बाल मुरली सिंह की छह कविताएँ

बाल मुरली सिंह की छह कविताएँ
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१.खोज
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मैं निकला उस राह पर,
जिस राह पर न था कोई,
विपुल सौरभ गुलाब का
देख,पंकज बन गया मेरा मन
मृदु मुख था,थका था पैर,
तब भी चलता रहा मैं,
चलते-चलते हिमाद्री पाया,
प्रशस्त हुआ मेरा मन।
हिमाद्री को छोड़ प्राची चला,
फिर पहुंचा उदधि के पास,
दिग्-दिगंत सभी को देखा,
तब पुलकित हुआ मेरा मन।
हृदय को स्तब्ध कर,
देखा उस विराट रूप को,
जो उथल-पुथल कर,
कह रहा था मुझसे,
जागृत करो अंतर्मन।

२.कोहरा 
.........
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला।
पल भर में अपना रंग दिखा,
कर दिया जग को अंधकार,
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला।
कहीं हुई बस दुर्घटना,
कहीं शीतलहरी की जा़र,
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला।
बच्चे-बुड्ढे को बहुत सताते हो,
पृथ्वी पर फैला देते अंधकार,
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला।
ट्रक तो ठप हो जाते,
वायुयान रुक जाते हैं,
क्या यही है अर्ध विराम?
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला,
सूर्य के उगते हो जाते विलुप्त हो,
पता नहीं चलता कि कहां रहते हो
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला।
सर्दियों में जन्मते हो,
पर,गर्मियों में हो जाते श्मशान,
ये कोहरा कहां से आया,
मुझको तुम बतला।

३.सीख
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जीवन के उस राह पर चलो,
जिस पर प्रात:केसर के बेला हो,
मनोयोग को चमकाते चलो,
अपनी दुर्बलता को दूर भगाते चलो,
विरान के अवसाद से,
अपने हृदय को हटाते चलो,
अपनी मंजिल के लिए,
सदैव चलते चलो।

४.जिंदगी
.......
छोटी सी जिंदगी और तुम्हारा साथ,
मानो घोर शरद में ,सूरज की धूप 
का साथ,
आंखों की लालिमा,दिल का प्यार,
जीवन भर का बना लिया कर्जदार,
तू ही जीवन हो,तू ही मेरी मंजिल,
कहीं रहता हूं-तुम साथ रहती हो,
तेरी यादें,दर्दे-दिल आंसू बनकर,
अक्सर तेरा एहसास कराते हैं,
मेरे अकेलापन को दूर भगाते हैं,
जिंदगी तू मेरे लिए सदाबहार हो,
खुशियों का अंबार  हो,जगमग-जगमग ज्योति का,
तू ही एक संसार हो,

५.हमसे दूर भागती वर्षा
......
गर्मी बीती,बरसात आने वाली है,
और किसानों के धान के बीज़ड़े उगने वाले हैं।
क्यारियाँ बनी,बीज़ड़े लगीं,
इन क्यारियों को देख,
मन हरसने वाले हैं।
सबकी जबानों पर,एक ही
चर्चा होने वाली है,
अबकी बार धान की खेती,
अच्छी होने वाली है।
आषाढ़ बीता,सावन भी बीतने वाला है,
पर,पानी के बूंदें भू पर,
न आने वाले हैं।
किसान की आंखें ,आसमान की ओर,अब
टकटकी लगाने वाली हैं,
पर, बर्षा न आने वाली हैं!

६.करुण दृश्य
.....
अजीबोगरीब शाम,बादलों का सिंदूरी रंग,देखा मैंने,
जब सूर्य ढल रहा था,दुनिया ओझल हो रही थी,
सबके चेहरे पर क्षीण मुस्कान ,
देखा मैंने,
जब श्रृंगाल,बोल रहा था,
चौके लीपे,धुंआ उठा,
फिर भी पेट की हड़ताल ,
देखा मैंने,
जब लोग सोने जा रहे थे,
काली -अंधेरी रातों को सिसकते,
देखा मैंने,
जब आधी पहर बीत रही थी,
कोई चिड़िया चहचहाई,शीतों के मोती की बूंदे को टपकते,
मैंने देखा।
जब सुबह हो रही थी,सबके पैरों में फूर्ती।
बादलों की मानिंद सुनहरी छाया को,
लहरते देखा मैंने।
जब सूर्य उग रहा था,तीखी लंबी किरणें!
उन लंबी किरणों बीच पसीने से लथपथ,बदन को देखा मैंने।
जब सूर्य सर पर हो रहा था।
चढ़ी थीं उंगलियां ललाट पर,
खून जला,उम्मीद पैदा करते मजदूरों को,देखा मैंने।
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संपर्क: ग्राम+पोस्ट: करुप इंगलिश,भाया:गोड़ारी,जिला:रोहतास (बिहार),पिन.न.802214.(कवि-बाल मुरली सिंंह,रोहतास, बिहार)

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