महान हृदय का लेखक डॉ.ललन प्रसाद सिंह

 
डॉ.ललन प्रसाद सिंह 

डॉ.ललन प्रसाद सिंह हिंदी के वरिष्ठ लेखकों में से एक हैं।इन्होंने उपन्यास व आलोचना पर विशेष कार्य किया है।"आल्हा ऊदल:प्रेम और युद्ध "(२०११) तथा " A Bloomed Woman"(२०१३)इनके चर्चित उपन्यासों में से रहे हैं।"सपनों को जीता आदमी"(२०१४)इनकी आठ कविताओं का संग्रह है।आलोचना पुस्तक "आलोचना की मार्सवादी परंपरा" भी सन् २०१४ में ही किशोर विद्या निकेतन वाराणसी से छपकर आई;जबकि इसके पूर्व दो आलोचना पुस्तक "मुक्तिबोध और उनका साहित्य" (२००७) और "आलोचना: संदर्भ मार्क्सवाद" (२०१२) जानकी प्रकाशन पटना से छपकर आ चुकी थीं।राजेंद्र यादव ने इनकी कहानी "सिलसिला" को 'हंस' में छापा।प्रमोद कुमार सिंह ने लिखा है कि डॉ.ललन प्रसाद सिंह की पुस्तक 'आलोचना: संदर्भ मार्क्सवाद'कई रचनाओं ये बहाने मार्क्सवादी आलोचना की विवेचना करती है।(दैनिक जागरण, पटना,३०दिसंबर२०१२)।डॉ.हरेराम सिंह की "डॉ.ललन प्रसाद सिंह: जीवन और साहित्य" (२०१५)आलोचना पुस्तक इनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर फोकस करती है। इस पुस्तक में ललन प्रसाद सिंह से जुड़े कई प्रसंगों की तरफ सविस्तार चर्चा है।"हर रचना वैचारिक बहस है..."(२००९)इनकी गजलों व कविताओं का सुंदर संग्रह है।

इन्होंने इसमें लिखा है-"जब खुद से मुहब्बत होने लगी,मेरी जिंदगी हसीन लगने लगी।"।इस तरह देखें तो डॉ.ललन प्रसाद सिंह संघर्ष व प्यार के अनूठे लेखक हैं। इनका जन्म ९ अक्टूबर १९५४ई.को बिहार के रोहतास जिला के सेनुवार गाँव में हुआ था। इनके पिता राम दयाल सिंह एक किसान थे। पर ,इनके प्रदादा फौजदार सिंह कुशवंशी एक जागीरदार थे। इनका बचपन खुशी से गाँव में ही बीता;किंतु कष्ट व संघर्ष इनका पीछा आजीवन करते रहे। इनकी पत्नी शारदा देवी बहुत शानदार महिला थीं-करुणा की प्रतिमूर्ति, मुस्कुराहट का खजाना ।जिनकी मृत्यु लगभग ५० वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। एसोसिएट प्रोफेसर होने के बावजूद भी डॉ.ललन प्रसाद सिंह उनके जाने की सदमें की वज़ह हार्ट अटैक का पहला शिकार हुए। इन्हें देखकर ऐसा लगता था कि इतना मजबूत दिलवाला कम्युनिस्ट कैसे से क्या हो गया।पर,यह हिंदी व अंग्रेजी का महान दिलवाला लेखक बच गया और एक दिन मुझसे कहा-"बाबुसाहब श्री हरेराम सिंह मैं साठ की उम्र में स्वयं को तीस का महसूस कर रहा हूँ।मैं अंग्रेजी में एक नया उपन्यास लिख रहा हूं...जो बहुत जल्द पूरा हो जाएगा"।मैं खुशी से नाच उठा।कई वर्षों बाद खनकती आवाजों में उन्हें पा रहा था और लगा कि टूटा हुआ इंसान पुनः जुट सकता है,पुनर्निर्मित हो सकताहै।
डॉ.हरेराम सिंह
सौभाग्य से मैं उस महान इंसान का शिष्य हूँ ।यह सोच मेरे भीतर एक ऊर्जा का संचार होने लगा।

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