सिंह.. ओड़िया भाषा को संस्कृतजनों ने विशेष तवज्जो कभी नहीं दी जबकि 'ओड़िया टोन'और 'संस्कृत टोन'में बहुत समानताएँ हैं.तरंग टीवी -श्री पिक्चर ने फकीर मोहन सेनापति की कहानी 'रेवती'(1898)को फिल्मांकित किया और उसे ब्रॉडकास्ट भी किया.पात्रों की आवाज और पार्श्व-ध्वनि ओड़िया जाति की टोन को हू-ब-हू प्रकट कर रही थी.इस फिल्म में कोई ऐसा दृश्य नहीं था जो उस जाति से अलग हो.हालांकि अन्य भाषा-भाषी लोगों के लिए उसके शब्दों को पकड़ना मुश्किल जरूर होगा किंतु वातारण का वितान इतना प्रकृतिजन्य व ओड़ियामय था कि यह कहानी अपने पूरे प्रभाव से आलोडित करने में नहीं चूकती.'तरंग टीवी-श्री पिक्चर'ने सेनापति की कहानी 'डाकमुंशी'को भी सीरियल रूप में प्रसारित किया और जो अपने पहले दृश्य और पार्श्व-ध्वनि से सहज ही आकर्षित कर लिया.फकीर मोहन सेनापति का बचपन अभाव में गुजरा था,पढ़ाई पूरी करने के लिए बाल मजदूरी भी करनी पड़ी थी.बचपन में माता-पिता गुजर गए थे.पितामही ही मुख्य सहारा रही.इनका बचपन का नाम ब्रजमोहन थ