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Showing posts from July, 2021

इतिहास चर्चा में.

Jai Prakash Singh Kachhwaha चर्चा करना आपका अधिकार है.कई बड़े इतिहास कारों ने मौर्य को क्षत्रिय या मध्यमवंश का बताया है.तथ्य बदले तो इतिहास बदला.शाक्य से मौर्य बने हैं न कि कुशवाहा मौर्य से.शाक्य  राम वंशजों का ही कुल है.रही बात कोलिय की तो मैं कोलिय को सिड्यूल कास्ट कोरी या जुलाहा के बराबर नहीं मानता और न ही नाई को मौर्य.आप नाई को या जुलाहा को कैसे देख रहे हैं यह आप पर निर्भर करता है.इतिहास लेखन तथ्य की विशेषता से है.सौ साल बाद इतिहास का स्वरूप क्या होगा मैं नहीं बता पाऊँगा.सत्ता हाथ से खिसकते ही लोग बडे से छोटे हो जाते हैं.मध्यकाल के इतिहास में एक ही 'जात'का आदमी हैसियत से उच्च व निम्न हुआ है.फिर भी आप सभी अगर खोजी हैं.तो यह अच्छी बात है.मुझे खोजी मन के आदमी विरोधी हो तो भी अच्छा लगता है गर प्रासंगिक व सुशील हो.कई ब्रिटिश अधिकारी मौर्य को कोइरी बताएँ हैं.जयशंकर प्रसाद जैसे नाटककार व इतिहास मर्मज्ञ मौर्य को नाई बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं.फिर भी हम इमानदार कोशिश करते हैं तो साधुवाद के पात्र बनते हैं.

ओबीसी साहित्य का विकासक्रम को समझना जरूरी है

ओबीसी साहित्य के ऐतिहासिक विकासक्रम को समझना जरूरी है। ......डॉ.हरेराम सिंह... कुछ लोग देखने की बजाए नकार भाव के शिकार होते हैं.ऐसे लोग ओबीसी साहित्य को शंका की दृष्टि से देखते हैं।जबकि उन्हें ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में किसी का मूल्यांकन करना चाहिए .अगर ऐसा नहीं कर रहे हैं तो निश्चित ही आपसे भूल हो रही है. मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर ओबीसी साहित्य बेमानी है तो ओबीसी-सत्ता का सपना भी बेमानी होगा।पूरा मंडल कमीशन और हजारों साल का इतिहास भी बेमानी होगा।यादव,कुशवाहा,कुर्मी,लोध,प्रजापति आदि भी बेमानी ठहराएजाएँगे।खासकर उनके द्वारा जो द्विज-सत्ता के अंग है।साहित्य की सत्ता राजनीतिक सत्ता से अलग नहीं होती मतलब यह कि जिसके साहित्य हैं उनकी सत्ता है या सत्ता की परिकल्पना हो चुकी है अथवा जिनकी सत्ता है तो उनका कहीं न कहीं साहित्य है और समाज भी है।आचार,विचार और दर्शन तो हैं ही.इसलिए ओबीसी साहित्य बेमानी नहीं है और न ही यह हवा में है।इसका अपना सौंदर्यबोध भी है जिससे इसकी पहचान प्राय: हो जाते हैं।शत् प्रतिशत एकरूपता दुनिया के किसी साहित्य में भी नहीं है।अपने यहाँ दलित साहित्य में भी नहीं।ओबीसी साहित्य