काला कौवा

शीशम के पेड़ पर ,
कांव-कांव कर रहा काला कौवा.
दूध-भात खाना चाहता है;
तेरे संग वह,
माँ कह रही है.
मैं चहक उठता हूँ,
सुन यह
माँ से एक और कटोरा मांगता हूँ;
माँ मना करती है लाने से,
अलग-अलग खाने से प्रेम घटता है;
माँ मुझे बताती है.
आज मैं बच्चा नहीं हूँ;
बड़ा आदमी हूँ.
अकेले खाने से डरता हूँ!
....डॉ.हरेराम सिंह...


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