कुशवाहा और मौर्य

कुशवाहा को एकीकृत करने की शक्ति सिर्फ कुश में
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राम के पुत्रों में बड़े कुश के वंशज् कुशीनगर व रोहतासगढ़ में कुशवंशी कहे गए जिन्हें मुख-सुख की वजह कुशवाहा कहा गया.ये बाद में चलकर मध्य प्रदेश में क्रमश: कच्छवा या कछवाहा कहे गए.यहीं कछवाहा सत्ता और जमीन से जहाँ बेदखल हुए काछी कहलाए.कुशवंश की कड़ी में शाक्य भी हुए और शाक्यों की वह शाखा जो तराई की ओर गई -पिपल्ली वन में निवास की मौर्य कहलाए.डॉ.आशा विनोद ने 'चंद्रगुप्त मौर्य'(ISBN:978-93-84558-68-0)ने लिखा है कि "विडूडभ ने गौतम बुद्ध के जीवन काल में ही शाक्यों पर तीन बार आक्रमण किया था,लेकिन उन दिनों गौतम बुद्ध कपिलवस्तु आ गए थे ,अत:विडूडभ को सफलता नहीं मिली थी,लेकिन अंतिम युद्ध में शाक्य कमजोर पड़ गए और उनमें से कुछ लोग हिमालय की तराई में स्थित पिप्पल वन की ओर चले गए और वहीं पर बस गए .उस समय यहां पर पीपल के वृक्षों का घना जंगल था और बड़ी संख्या में मोर रहते थे.शाक्य वंश के लोग पीपल और मोर दोनों को पसंद करते थे ,अत:यहीं पर जंगल साफ करके खेती करने लगे.कालांतर में इस क्षेत्र का नाम पिपप्ली वन और इन लोगों को मोर पक्षी का संरक्षक होने के कारण मोरिया कहा जाने लगा.धीरे-धीरे यह जाति मोरिय क्षत्रिय कहलाई.मोरिय का अपभ्रंश मौर्य बना और बाद में मौर्य वंश के शासक बने.इस प्रकार शाक्य जाति का ही एक हिस्सा मौर्य कहलाया."(पृ.07)विडूडभ कौशल का नरेश था.इतिहासकार रामशरण शर्मा मौर्यों को मध्यम कुल को मानते हैं और  बुद्ध की माँ को कोसल के राजकुमारी के तौर पर चिन्हित किये हैं.जैन-ग्रंथों में 'कोलिय'को शाक्यों की शाखा मानी गई है.इतिहासकार डॉ.हेमचंद्र रायचौधरी 'महापरिनिब्बानसुत्त'के आधार पर मौर्यों को क्षत्रिय सिद्ध करते हैं.चंद्रगुप्त के पिता का नाम सूर्यगुप्त मौर्य था जो सूर्यवंशी था उसकी माता को मौर्य की पत्नी होने के नाते प्यार व सम्मान में लोग मूरा कहते थे.राजपूताना गजेटियर में मौर्यों को राजपूत बतलाया गया है.कुछ जगहों पर सूर्यवंशियों के एक राजकुमार मान्धातृ से मौर्यवंश का उद्भव माना गया है.हंटर ने 'मुराव'व कोयरी को एक ही माना है.डॉ.शिवपूजन सिंह कुशवाहा मानते हैं कि दिल्ली के आस-पास का सूर्यवंशी कुशवंशी राजा कुवेर जिनके वंशज् कौवीर कहलाए कलांतर में कोइरी कहलाए.डॉ.ललन प्रसाद सिंह 'आल्हा-उदल 'उपन्यास में बनाफर को रघुवंशी कुशवंशी बतलाएँ हैं.उपन्यासकार बनाफ़र चंद्र बनाफर को कुश का वंशज् मानते थे.सन् 1932 ई.में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो.सी.डी.चटर्जी ने 'Investigation on the caste of Murais of United provinces and Bihar'पुस्तक में लिखा है कि "ध्वनिक नियमों से पाली कोलिय से कोयरी बना."डॉ.रामाकांत कुशवाहा'कुशाग्र'ने ऐसा उद्धवरण राधा पब्लिकेशन से छपी पुस्तक 'बुद्ध के वंशज्'में दिया है.बेगुसराय के प्रफुल्ल कुमार ने अपने आलेख 'कुशवाहा वंश-परंपरा का स्वर्णिम इतिहास'में लिखा है कि -"हमारे कुल परंपरा में श्री राम और लव-कुश भी शामिल हैं."सासाराम के डॉ.अमल सिंह भिक्षुक ने भी स्वीकारा है कि कुशवाहा कुश के वंशज् हैं.विदेशी इतिहासकारों में कर्नल टॉड ने कुशवाहा को रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश का वंशज् बताया है.'कुशवाहा-कूर्मी का इतिहास'पुस्तक में भी कुशवाहा(कोइरी)को कुश का वंशज् ही बताया गया है.'पिचानोत कछवाहा क्षत्रिय राजपूताना इतिहास'में डाँगी कुशवाहा को ''डोलणपोता या डाँगी कछवाह"(पृ.129)पर कहा गया है.बिहार में डाँगी या दांगी को कुशवाहा(कोइरी)से अलग कर कुशवाहों को कमजोर किया गया है,क्योंकि बहुत सारे डाँगी के खतियानी जाति कोइरी है और उनके शादी संबंध व सामाजिक स्वीकार्यता कुशवाहा के रूप में ही है.हंटर ने दांगी को कोयरी माना है.'स्व के विलोपन'से सामाजिक स्थिति गिरती है और इसकी स्वीकार्यता से बढती है.सम्राट कुश सामाजिक स्वीकार्यता के ऊँचे शिखर पर विरजमान हैं,वे सीता के लाल हैं.नाना जनक किसान व दार्शनिक हैं.पिता राम मर्यादा का प्रतीक.उनके हाथ का धनुष -वाण सर उठाकर जीने और हमारी सत्ता की अक्ष्क्षुणता के प्रतीक हैं.वर्तमान युग में कोईरी,काछी,मौर्य व शाक्य हमारी स्थानीय पहचान(Local identity )हैं तो कुशवाहा हमारी राष्ट्रीय पहचान (National identity) है और यह हमारी एकता व प्राचीनता के साथ क्षत्रित्व का द्योतक है.नगेंद्रनाथ वसु,हेनरी सर इलियट,शेरिंग,विलियम पीच आदि विद्वानों ने भी कई जगहों पर 'कुशवाहा-कोइरी'से संबंधित कई महत्वपूर्ण टिप्पड़ियाँ दी है.
+++डॉ.हरेराम सिंह+++

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साहित्यकार डॉ.हरेराम सिंह