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Showing posts from February, 2020

रात के आखिरी पहर तक

रात के आखिरी पहर तक ......... मुहब्बत के तराने गूँजते थे कभी उसके घर में भी कभी चुपके-चुपके रात के आखिरी पहर तक, खतम नहीं होता था ख़त का लिखना लैंप की धीमी रोशनी में,कम्बल में घुमड़कर चोरी-चोरी, चुपके-चपके एक स्निग्ध मुस्कुराहट के साथ-एक अफसाना भी जिंदा था जो कभी तैरता था घड़ी-दर-घड़ी अब वहाँ, सिर्फ सिसकी सुनाई पड़ती है- उस कमरे में,उस दीवार के पास। हालांकि, आज कोई रहता नहीं है वहाँ, न ही कोई दीप जलता है किसी की आस में, रात के आखिरी पहर तक। बस,कुछ नये वर्ष के ग्रीट्इंग्स  जो खामोश हैं;हैं-टेबिल के पास और उस पर के अक्षर- सुनहरे अक्षर, कभी न मिटने वाले, बिल्कुल चुप हैं! लगता है किसी ने धोखा किया है;उनके साथ रात के आखिरी पहर में। जब सबेरा होने में कुछ पल रह गये थे शेष उस घड़ी किसी की चीख़ने की आवाज आई और दिल कांप गया! विश्वासों के मौसम में,प्यार का बहाना करके आने वाले चमन के फूल के साथ किसी ने अन्याय किया है, रात के आखिरी पहर में ! ++++डॉ.हरेराम सिंह++++

नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी

नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी ............. नीम की पत्तियों से उतरती चाँदनी का छिटकना हमें याद है। तुम्हारे हाथों की नर्म अंगुलियों का बहकना हमें याद है।। कितने प्यार से छुआ था उस घड़ी,तुमने मेरे हाथ को। फिर भी तड़पे थे हम दोनों,दिल का तड़पना हमें याद है।। बड़ा गोस्सा था तुम्हारे अंदर,जाना उस रात को। चुपके से सर्द रातों में,तेरा निकलना हमें याद है।। लगा था पूरी तरह नेस्तनाबूद कर डालोगी। तुम्हारी सहेलियों का,शहनाईयों के संग सिसकना हमें याद है।। चाँदनी रात में तुम्हारा चेहरा ,सचमुच चाँद से कम न था। अनजानी नदी की तरह आँखों में ख़ुमारी बन,तेरा बहना हमें याद है भेजते हुए टूट गई थी,लगा था तुम्हें कि हमें तुने कुछ न दिया। आज भी तुम्हारे छलकते अश्कों का,सिहरना हमें याद है।। कांप जाता हूँ,चाँदनी रात के बाद अँधेरे को देख। क़दम रुक जाते हैं,अँधेरी रातों से तेरा कुछ कहना हमें याद है।। सुबह सूरज निकला तो न जाने क्यों बहुत बदला था! उसका न चाहते हुए भी ,ख़ुद से बदलना हमें याद है।। +++डॉ.हरेराम सिंह+++