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Showing posts from December, 2021

हरेराम सिंह की कविताएँ

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हरेराम सिंह की कविताएँ 1. छल! मैं तुम्हें जानता था  कि छल में माहिर हो जब बीएचयू में आया था कई छात्र जो चेहरे पढ़ नहीं पाते समझते थे तुम्हें देवता जबकि सच है कि तुम शुरू से थे दलित-पिछड़ों का विरोधी इनका हक़खाऊ! और अपना चेहरा दिखा ही दिया! तुमलोग कबकत खून पिओगे जोकों की तरह सूअर तो गू खाता है और गंदगी साफ़ करता है चलो एक तो बड़ा काम करता है! ' नॉट फाउंड सुटेबल' क्या होता है रे पतित बता-बता यही तुम्हारी योग्यता है रे प्रतिभा-हत्यारे! बहुजन विरोधी चिकनी बोली बचन वाले विषैले सर्प तुम किस जंगल से आया? न जाने कितने ऐसे विषधर  विश्वविद्यालयों में निछुका विचर रहे हैं रह-रह डँस रहे है गरीब आदिवासी छात्र-छात्राओं को एक अंक देकर इंटरव्यू में उनके मूत्र से अपनी संतानों को अमर बना रहे हैं? यह कबतक चलेगा रे 'गऊ' हत्यारे क्या तुम्हें पता नहीं कि सीधी-साधी जनता  गरीबी और जहालत की मार से बेहाल है और हजारों वर्षों से इन्हें तुमलोग दूहते आए? तुम्हें शर्म नहीं आई 'पंत-संस्थान'के तथाकथित रखवाले कि पिछड़े वर्ग के छौने राष्ट्र की संपत्ति हैं? इनकी आशाओं को मारना देश को मारने के समान

अंश सिंह का पत्र प्रधानमंत्री जी के नाम

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मेरे शहर की रवायत

मेरे शहर की रवायत ....... मेरा शहर कभी ऊँघता नहीं जगता रहता है रात भर या नींद में ही स्वप्न देखता है मधुर- मधुर  कुशवाहों के रोहतासगढ़ की तरह  सर ऊँचाकर अपने शहरवासियों को संदेश देता है जीवों शान से अपनी भुजाओं पर विश्वास करों इन कुशवाहों की तरह मेरा शहर खुशनसीब है कि यहाँ सभी रंग के फूल सभी दिशाओं में खिलते हैं सोनवागढ़ के उस पार भी सोन नद के पानी से सींचकर निहाल हो जाता है जब बारिश की बूँदे काव नदी से होकर गुजरती हैं मछलियों के हौसले देखते बनते हैं 'महतो' किसानों की दँतारियाँ अँग्रेजों व जमींदारों के गर्दन पर गिरने से नहीं चूकती वजह; 'महतो' में ताब है वह 'राय' में कहाँ? ऐसा मानते हैं लोग और अदब के साथ महतो जी को सलाम करते हैं! मेरा शहर दूर है जरूर राजधानी से पर; आशीर्वाद पाया है ऐसा कि कोई भूखे मर नहीं सकता और कोई किसी का हक़ मार नहीं सकता जो मारेगा वह टिकेगा नहीं क्योंकि यहाँ का हर बच्चा न्याय निमित्त लड़ना जानता है अपने और ग़ैरों की पहचान आँखों में झाँकर कर लेता है प्यार के आगे झुकना उसकी संस्कृति का हिस्सा है और जो स्त्रियों की इज्जत लूटकर बड़े बनते हैं उनक

माननीय शिक्षामंत्री जी

माननीय शिक्षामंत्री जी,             सादर प्रणाम. उच्च माध्यमिक +2 शिक्षक जो 6 साल सेवा दे चुके उन्हें विद्यालय प्रधान की परीक्षा में सम्मिलित होने हेतु इजाजत दी जानी चाहिए; क्योंकि हाई स्कूल शिक्षक से, +2 शिक्षक 4 साल सीनियर हैं। इनकी 6 साल की सेवा 10 साल माध्यमिक शिक्षक की सेवा के बराबर है और आप तो महज 8 साल सेवा दे चुके शिक्षक को इस परीक्षा में भाग लेने के लिए इजाजत दे रहे हैं। दूसरी यह कि +2 शिक्षक की विद्यमानता के बावजूद जबकि माध्यमिक शिक्षक से सीनियर हैं, इन्हें प्रधान अध्यापक का प्रभार तक नहीं दिया जा रहा।जबकि होना यह चाहिए था कि पहले माध्यमिक शिक्षक को उच्च माध्यमिक शिक्षक में पदोन्नति दी जाती और तब स्कूल प्रिंसपल बनाते।पर, ऐसा है नहीं।उच्च माध्यमिक शिक्षक को विभागीय पदोन्नति के तौर पर स्कूल प्रिंसपल बनाते।गुणवता के लिए परीक्षा लेना भी जरूरी है।तीसरा यह कि BC वर्ग के अभ्यर्थी जो अनट्रेंड थे उनका नियोजन हाई स्कूल व उच्च माध्यमिक स्कूल में नहीं हुई इससे सामाजिक न्याय को धक्का लगा है। चौथा ट्रेंड शिक्षक दो साल तक अनट्रेंड का मानदेय लेता रहा, उसका संवैधानिक आधार क्या है? तो क्या बाद

