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Showing posts from July, 2022

'हाशिए का चाँद' एक अवलोकन

डॉ हरेराम सिंह का काव्य- संग्रह " हाशिए का चाँद "  एक अवलोकन,,,, कविराज कवि।  यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि कवि डॉ हरेराम सिंह अपनी उम्र से भी ज्यादा पुस्तकें लिखकर हिंदी लेखन साहित्य में एक रिकार्ड कायम किया है जो काबिले तारीफ है।  कवि हरेराम सिंह एक सफल कवि के साथ- साथ कहानीकार, उपन्यासकार, समीक्षक और आलोचक भी हैं।  " हाशिए के चाँद " में कुल 160 कविताएँ संगृहीत हैं।  इनकी कविताओं में आम आदमी की त्राशदी की झलक देखने को मिलती है।  आम आदमी का दर्द, पीड़ा और बेचैनी स्वतः- स्फुर्त महसूस होती है।  श्रेष्ठ कविता की पहचान है कि पढ़ते ही समझ में आ जाए और पाठक रस से भाव- विभोर हो जाए और यह आकलन सापेक्ष दिखता है।  कवि की आत्मा की निगुढ़तम आकांक्षाओं का आभास स्वप्नों के रूप में झलकता है और कवि जिन स्वप्नों को कविता में अंकित करता है, उन्हें रचने में उसके अभ्यंतर में भीषण संघर्षण- विघर्षण का मंथन चक्र चलता है।  कवि की कविताओं में उसकी जीवन- कालव्यापी साधना निहित होती है।  संसार के रात- दिन के सुख- दुःख, आशा- निराशा, स्नेह- प्रेम, कलह द्वंद के भीतर भी विरह का खेल चलता है। को

भूमिका: चाँद के पार आदमी

कविता सृजन के पीछे... ................... हम जब किसी पुस्तक की रचना कर रहे होते हैं, तब हमारे सामने मात्र एक व्यक्ति नहीं ; बल्कि पूरा समाज, पूरा वर्ग होता होता है जिसमें से कुछ ऐसे दु:ख, ऐसी चिंता हमें आलोड़ित करती है और उसका आलोड़न हमें लिखने पर बाध्य करता है। इसलिए हम कभी यह नहीं कह सकते कि किसी एक व्यक्ति विशेष की वजह हम रचना-कर्म नहीं कर पा रहे हैं। चूँकि हमारे लक्ष्य महान होते हैं , हमारे सम्मुख जनता होती है, इसलिए हम लिखते हैं। रचना-कर्म करना कवि व लेखक का उत्तरदायित्व है! इसमें संकोच दिखाने का अर्थ हमारे भीतर का कवि का मर जाना होता है।कविता मनुष्य के मर्म को उद्भाषित करती है और उस मर्म तक पहुँचने में हमारी मदद करती है, प्रेरणा देती है। अकाल के वक्त जिस तरह जीव पानी बिना बेचैन रहता है, अन्न बिना मरणासन्न तक पहुँच जाता है, ठीक उसी तरह मनुष्य संवेदना तथा प्रेम के अभाव में अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है। कविता मनुष्य को मृत होने से बचाती है।  आज लोगों के पास गाड़ी है, बंगले हैं, मोबाइल है, लैपटॉप है और भी बहुत कुछ हैं जिसे यहाँ पूरी तरह बता पाना संभव नहीं , फिर भी उसके पास जीवन की

कुशवाहा वंश

कुशवाहा-वंश का इतिहास ................डॉ.हरेराम सिंह...... प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स कर्नल टॉड ने यह स्वीकारा है कि रामचंद्र जी के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज ही कुशवाहा/कुशवंशी कहलाए।विलियम आर.पिच ने भी लॉर्ड कुश से कुशवाहा क्षत्रिय की उत्पत्ति बताई है। गंगा प्रसाद गुप्त ने भी माना है कि कुशवाहा कुश के असली संतान है।कुश के वंशजों को बिहार में कुशवाहा व कुशवंशी,मध्य प्रदेश में कुशवाहा व कछवाहा और राजस्थान में कुछवाह व कुशवाह  और उत्तर प्रदेश में काछी ,कुशवाहा व कछवाहे कहा जाता है। आज यह भारत के प्राचीन लड़ाकू व कृषक जाति के रूप में जानी जाती है और यह लगभग पूरे भारत में फैली हुई है। क्या हम सांस्कृतिक रूप से कंगाल बनाए जा रहे हैं? ............. मुझे कभी-कभी लगता है कि राम इस देश के सांस्कृतिक-नायक हैं और वे इतने गहरे तक हम सबमें प्रवेश कर गए हैं कि इस देश को सांस्कृतिक रूप से कंगाल बनाने के सपने देखने वाले लोगों को ऐसा लगता है कि बिन राम को सिंहासन च्यूत किए,उनकी बात बनने वाली नहीं है। मेरे इस विचार से दूसरों को लग सकता है कि ये क्या कह रहे हैं। पर,मुझे ऐसा ही लगता है। वजह,राम की व्याप्ति

मैं रक्तबीज हूँ

मैं रक्तबीज हूँ! हरेराम सिंह की कविताएँ जिंदगी बहुत खूबसूरत है लोग अगर जीने दें गर जीने न भी दें तो यह कमाल की है! .... १.बच्चों ने आज देखा   ....   बगुलों का झुंड़    उतरा है     पसरे धान खेत में  मच्छी खाने    और निकलने ही वाला है   ओस की बूंदें  धान के पत्तों पर जमें हैं मोती जैसे    बडा सुहाना सवेरा दूर दू तक तक हिम जाला   कहीं नीम के पेड़ खडे  कहीं महुए बाँस    कहीं बालकों के झुंड खडे    तो कहीं बालिकाओं का दल चला   चद्दर गमछा टोपी बांधे  डलिया में चूरा भेली फांके    कितना अद्भुत कितना कोमल  पर ये क्या ?  देखो देखो -धन खेत से कोई आ रहा    हाथों में बगुले ला रहा  कुछ काले काले क्वाक हैं    चोंचों में उनके नाक हैं    कितना निर्दयी कितना धृष्ट ये मानव भी न     देख बालक कांप उठे   ठरे सहमें खलिहान से चुप चाप घर चले   और जोर जोर से रोने लगे   माँ ने पूछा क्या हुआ?   बच्चों का क्रंदन और बड गया ! ....... २.किस गुनाह की सजा मिल रही? ........ किस गुनाह की सजा मुझे मिल रही है रोज ब रोज मुल्क तो अपना  है,घबरये हुये लोग क्यों मिल रहे रोज ब रोज सबको चैन से जिने का हक़ है आपको भी हमें भी फिर भी