बिहार की सावित्रीबाई फुले -इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुंती देवी


समीक्षक:डॉ.हरेराम सिंह

  हरेराम सिंहसंपर्क: 9431874199
पुस्तक :इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुंती देवी,लेखिका:पुष्पा कुमारी मेहता,प्रकाशक:द मार्जिनलाइज्ड दिल्ली, मूल्य:३००रुपये
पुष्पा कुमारी मेहता की पुस्तक "इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुन्ती देवी"हमारे लिए व आपके लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है!यह पुस्तक बिहार की उस स्त्री की जीवन-कथा है ,जिसके भीतर समाज को बदलने का ख्वाब पलते थे.और वह ख्वाब न तो झूठा था,न ही गलत!उस जमाने में कुंती देवी स्त्रियों को अनपढ़ नहीं देखना चाहती थीं और न ही पुरुषों से उन्हें वे किसी तरह कम आंकती थीं।आप आश्चर्य करेंगे कि उनके भीतर आजादी के पूर्व ही आजादख्याली बसती थी.वह एक कृषक बाला थीं,जिन्होंने अपने कर्म से पूरे इसलामपुर को न सिर्फ प्रभावित कीं,बल्कि पूरे बिहार की स्त्रियों के लिए सावित्रीबाई फुले की तरह प्रेरणा की स्रोत बन गईं!वह भी उस वक्त जब भारत ग़ुलाम था ,चारो तरफ गरीबी थी ,शिक्षा का घोर अभाव था,उस घड़ी जब किसानों को जीने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी,उनके लिए शिक्षा दूर की कौड़ी की तरह थी ,हमारी कुंती देवी ने कड़ी मेहनत से स्त्रियों के बीच शिक्षा की रोशनी लेकर आईं,उनके भीतर जज्बा जगाया।उनका महान व दूरदर्शी सोच से उनके पति भी गहरे में प्रभवित थे। किंतु उनकी जीवन-दृष्टि को कागज पर उतारने  का काम उनकी प्यारी बेटी पुष्पा कुमारी मेहता द्वारा होता है,इससे एक अजीब सुख मिलता है और लगता है कि बेटी हो तो पुष्पा कुमारी मेहता जैसा ,जिंन्होंने अपनी माँ कुंती देवी के अवदान व विराटपन न सिर्फ समझा बल्कि उसे रेखांकित कर साबित कर दिया कि अगर स्त्रियाँ सजग हों तो स्त्रियों का इतिहास लिखने के लिए पुरुषों के सहारे सी जरुरत नहीं,हालांकि कुंती देवी से पुरुष जन भी उतने ही प्रभावित थे,जितनी स्त्रियाँ ।पुष्पा कुमारी मेहता इतना प्रभावित से की कि उस माँ को याद किये बिना रह नहीं सकती थीं,जी नहीं सकतीं थी,क्योंकि उनकी माँ सिर्फ उनकी माँ नहीं थी बल्कि उस युग में किसानों व पूरे पिछड़ों की वह माँ थीं.जिस पर आज पूरा बिहार उन पर गर्व कर सकता है,वह पिछड़ों के लिए गोर्की की माँ की तरह थी,आलो आँधारि थीं!ऐसे भी बेटी के लिए माँ दृष्टि व दर्शन दोनों होती हैं।
