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Showing posts from October, 2019

महान हृदय का लेखक डॉ.ललन प्रसाद सिंह

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  डॉ.ललन प्रसाद सिंह  डॉ.ललन प्रसाद सिंह हिंदी के वरिष्ठ लेखकों में से एक हैं।इन्होंने उपन्यास व आलोचना पर विशेष कार्य किया है।"आल्हा ऊदल:प्रेम और युद्ध "(२०११) तथा " A Bloomed Woman"(२०१३)इनके चर्चित उपन्यासों में से रहे हैं।"सपनों को जीता आदमी"(२०१४)इनकी आठ कविताओं का संग्रह है।आलोचना पुस्तक "आलोचना की मार्सवादी परंपरा" भी सन् २०१४ में ही किशोर विद्या निकेतन वाराणसी से छपकर आई;जबकि इसके पूर्व दो आलोचना पुस्तक "मुक्तिबोध और उनका साहित्य" (२००७) और "आलोचना: संदर्भ मार्क्सवाद" (२०१२) जानकी प्रकाशन पटना से छपकर आ चुकी थीं।राजेंद्र यादव ने इनकी कहानी "सिलसिला" को 'हंस' में छापा।प्रमोद कुमार सिंह ने लिखा है कि डॉ.ललन प्रसाद सिंह की पुस्तक 'आलोचना: संदर्भ मार्क्सवाद'कई रचनाओं ये बहाने मार्क्सवादी आलोचना की विवेचना करती है।(दैनिक जागरण, पटना,३०दिसंबर२०१२)।डॉ.हरेराम सिंह की "डॉ.ललन प्रसाद सिंह: जीवन और साहित्य" (२०१५)आलोचना पुस्तक इनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर फोकस करती है। इस पुस्तक में लल

बिहार की सावित्रीबाई फुले -इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुंती देवी

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समीक्षक:डॉ.हरेराम सिंह   हरेराम सिंह संपर्क: 9431874199 पुस्तक :इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुंती देवी,लेखिका:पुष्पा कुमारी मेहता,प्रकाशक:द मार्जिनलाइज्ड दिल्ली, मूल्य:३००रुपये पुष्पा कुमारी मेहता की पुस्तक "इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुन्ती देवी"हमारे लिए व आपके लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है!यह पुस्तक बिहार की उस स्त्री की जीवन-कथा है ,जिसके भीतर समाज को बदलने का ख्वाब पलते थे.और वह ख्वाब न तो झूठा था,न ही गलत!उस जमाने में कुंती देवी स्त्रियों को अनपढ़ नहीं देखना चाहती थीं और न ही पुरुषों से उन्हें वे किसी तरह कम आंकती थीं।आप आश्चर्य करेंगे कि उनके भीतर आजादी के पूर्व ही आजादख्याली बसती थी.वह एक कृषक बाला थीं,जिन्होंने अपने कर्म से पूरे इसलामपुर को न सिर्फ प्रभावित कीं,बल्कि पूरे बिहार की स्त्रियों के लिए सावित्रीबाई फुले की तरह प्रेरणा की स्रोत बन गईं!वह भी उस वक्त जब भारत ग़ुलाम था ,चारो तरफ गरीबी थी ,शिक्षा का घोर अभाव था,उस घड़ी जब किसानों को जीने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी,उनके लिए शिक्षा दूर की कौड़ी की तरह थी ,हमारी कुंती देवी ने कड़ी मेहनत से स्त्रियो

पहाड़ों के बीच से...

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हरेराम सिंह की चालीस कविताएँ १. हम बागी थे .............. हम बागी थे सत्ता हमें इसी नाम से जानती थी हम किरकिरी थे उसकी आँखों की; वह हमसे करवाना चाहती थी जयगान, और मैं था कि गा नहीं पाता था चापलुसी का गान वह हमसे नफ़रत करती थी जैसे मैं उससे इस नफरत के खेल में मैं मारा जाता था वह जीत जाती थी,मैं हार जाता था मगर इस हार-जीत के खेल में, वह मुझसे डरने लगी; न जाने क्यों वह हमसे दूर रहने लगी फिर उसने उपाय सोची मुझे पटाने की, पुरस्कार देने की। और उसने एक दिन भरे महफील में, मुझे बड़ा कवि कहा, और मैं खुश हो गया पुरस्कार पा! फिर क्या था उसकी तारीफ में हर इक कसीदे काढ़ता रहा और दरबार में बहबाही मिलती गई अतीत का गीत गाता रहा मगर,जनता मुझसे दूर होती गई, हमारी कविताओं का संसार सीमटता चला गया, और एक दिन खुद इतना सीमट गया कि फंदे के सिवा रास्ता न बचा! २. आवाज मद्धिम-सी ...….. सांझ परह लौटते वक़्त खेत से, दिल धड़कता रहा! बीमार बच्चे की बाँसुरी की आवाज, आज सुनाई नहीं पड़ रही थी; दीवट पर का टिमटिमाता दीपक, हवा के झोंकों के आगे, झुक जा रहा था बार- बार! चारों तरफ गह

न्यूज गाँव घर का

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प्रज्ञा बौद्ध संघ व सम्राट अशोक युवा क्लब के संयुक्त तत्वावधान में बिहार के काराकाट के करुप इंगलिश गांव में  सम्राट अशोक धम्म विजय दिवस मनाया गया ।संयोजकों में हीरालाल सिंह मौर्य व विनीत कुमार सिंह ने गांव के वैसे युवक जो मैट्रिक नें अधिकतम अंक लाए थे उन्हें ( ज्योति कुमारी,मंजू मोनम प्रकाश व मनीष कुमार)पुरस्कृत किया।इस मौके पर गांव के शिक्षकों मिंटू प्रताप सिंह,डॉ.हरेराम सिंह,हरेंद्र कुमार सिंह,अख्तर अली,शिवलखन राम,गुड्डू दूबे और संजय यादव को सम्मानित किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुआ इस शपथ के साथ कि हिंसा का मार्ग त्याग कर अहिंसा का मार्ग अपनाना ही धम्म विजय है,जैसा कि कलिंग विजय के बाद अशोक ने किया।उनका हृदय परिवर्तन ही सबसे बड़ा धम्म विजय है।इस मौके पर शिक्षक मिंटू प्रताप सिंह ने कहा कि गांव की  लड़कियाँ अगर उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं तो यह सिर्फ़ गांव की उपलब्धि मात्र ही नहीं है,बल्कि यह राष्ट्र की उपलब्धिहै।डॉ.हरेराम सिंह ने कहा कि लड़कियाँ संस्कृति के वाहक हैं,अगर वे शिक्षित होती हैं ,तो संस्कृति और निखर जाएगी और हाशिए का समा हमारा गाँव,हमारा मंच लेखक-