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डर काहे न लागै मजूरन को-शार्दूल कुशवंशी

डर लागै है,डर लागै है। हमनी मजूरवन कहां जाईं, का खाईं?डर लागै है! ना रोटी,न साग हडुए, नाहीं घर -द्वार है। ऊपर से कोरोना,जान मारै है। डर लागै है,डर लागै है। अपनी धरतिया,अपने गंउंवा, बेरि-बेरि इयाद आवै है, बबुआ खांसत बडुए त, प्रान सूख जावै है, डर लागै है,डर लागै है! यह शहर के बड़ लीला, न माड़ मिलै,न भात गिला, पैइसो त नईखे ,न हाथे ढेला, कोरोना से हाड़ कांपत बडुए, पुलिसिया डंडा देला, डर लागै है,डर लागै है। कवन गईल बिदेस,कवन घिनौना रोग लगईलस, हम गरीबवन के,जीते जी मुअइलस, डर लागै है,डर लागै है, हाथ जोरि अरज करि, चेक-सेक कके,जो करेके बा,सो करिं ठीक बानी त गांव भेंजि,नाहिं त अपने भाग पे छोड़ीं, डर लागै है,डर लागै है! घर पीछे पांच जन,हमरे असरे जीये, गाय,गरु,चमगादड़ से बबुआ मोर डरे, डर लागै है,डर लागै है। राम-राम जपतानि,रामे जे सहारा, पंडित, मोलवी,पादरी सब लोग हारा। कोरोना के टीका बनि जाईत, सुनर होखित उ साईत, डर लागै है,डर लागै है! +++शार्दूल कुशवंशी+++