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Showing posts from July, 2020

कुशवाहा क्षत्रिय की एक परंपरा।

कुश जयंती के इर्द-गिर्द ..........................… "कुशवाहा क्षत्रिय " के बीच एक बहुत ही सुंदर परंपरा रही है,जिसमें कुशवाहा नौजवान या युवती को "कुश जयंती" के दिन एक संस्कार ग्रहण कराया जाता है और उस संस्कार का नाम "हस्त खड़ग्" या "धनुष ग्रहण" संस्कार है। इस दिन कुशवाहा युवक या युवती स्नानादि करके पीले वर्ण के वस्त्र धारण करते हैं। श्री राम चंद्र  व सीता मां के चरणों पर पुष्पांजलि अर्पण कर "सम्राट कुश" का पूजन करते है।पूजनोपरांत पिता द्वारा युवक के हाथ में' खानदानी तलवार 'को  पूजन के बाद सम्मान के साथ ,शिश झुकाकर धारण कराया जाता है और युवती को मां द्वारा"धनुष ग्रहण"कराया जाता है। यह संस्कार विशेष पूजन विधि के बाद संपन्न होता है। पहले के युग में यह संस्कार बारह वर्ष की उम्र में ही करा दिया जाता था,पर अब अठारह वर्ष या शादी के दिन भी पूर्व में नहीं होने पर कराया जाता है। इस दिन युवक यह शपथ लेते हैं कि धरती, परिवार,जाति ,इलाका व राष्ट्र की इज्जत की सुरक्षा वे करेंगे तथा सम्मान के साथ जिएंगे तथा याचक कभी नहीं बनेंगे।इस दिन

बनाफ़र चंद्र

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बनाफ़र चंद्र का नाम आपने जरुर सुना होगा। हाँ,वहीं बनाफ़र चंद्र जिनका "ज़मीन" उपन्यास जगदीश मास्टर के जीवन संघर्ष पर आधारित है,कितना कुछ सच लिखा है,उन्होंने इस उपन्यास में। ये भी मूलत:रोहतास के मूल निवासी रहे।काराकाट के श्रीरामपुर गाँव जो बाराडीह के पास है,हां वहीं श्रीराम पुर जहाँ घोड़े बहुत हैं। वहीं के थे बनाफ़र चंद्र, मूल नाम-रामचंद्र सिंह।वीर बांकुरा बनाफ़र।इनका जन्म भी इसी जुलाई के महीना में हुआ था,०२ तारीख़ सन् १९५० को।और बाद में भोपाल में रहते थे। एक बार मेरे फूफा जी के भाई से इनकी पुत्री की शादी की बात चली थी,पर हो न पाई।फूफा जी के पिता जी और बनाफ़र चंद्र दोनों एक साथ काम करते थे। मेरी इक बनाफ़र भाभी की रिश्तेदारी बनाफ़र चंद्र जी के खानदान में में ही है,जिसकी वज़ह गाँव के बहुत लोग उनके बनाफ़र चंद्र जी के परिवार को जानता है। वे भले लोग हैं। उन्हें अन्याय पसंद नहीं।आल्हा-ऊदल जैसे अटल।१९९६ ई.में इन्हें रेणु सम्मान मिला। ऐसे महान व दिलदार को हिंदी साहित्य भला कैसे भूला देगा। बस्ती और अंधेरा,अधूरा सफ़र जैसे उपन्यासों के प्रणेता !          कुछ लोगों ने इनके उपन्

बाल मुरली सिंह की छह कविताएँ

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बाल मुरली सिंह की छह कविताएँ ......... १.खोज ...... मैं निकला उस राह पर, जिस राह पर न था कोई, विपुल सौरभ गुलाब का देख,पंकज बन गया मेरा मन मृदु मुख था,थका था पैर, तब भी चलता रहा मैं, चलते-चलते हिमाद्री पाया, प्रशस्त हुआ मेरा मन। हिमाद्री को छोड़ प्राची चला, फिर पहुंचा उदधि के पास, दिग्-दिगंत सभी को देखा, तब पुलकित हुआ मेरा मन। हृदय को स्तब्ध कर, देखा उस विराट रूप को, जो उथल-पुथल कर, कह रहा था मुझसे, जागृत करो अंतर्मन। २.कोहरा  ......... ये कोहरा कहां से आया, मुझको तुम बतला। पल भर में अपना रंग दिखा, कर दिया जग को अंधकार, ये कोहरा कहां से आया, मुझको तुम बतला। कहीं हुई बस दुर्घटना, कहीं शीतलहरी की जा़र, ये कोहरा कहां से आया, मुझको तुम बतला। बच्चे-बुड्ढे को बहुत सताते हो, पृथ्वी पर फैला देते अंधकार, ये कोहरा कहां से आया, मुझको तुम बतला। ट्रक तो ठप हो जाते, वायुयान रुक जाते हैं, क्या यही है अर्ध विराम? ये कोहरा कहां से आया, मुझको तुम बतला, सूर्य के उगते हो जाते विलुप्त हो, पता नहीं चलता कि कहां रहते हो ये कोहरा कहां से आया, मुझको तुम बतला। सर्दियों में जन्मते हो, पर,गर्मियों में हो जाते श्मश