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ओबीसी साहित्य विमर्श

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'ओबीसी साहित्य' को अकादमिक न्याय देने के लिए दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय-गया को हार्दिक बधाई। प्रारंभिक दौर में प्रमोद रंजन जी ने  ओबीसी साहित्य पर बखूबी 'फारवर्ड प्रेस' के द्वारा विमर्श चलाया था। अवधारण पेश की थी डॉ.राजेंद्र प्रसाद सिंह ने। जबकि इसके पूर्व हरेराम सिंह ने 'हंस' में एक पत्र के माध्यम से  'ओबीसी साहित्य' पर अंक निकालने हेतु सलाह दी थी। डॉ.ललन प्रसाद सिंह ने इसके सौंदर्य शास्र तथा दर्शन पर आधारित एक लेख लिखा था जो उनकी पुस्तक 'प्रगतिवादी आलोचना: विविध प्रसंग' में संकलित है। इस पुस्तक का विमोचन बीएचयू में हुई थी और इसकी रिपोर्ट 'हंस' में छपी थी। आज ओबीसी साहित्य , साहित्य के क्षेत्र में ओबीसी को ठीक उसी तरह 'रिप्रेजेंट' कर रहा है जैसे दलित साहित्य दलित को, आदिवासी साहित्य आदिवासी को। इसे भारत की आधी से अधिक आबादी का आइना कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कारण किसान, पशुपालक और शिल्पकारों की जीवनगाथा पर साहित्यिक विमर्श बखूबी जो वास्तव में देश की रीढ़ हैं, हुआ ही नहीं था या जानबूझकर उसे दरकिनार कर दिया

डॉ.हरेराम सिंह का संक्षिप्त परिचय

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लेखक :  डॉ. हरेराम सिंह  ख्यातिप्राप्त कवि, आलोचक, कहानीकार  व  उपन्यासकार।  जन्म :  30जनवरी 1988ई.को ,बिहार के रोहतास जिला अन्तर्गत काराकाट के करुप ईंगलिश गाँव में ; पितामह लाल मोहर सिंह कुशवंशी के घर हुआ। पिता राम विनय सिंह व माँ तेतरी कुशवंशी अच्छे किसान हैं। शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा करुप व गोड़ारी में, मिडिल की शिक्षा ईटवा से, माध्यमिक हाई स्कूल बुढ़वल से, इंटरमीडिएट व स्नातक (प्रतिष्ठा) की शिक्षा अनजबित सिंह कॉलेज बिक्रमगंज, रोहतास से हुई। इन्होंने नालंदा खुला विश्वविद्यालय-पटना से  एम.ए.  तथा  वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय-आरा से  पीएच.डी.की डिग्री प्राप्त की।                 (कवि-आलोचक: डॉ.हरेराम सिंह) साहित्यिक योगदान :  हंस, जनपथ, सृजना, फारवर्ड-प्रेस, नागफनी, रू, लौ, आजकल, अभ्यर्थना, युग-सरोकार, शोध-धारा, अर्जक, शोषित, आईना बिहार, विभाषा-संसृति, संस्कार चेतना,पहचान, बुद्धवाणी, शेरशाहटाईम्स, नईधारा, सृजन-सरिता, ककसाड़, शोध-दिशा, शोध-ऋतु, हाशिये की आवाज आदि में निरंतर कविताएँ, शोधालेख, आलेख और पत्र प्रकाशित। कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय सेमिनारों व सम्मेलनों में सहभागि