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ओबीसी साहित्य की दार्शनिक-पृष्ठभूमि

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ओबीसी साहित्य की  दार्शनिक पृष्ठभूमि ......................................................डॉ.हरेराम सिंह साहित्य में जो संघर्ष है, उसका भी हमारा और तुम्हारा है.वरना तुलसी के अति प्रिय राम और सूरदास के कृष्ण नहीं होते .कबीर का राम सगुण भक्तिवालों से भिन्न नहीं होते. यही हमारा तुम्हारा तो साहित्य का द्वंद है.जिससे साहित्य का पक्ष निर्मित होता है।साहित्य और सत्ता का गहरा संबंध है। जिनके साहित्य विस्तृत हैं,सत्ता उन्हीं के हाथों में है। साहित्य का सौंदर्य मजदूरों के पसीने में, किसानों के कुदालों मैं, मछुआरों  की जालों में, सैनिकों के ढाल में और लोगों के इकबाल में है.इसे देखना है तो खुद संवेदनशील बनिए.और अपने मन के दीप को जलाए रखिए,स्नेह का घी डालकर उसे बचाए रखिए!वरना,यह जीवन नीरस बन जाएगा।दिल बहलाने व खेतों में काम करने चला जाता हूँ किसानों के पास तो कुछ लोग पूछते हैं,क्या मिलता है,वहाँ जाने से?मैं कहता हूँ-वह किसान हमारा पिता है और धरती हमारी माँ!और जो कलकल नदी बह रही है,जिसके पास अक्सर मैं जाता हूँ,वह मेरी साहित्य सरिता है।उनसे मैं कहता हूँ-जो नदी के पास सुकून मिलती है,वह और कहाँ?जो खेत

ओबीसी साहित्य और उसके महत्व

ओबीसी साहित्य और उसके महत्व  (डॉ. हरेराम सिंह  के कुछ प्रश्न और उसके उत्तर के रूप में ओबीसी साहित्य के प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह  की फोन पर बात-चीत का लिखित रूप।यह बातचीत २०.०१.२०२० को विनोद कुमार यादव के आग्रह पर की गई।) डॉ. हरेराम सिंह : ओबीसी साहित्य क्यों जरूरी है? डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह:  जब तक ओबीसी का साहित्य नहीं होगा ,तब तक राजनीतिक सत्ता नहीं मिलेगी, और संजोग से अगर मिल भी गयी तो फिसल जयेगी. साहित्य जरूरी है, साहित्य ही आपकी समस्याओं को,  आपकी अंदरूनी चीजों को, आपकी भावनाओं को, दुख-दर्द को,यानी सबको -वही न  प्रकट करेगा?  और ओबीसी के जो साहित्यकार हैं, चिंतक हैं, दार्शनिक हैं, राजनेता हैं, इनके बारे में कहाँ लिखियेगा.  राम स्वरूप वर्मा कितनी किताब लिखे हैं लेकिन इनकी चर्चा मुख्य धारा में  कहा होती है ?और अर्जक साहित्य बहुत बड़ा मोमेंट था- ६० के आखिरी दशक में, लेकिन हिंदी साहित्य में उस पर कहाँ किसी ने बात की;नहीं की.                                             और दलित साहित्य और आदिवासी साहित्य का दायरा सिकुडता गया ।वहाँ भी ओबीसी को जगह नहीं मिली.और... ऐसी बहुत सी चीज

तुम हो तो...मैं हूँ!

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हरेराम सिंह

'रात के आख़िरी पहर तक' और 'आम्रवन में छिटकती चाँदनी'

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