जब जब याद आए

जब जब याद आए, तुम्ही याद आए सपनों में, घर से निकलते बार, तुम्ही याद आए आसमां में घटा छाई थी यकीन नजर तेरी सुहाई थी जब चल रही थी धीमी हवा जुल्फों की कशिश, रंग लाई थी आज मौसम में खनक है तुम्हारे आने की भनक है कोई कह रहा था- तेरा वो हम गरीबों की दमक है जालिम डरते हैं साथी ऐसी ताब व धमक है जब जब याद आए, तुम्ही याद आए नदियों के मीठे पानी बन, खेतों में आए जब हर तरफ से, हम पर जुल्म हो रहे हैं सितम का पारावार न कम हो रहे हैं सबकुछ एक-एककर छीने जा रहे हैं आँखों में आँसू , रुके न रुक रहे हैं ऐसी विपद की घड़ी में, सिर्फ़ व सिर्फ़ तुम्ही याद आए 'खोने के लिए सिवाए जंजीरों के, कुछ नहीं तेरे पास' तेरा फलसफा याद आए

हरेराम सिंह के कुछ गीत

चाँदनी-पुरवैया की अठखेलियाँ ............ मेरे साजन जीवन को खुशियों से भर देना पलकों के सहारे हृदय में उतर जाना मेरा आँगन छोटा न है,जो है तेरा ही है मेरे साजन आँगन को खुश्बूओं से भर देना आई तेरी अँगना बाबुल-मइया छोड़ के गाँव की सखिया,प्यारी गइया छोड़ के गाँव की बगिया की कोयल सुध जगाई तेरी यादों में जीना तब से सीख पाई मेरे साजन साँसों में खुश्बू भर देना मेरे साजन जीवन को................. देख रही हूँ इधर पुरवैया बिगड़ रही है खिड़की पर चाँदनी मध्य पहर हँस रही है "तेरे पिया कहा हैं?"हमसे पूछ रही है! चाँदनी-पुरवैया अठखेलियाँ कर रही है मेरे साजन पास आकर उन्हीं को लजा जाना मेरे साजन जीवन को................... अभी एक मैना मीठी तान सुना फूर्र से गुजर गयी माथे की बिंदी सूरज की लाली पा चमक गयी दूर कई किसान - धनखेत के गीत गा रहे हैं झूम-झूमकर गुच्छ बालियाँ के, गौरैयों को बुला रहे हैं मुझसे बर्षों का प्रेम हैं तुझे,तू आकर सबको जता जाना मेरे साजन जीवन को................... तू सूरज की लाली,होठों पे उतर जा मेरा चाँद बनके,आँखे में चमक जा मैं तेरी चाँदनी तू मेरा हमसफर है उम्रभर के नगीने,मन की ल

गीता-महाबोध

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बीएचयू में 'गीता महाबोध' का विमोचन ....... 'गीता' को अक्सर धार्मिक पुस्तक के रूप में लोग देखते हैं इसे दर्शन व साहित्य के रूप में भी अपनाने और उसे व्याख्यायित करने की जरूरत है!                                          -डॉ.ललन प्रसाद सिंह यह वह मौका था जब डॉ.ललन प्रसाद सिंह अपने सद्ग्रंथ 'गीता महाबोध' के विमोचन पर लेखकीय वक्तव्य दे रहे थे।सामाजिक विज्ञान संकाय के एच.एन.त्रिपाठी हॉल में यह आयोजन हिंदी व संस्कृत के लिए ख्यात प्रकाशक किशोर विद्यानिकेतन के डॉ.संतोष कुमार द्विवेदी जी द्वारा आयोजित था और डॉ.द्विवेदी जी बतौर एक संचालक भी बताया कि गीता एक दूसरे को समझने और सम्मान देने की भावना को उत्प्रेरित करने का काम करती है।इसका दर्शन है-अपने को अपने में मिला दो। ऐसे तो इस कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन व प.मदन मोहन मालवीय जी को माल्यार्पण से हुई ;पर यह विमोचन समारोह एक बौद्धिक विमर्श का रूप ले लिया और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के महानायकों में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,पं. मदन मोहन मालवीय ,पं.जवाहरलाल नेहरू,डॉ.अम्बेदकर ,तिलक, डॉ.राधाकृष्ण से होते हुए वर्तमान की पीढ़