Fakir Mohan Senapati's story- 'Rabati' and 'Dakmunshi'

फकीर मोहन सेनापति की कथा- साहित्य में ओड़िया जाति की खूश्बू 
.......डॉ.हरेराम सिंह..
ओड़िया भाषा को संस्कृतजनों ने विशेष तवज्जो कभी नहीं दी जबकि 'ओड़िया टोन'और 'संस्कृत टोन'में बहुत समानताएँ हैं.तरंग टीवी -श्री पिक्चर ने फकीर मोहन सेनापति की कहानी 'रेवती'(1898)को फिल्मांकित किया और उसे ब्रॉडकास्ट भी किया.पात्रों की आवाज और पार्श्व-ध्वनि ओड़िया जाति की टोन को हू-ब-हू प्रकट कर रही थी.इस फिल्म में कोई ऐसा दृश्य नहीं था जो उस जाति से अलग हो.हालांकि अन्य भाषा-भाषी लोगों के लिए उसके शब्दों को पकड़ना मुश्किल जरूर होगा किंतु वातारण का वितान इतना प्रकृतिजन्य व ओड़ियामय था कि यह कहानी अपने पूरे प्रभाव से आलोडित करने में नहीं चूकती.'तरंग टीवी-श्री पिक्चर'ने सेनापति की कहानी 'डाकमुंशी'को भी सीरियल रूप में प्रसारित किया और जो अपने पहले दृश्य और पार्श्व-ध्वनि से सहज ही आकर्षित कर लिया.फकीर मोहन सेनापति का बचपन अभाव में गुजरा था,पढ़ाई पूरी करने के लिए बाल मजदूरी भी करनी पड़ी थी.बचपन में माता-पिता गुजर गए थे.पितामही ही मुख्य सहारा रही.इनका बचपन का नाम ब्रजमोहन था.जन्म 14 जनवरी 1843 ई.में कटक जिले के बालेश्वर में हुआ था.दादी माँ ने किसी पीर से मनौती की थीं कि पोता स्वस्थ्य हो जाए.स्वस्थ्य होने के बाद दादी माँ ने 'फकीर मोहन'कह ब्रजमोहन को पूकारने लगीं;ताकि पोते की आयु लंबी हो.'रेवती'कहानी में रेबती के माता-पिता भी हैजा के प्रकोप से इस दुनिया से चल बसते हैं और घर में उसकी दादी एक सहारा रहती है.दूसरा सहारा वासुदेव रहता है जो रेबती का शिक्षक है ;पर वह भी हैजा का शिकार हो जाता है.यह सब घटना कटक जिले के हरिहरपुर परगना के पाटपुर गाँव की है.जहाँ रेबती का पिता श्यामबंधु प्रजाजनों से लगान वसुलता है वह स्थानीय जमींदार का इस गाँव का मुंसी है.लोग भी उस पर खुश रहते हैं क्योंकि जमींदार के प्यादे जब किसी किसान को लगान नहीं देने की वजह पकड़ने-पीटने आते हैं तो श्यामल खिलापिलाकर कुछ दे दाकर उन्हें विदा कर देता है .उसका तनख्वाह दो रुपया प्रतिमाह है पर लगान की रसीद काटते वक्त वह दो पैसा और कमा लेता है.इस तरह घर-गृहस्ति चलती है.पर उसके मरने के मुख्य कारणों में उसकी दादी-मां रेबती का पढ़ना लिखना मानती है.दिनेश कुमार माली ने 'रेवती ' और 'डाकमुंसी'का हिंदी अनुवाद किया है.रेबती की दादी कहती है-"क्या पढ़ेगी रे?औरत जात और पढ़ाई-लिखाई से क्या ताल्लुक?"फिर भी वासुदेव के सानिध्य में वह बहुत कम दिन में पढना-लिखना सीख जाती है.एक दिन श्यामबंधु अपनी माँ से रेबती के लिए वर की बात कर रहा है.वह वर कोई नहीं वासुदेव ही है.इस पर रेबती की दादी अपने बेटे से पूछती है-"धन-दौलत से क्या लेना-देना ?पहले जाति के बारे में ध्यान दो,घर में रहेगा तो...?"पर कौन जानता था कि लगन से पहले ही श्यामबंधु,उसकी पत्नी और वासुदेव गुजर जाते हैं.सन् 1900 के पूर्व और उसके बीस साल बाद तक हैजा का फैलना आम बात थी.इसमें परिवार के परिवार और गाँव के गाँव उजड जाते थे.इस  कहानी में रेबती का परिवार और भावी-संसार उजड चुका है.वासुदेव की मृत्यु के बाद वह गुमसुम,उदास व अवसाद में रहने लगी है.और हल्के बुखार की वजह वह खाना भी ठीक से नहीं खा पा रही.