धूप ही धूप

जिंदगी छांव खोजती है,पर मिलती कहां है वह
और जिंदगी गूजर जाती है ऐसे ही।
लोग पूछते हैं हमसे कि क्या पाया जिंदगी में?
मैं जवाब देता हूं-धूप ही धूप!
वे यह सुन थोड़ा गंभीर होते हैं और थोड़ा मुस्कुराते हैं
और धीरे से पर हां में गर्दन झुकाते हुए कहते हैं
ठीक कहते हैं भाई मेरे
और मैं भी मुस्कुरा देता हूँ
एक हाथ थोड़ा उपर कर
कि आज धूप बहुत कड़ी है,
पर ,कड़ी होने से क्या?
+++डॉ.हरेराम सिंह+++

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