मंडल आयोग और ओबीसी साहित्य

ओबीसी की समस्याओं और उपलब्धियों को रेखांकित करना प्रत्येक ओबीसी का धर्म है।ओबीसी भारतीय समाज का वैज्ञानिक कलासीफिकेशन है,अतएव ऐसा साहित्य जो इस क्लाफीकेशन को संपूर्णता में प्रतिबिंबित करता है,वह ओबीसी साहित्य ही है। देश भर में ओबीसी लेखकों की कमी नहीं है और न ही उनके द्वारा रचित साहित्य की कमी है,बस जरूरत है यह बताने की कि फलां ओबीसी लेखक हैं। अगर ओबीसी लेखक संगठन बनता है,तो ओबीसी लेखक और उनका साहित्य स्वत: स्पष्ट हो जाएगा,लोलो-पोपो या कनफ्यूजन नाम की कोई बात रह ही नहीं जाएगी। मतलब,ओबीसी लोगों के लिए ,ओबीसी द्वारा लिखा गया साहित्य ही ओबीसी साहित्य है।ओबीसी पर शोध करने के लिए सभी फ्री हैं।फिलहार सीडी सिंह की पत्रिका "पहचान" ओबीसी साहित्य को प्रमुखता से छाप रही है। कौन प्रयासरत हैं ,की जगह सभी ओबीसी लेखक प्रयासरत हो जाएं,तो कोई किसी का मुंह ताकने वाली बात ही नहीं रह जाएगी। पर,दूसरे के द्वारा लिखा साहित्य ओबीसी साहित्य होगा कि नहीं यह फ्यूचर बताएगा,कारण कि ओबीसी के मिजाज को गैरों द्वारा लिखा ओबीसी साहित्य कितना ताकत दे रहा है,यह तो पूरी ओबीसी बिरादरी व ओबीसी के मान्य एक्सपर्ट बनाएंगे,पर निर्णायक भूमिका ओबीसी जनता करेगी या उन पर पड़ा प्रभाव ही बताएगा।पर,इतना स्पष्ट है जिन्हें ओबीसी से ही नफरत है वह पूतना मां की तरह ओबीसी कृष्ण को गोद में ही मार देना चाहेंगे। क्योंकि न ओबीसी कृष्ण रहेगा और न ही इंद्र को चुनौती देगा ।आगे आपलोग भी सोचिए।हां,'रोअना बालक'की तरह मैं किसी ओबीसी को नहीं देखना चाहता हूँ,न ही कुछ मूल निवासी संघों या कुछ दलित साहित्यकारों जैसा हर बात में दूसरों को दोष देना ही साहित्य का असल मकसद समझते हैं।ओबीसी साहित्य आत्मनिरीक्षण करने का भरपूर अवसर देता है,न कि हर बात में गैरों को दोष देकर काम का इतिश्री समझता है।चूकि आप देखेंगे कि ओबीसी आयोग का गठन एक वैज्ञानिक पद्धति पर हुआ है। यह समाज के मुख्य धारा से वंचित लोगों को जोड़ता है।आप ओबीसी आयोग को जिस तरह जातिवादी सिद्ध नहीं कर सकते,ठीक उसी तरह ओबीसी साहित्य को भी आप जातिवादी नहीं कह सकते। यही तो ओबीसी आयोग व ओबीसी साहित्य की विशेषता है कि इसमें जाति का जिक्र रहेगा,पर जातिवाद नहीं रहेगा। मतलब यह कि दोनों का उदेश्य मानसिक व सामाजिक रूप से कमजोर बना दिए गये या किंहीं कारणों से बन गये लोगों को सबल बनाना एवम् मुख्य धारा से जोड़ना है,ताकि देश वास्तव में सबल व सक्षम बन सके।ओबीसी साहित्य व आयोग सामाजिक , शैक्षिक व मानसिक स्तर पर पिछड़ गये लोगों को सबल बनाने का काम करता है।

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साहित्यकार डॉ.हरेराम सिंह