कुंती कुमारी का जन्म अक्टूबर १९२४ ई.में पावापुरी के निकट  गोवर्धन बिगहा गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम गौरी महतो तथा माता का नाम विशुनी देवी था।गनौरी महतो पूर्व के जमींदार थे,पर अब वे कृषक थे। कुती देवी चार बहन थीं।उनके सगे भाई नहीं थे।वे दूसरे नंबर पर थीं।आठ वर्ष की उम्र में उनकी शादी नालंदा के इसलामपुर के बेले निवासी रमन महतो व सुंदरी देवी को बड़े पुत्र केशव दयाल मेहता से हुई।वे आहार नें फल को शौकीन थे। सथ  ही वे आयुर्वेद को अच्छे जानकार थे। उनके छोटे भाई नशाखोरी के शख्त विरोधी थे। अपने पति की तरह ही कुंती देवी पर गाँधी जी का बहुत बड़ा असर था,वे स्वदेशी पर बल देती थीं। वे शिक्षका थीं।वे बच्चों को सरल से सरल तरीके से पढाने  नें विश्वास करती थीं।मानचित्र पर उनका गजब का पकड़ था।वे शिक्षण कार्य करती रहीं।परिवार को पालती रहीं। वे छह संतानों की मां बनी। माँ का धर्म भी इन्होंने बखूबी निभाया ।चार पुत्री व दो पुत्र ।पुष्पा कुमारी उनकी चौथी संतानों में थीं। इनके तन से प्रमोद रंजन का जन्म हुआ,जो बड़े होकर हिंदी पत्रकारिता में बड़ा नाम कमाये और बहुजन साहित्य की परिकल्पना की। कुंती देवी इनकी नानी हैं।
हिंदी पट्टी में ऐसी बहुत कम पुस्तकों की रचना की गई है ,जिसमें एक स्त्री को सहारे कई स्त्री को सामाजिक व परिवारिक योगदान को लक्ष्य किया गया है।जबकि एक बहुत बड़ा सच है कि स्त्रियों ने हमें या अपने परिवार व समाज को बदलने का काम हर युग में  किया  है,पर उनके योगदान को पृतिसतात्मतक  समाज हमेशा से नकारते रहा है। कुंती देवी उस नकार के जवाब हैं।जब बिहार के प्राथमिक स्कूलों में मध्याह्न भोजन व दर्शनीय स्थानों को परिभ्रमण ते लिए कोई योजना नहीं थी,उस वक्त कुंती देवी इस तरह का प्रयोग कर सबको चौंका-सा दिया!
स्त्रियाँ  प्रेरणा व गरिमा की स्रोत हैं,बस उनके बारे में मर्दवादी नजरिया से जरा अलग हटकर सोचा जाए तो आप देखेंगे कि वे अपना सर्वस्व न्योछावर कर परिवार व समाज को  खुश देखना चाहती हैं। कुती देवी से भी यहीं सीखा जा सकता है।"इसलामपुर की शिक्षा-ज्योति कुंती देवी"एक बहादुर,व स्त्री शिक्षा को प्रति संकल्पित स्त्री की सच्ची दास्तां है जिसके सहारे परिवार व समाज के विकास में स्रियों की कितनी अहम भूमिका है,समझा जा सकता है.हिंदी के जीवनी साहित्य को नयी तकनीक से लिखने व परखने का नया आयाम भी यह पुस्तक प्रस्तुत कर रही है .इसके लिए पुष्पा कुमारी मेहता को धन्यवाद व प्रकाशक द मार्जिनलाइज्ड़ को हृदय से आभार ;इस आशा के साथ कि आप और ऐसी स्त्रियों की सच्ची कथा लेकर आएं जो सबकुछ होमकर के भी परिवार,समाज व देश को मुस्कुकाना देखना चाहती थीं.ऐसे भी भारत में स्त्रियों को योगदान पर बहुत कम पुस्तकें लिखीं गईं हैं। यह पुस्तक उस कमी को न सिर्फ पूरा कर रही है बल्कि भारत के गाँवों में फैली हजारों वैसी स्त्रियों की कथा-जीवनी लिखने के लिए प्रेरणा भी दे रही है,जिनकी कथा अबतक लिखी नहीं गईं,जिनका जीवन लोगों को सामने आने से वंचित रहा,जिनका इतिहास हमें बहुत कुछ दे सकता था,पर हम ले न सके!शायद पुरुषों के तंगनजरिया  से विह्वल होकर महादेवी वर्मा ने लिखा था -"विस्तृत नभ का कोना,कभी न तू अपना होना"।