दादी उसे 'करमजली,मुँहझौंसी'कह गाली देती है और प्रत्येक शाम रोती है पर वसु के चले जाने के बाद वह भी बहुत टूट चूकी है.उसका ख्याल है कि वसु की मृत्यु उसकी नादानी ने ली है-"परदेस में आकर अपनी बुद्धि से जान गँवा बैठा."यह पूरी कहानी एक कायस्थ परिवार और हैजे की है जहाँ लगान और साहूकारों के शोषण कहानी को ट्रैजिक बना दे रहा है.कहानी के अंत में बुढिया रेबती के लिए भात पकाना चाह रही है किंतु खर्ची व पैसे दोनों घर में नहीं हैं.वह एक फूटी पीतलोटी लेकर हरि साह की दुकान पर जाति है.वह बनिया-साह पहले तो पीतलोटी लेने से मना करता है कि यह तो फूटी हुई है किसी काम की नहीं है.किंतु बाद में चार सेर चावल और आधा सेर दाल व कुछ नून-देकर वह लोटा रख लेता है.विपत्ति के समय भी बनिया वर्ग का हृदय कब भला पसीजा है.यह कहानी यह भी बताती है.पर महात्रासदी इस कहानी में तब देखने को मिलती है जब रेबती को ढूंढते वह घर के पिछवाड़े बाडी में वह जाती है.कुछ प्यार कुछ गाली के साथ वह रेवती को जगाना चाहती है किंतु रेबती के ठंढे हाथ से उसे सन्न मार देता है और वह भी इस दुनिया से चल बसती है.'रेवती'कहानी एक भरे-पूरे परिवार की उजडने की कथा है और इन्हें उजाड़ने में प्राकृतिक प्रकोप,बीमारी,शोषण,बेकारी,जमींदारी और साहूकारी प्रमुख है.
                 फकीर मोहन सेनापति की दूसरी कहानी 'डाकमुंशी'बिगड़े हुए उस बेटे की कहानी है जिसका बाप हरिसिंह कटक के हेड़ ऑफीस में एक छोटे कर्मचारी की हैसियत से काम करता है और पचपन साल सेवा दे चुका है.उसका बेटा गोपाल गाँव की पाठसाला में पढ़ रहा है.एक दिन जब जब हेड़ पोस्ट मास्टर कहता है कि -"हरि सिंह ,तुम पचपन साल के हो गए हो,अब तुम्हें पेंशन मिलेगी.अब तुम नौकरी में नहीं रह सकोगे."इस पर हरि सिंह को चिंता घेर लेती है.वह खुद पेट काटकर बीबी और बच्चे के लिए चार रुपया गाँव भेजता है और न्यूनतम खर्च में स्वयं का गुजारा करता है.किंतु हरि सिंह-" सपना संजोकर रखा है -गोपाल ,कस्बे के पोस्ट ऑफिस में सब पोस्टमास्टर होगा-कम से कम गाँव में पोस्टमास्टर तो होगा."इस ख्याल से वह अपने बेटे को गाँव से कटक ले जाता है जहाँ उसकी शिक्षा इंग्लिश मीडियम में होती है.सब पोस्टमास्टर होने के लिए अंग्रेजी शिक्षा जरूरी है.हरि सिंह अपने बेटे के सिफारिश व नियुक्ति के लिए पोस्टमास्टर और कुछ उच्च अधिकारियों की लगन से सेवा करता है,उनके लिए खाना बनाता है,और खिलाने-पिलाने से लेकर सुलाने तक में कोई चूक न हो इसका ख्याल रखता है.एक दिन भक्रामपुर में उसका बेटा गोपालचंद्र सिंह सब पोस्टमास्टर बनकर आ जाता है.हरि सिंह अपने बेटे के लिए जूता से लेकर कीमती कपड़ा तक इंतजाम करता है ताकि उसका लडका 'बड़ा बाबू'लगे.इसी के बाद इस कहानी में 'व्यक्ति के भीतर वर्गीय बदलाव'को फकीर मोहन अच्छी पड़ताल करते हैं और कहानी को मोहभंग की स्थिति में ले जाकर अंत कर देते हैं.गोपाल चंद्र सिंह के पास अपने पैसे आने शुरु हो जाते हैं,अमीर लडके और बडे लोगों से उसकी दोस्ती होती है और वह धीरे-धीरे उस वर्ग के सभी अवगुण ग्रहण करते चला जाता है.उसके करेक्टर में बहुत बदलाव हो चुका है.हरि सिंह का गोपाल अब गोपाल नहीं साहेब हो गया है.हरि जो चाह रहा था उसका बेटा वह बन गया है किंतु उसे क्या पता था कि क्लास बदलने से लोगों के करेक्टर भी बदल जाता है?