सफ़र चाँद का

चलो दूर चलें,
चाँद के पास चलें
सफ़र लंबा है;
जिंदगी का,
मगर चलना है
चलते रहना है!

चलते-चलते जबतलक
थक न जाना है;
चलते जाना है!

चाँद पास ही है;
दूर नहीं
वह मेरा मामा है,
कोई ग़ैर नहीं!

माँ उन्हें बहुत याद करती है,
मैं भी उन्हें बहुत याद करता हूँ...
मामा से मिलने हेतु रोज तड़पता हूँ!
....डॉ.हरेराम सिंह....

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

हरेराम सिंह

साहित्यकार डॉ.हरेराम सिंह