 माँ सपनों की तरह होती है,जो हमेशा जीवन में नवरंग लाती हैं। कुंती जी के पुत्र शशिभूषण पर उनकी लिखावट का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उनके शुद्ध एवं सुंदर लिखावट का प्रभाव पुष्पा जी पर भी पड़ा।  माँ जीवन के नवरंग होती हैं,जो अंधकार-युग में भी बुझते दीपक का चिराग बनकर आती हैं।कुंती जी ग्रमीण स्त्रियों की आशा बनकर आईं थीं।इसलिए पुष्पा कुमारी मेहता उनके बहाने उनके संपर्क की सारी स्त्रियों का इतिहास लिख डालती हैं। कुंती देवी बनारस से प्रवेशिका,साहित्य भषण  व विशारद की शिक्षा पाईं थीं।इतना ही नहीं उन्होंने रामप्यारी देवी को पाकर अध्यापिका बनाईं।वे गोरे रंग सी;पर शालीन महिला थीं। उनका पद स्थापना जिस विद्यालय नें हुई थी उस वक्त वहां सिर्फ तीसरी कक्षा तक ही पढाई होती थी,इनकी सजगता व प्रयास से वहां आठवीं तक सी पढाई होने लगी। यह इस्लाम पुर को इतिहास नें बहुत बड़ा बदलाव था। उन्हें प्रारंभ में मात्र सात रुपये वेतन मिलते थे। वे अंधविश्वासी महिला नहीं थीं,उन्हें रोगों के बारे नें खासे जानकारी थी। व  रोगियों को सलाह मशवीरा देती थीं।स्वच्छता व रोगियों के लिए वह किसी देवदूत की तरह थीं।
यह जीवनी साहित्य सीताराम,जगदीश हलवाई ,महावीर माथुर,प्रह्लाद के बहाने पूरे इस्लाम पुर की  स्त्रियों व पुरुषों का सम्यक इतिहास,सम्यक् संघर्ष व सामुहिक जिम्मेदारी का आख्यान प्रस्तुत प्रस्तुत करता है। जहाँ आजादी के बाद के भारत की अनाम,पर संघर्षशील स्त्रियों का इतिहास लेखन की अद्भुत छटां अपने अगाध प्रेम व  मासूम शौर्य के साथ उपस्थित है।यहीं नहीं;  गावों में आजीवन जो स्रियां जीवन गुजार दीं उनकी,यह जीवनी साहित्य  सुध ले लहा है, और जो संघर्घरत हैं और जो संघर्षरत थीं ,उनका भी गांव को विकास में,समाज की उन्नति में उनका भी योगदान था,इस पर यह पुस्तक जोर दे रही है,जहाँ सिर्फ़ व केवल सिर्फ कुंती देवी की ही उपस्थित नहीं हैं;बल्कि पूरी स्त्री जाति उपस्थित है। और चीख कर कह रहीं हैं,मेरा भी इतिहास लिखो,वरना लिखने दो!पुष्पा कुमारी मेहता जी ने अपने लेखन की नई तकनीक के सहारे कुंती देवी व उनसे सटे पूरे परिवेश को सहजता के साथ उपस्थित कर स्त्रियों की महान गाथा लिख डाली हैं।जहां देवी जी का पेड़-पौधों से लगाव,बिंदा से लगाव,संगीत व अभिनय से लगाव,गांव पड़ोस से लगाव ,यात्रा से लगाव,गांव को साथ-साथ शहर से लगाव,अपने वतन से लगाव वृहद तौर पर लगाव को परिभाषित कर रहा है।
कुंती देवी एक स्त्री थीं। इसलिए उनका दिल एक स्त्री की तरह था यानी उनके भीतर एक सुंदर मां विद्यमान थी,जो कभी भी बच्चे व परिवार को नकार कर या उससे अलग होकर रहना नहीं चाहता थी।हालांकि कई मुसीबतों को झेलकर परिवार,समाज व देश की बढ़ंती वह देखना चाहती थीं।इसलिए इसलामपुर की उस देवी को कोई भूल नहीं पाया...!!!

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