गोपाल उसका अब बेटे जैसे न था.वह अपने पिता के पूराने वस्त्रों और खांसी से घृणा कपता था .अपने पिता को ही वह अपनी इमेज व रुतबे के खिलाफ मानता था.कोई आता तो वह अपने पिता को चपरासी कह बुलाता और चपरासी सा काम लेता.एक दिन रात में हरि सिंह की खाँसी उपटती है.नींद में बाधक जानकर अपने हेल्पर से उसे झाड़ी में फेकने का आदेश देता है और लात से मारता है.किंतु हेल्पर की संवेदना उसे बचा लेती है और वह गाँव चला जाता है जहाँ वह दो बीघे जमीन किसान को बँटाई पर देकर उससे मिले अन्न से जीविकोपार्जन करता है.हरि भजन करता है और छोटे बच्चों को पढाता भी है.इस तरह वह गाँव में खुश है और उसका बेटा भी खुश है.पर वह अब भ्रम में नहीं है.इस कहानी के द्वारा फकीर मोहन परिवार,रिश्ते और पद व पूँजी का यथार्थ चरित्र प्रस्तुतकर अपने यथार्थवादी एप्रोच का परिचय देते हैं जहाँ पैसे के आगे भावना,रिश्ता और पिता-पुत्र मोह को बीते हुए कल की सामाजिक आग्रह सिद्ध करते हैं और दिखाते हैं कि कैसे क्लास आदर्शवादी सामाजिक ढाँचे और समझ को तोड़ देता है.ललन प्रसाद सिंह की 'जनपथ'में छपी कहानी 'पिता'और फिल्म 'बागमान'इसी दृष्टिकोण से लिखी कहानी व बनाई गई फिल्म है.पूर्व की उषा प्रियंबदा की कहानी 'वापसी' इसी यथार्थ को प्रस्तुत करती कहानी है.
    ओडिया साहित्य में फकीर मोहन सेनापति की शानी कोई कहानीकार नहीं.'लक्षमिनिया','पेटेंट मेडिसिन'और 'सभ्य जमींदार ','राण्डिपुअ अनंता'इनकी प्रसिद्ध कहानियों में से हैं.उड़िया कथा साहित्य को सर्जन से लेकर सींचने व उसे विकसित करने का श्रेय इन्हीं को जाता है.इन्हें पहला यथार्थवादी रचनाकार होने का रास्ट्र में गौरव प्राप्त है.1860 ईं में 'बोध दायिनी'पत्रिका में इनकी 'लक्षमिनियाँ'छपी.जिसकी कोई कॉपी फिलहाल मौजूद नहीं है.1868ई.में 'उत्कल प्रेस'की स्थापना इन्होंने की.1871 में ये नीलगिरी के दीवान बने तब तक इनकी पहली पत्नी लीलावती भी गुजर गईं थी हालांकि इनकी दूसरी पत्नी कुमरी देवी की मृत्यु भी बहुत कम समय में ही हो गई थी.सन् 1892 ई.में 'उत्कल भ्रमण'की इन्होंने रचना की और दूसरी पत्रिका 'सेवादायिनी'निकाली.सन् 1937 में लंदन विश्वविद्यालय के शोधार्थी जे.पी.बौल्टन ने इन पर शोध किए और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.'गद्य कोश'ने यह स्वीकारा है कि सोवियत रूस के 'अक्टूबर विप्लव'के पूर्व ही इनका उपन्यास 'छमाण आठ गुंठ'छप चुका था.उड़िया कथा साहित्य के जनक व महान कथाकार का निधन कटक जिला में 18जून 1918को हो गया.बालेश्वर में 'शांति कानन'रवीन्द्र नाथ टैगोर के 'शांति निकेतन'और टॉल्स्टॉय के यासनाया पोलयाना व प्रेमचंद के लमही की याद दिलाते हैं.
ओड़िया साहित्य के परवर्ती कथाकारों में लक्ष्मीकांत महापात्र,भगवती चरणपाणी ग्रही,गोपीनाथ मोहंती,रामचंद्र बेहरा,प्रतिभा राय,किशोरी चरण दास,सरोजिनी साहू,मोनालिसा जेना,सहदेव साहू,सातकडि होता ,रवि पटनायक और गायत्री होता आदि भी कहीं न कहीं रस-पानी लेते रहे हैं.फकीर मोहन सेनापति पूरी ओड़िया जाति व साहित्य के लिए एक अद्वितीय खुश्बू हैं,जिन्हें पाकर दुनिया का कोई भी हृदयवान व्यक्ति गदगद हो सकता है!

संपर्क:ग्राम+पोस्ट:करुप ईंगलिश,भाया:गोड़ारी,जिला-रोहतास(बिहार)पिन.न.802214.मो.8298396621.

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