शार्दूल कुशवंशी की भोजपुरी कविताएँ

शार्दूल कुशवंशी की भोजपुरी कविताएँ
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बुधुआ
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जिनगी भर बुधुआ पाथते रह गइल खपड़ा-नरिया,
तबो न छवाइल ओकर घर हो,
फूस के फूसे रह गइल,
चमकल ना दीवाल,अउरी फरस हो,
जाति के कुम्हार रहे उ,घड़ा भी उ पारत रहे,
गांव के पंडित जी के घरे,फिरिये में पहुंचावत रहे,
ओकर पसंद ना रहे ,ई काम 
आपन मेहरी से बतियावत रहे,
पर ,डर रहे कि कहीं गांव से उ निकालल न जाओ,
काहे कि ओकर आपन जमीन ना रहे,
ई सोच-सोच उ आपन के कोसत रहे,
विधना के गरियावत रहे।
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बाँस
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बाँस के कोठी में भूआ फूटल,
कि सगरे बात फैल गइल,
कोयरी-कुरमियन के कमाई पे 
टिकल बा जान,
ई काहे बोललस बात,
बबुआनन के मुहल्ला में शोर मच गइल,
गाँव में हो गइल ताना-तनी,बैक्वर्ड-फारवड के बात भइल,
कोईरी-कुम्हार,अहिर-चमार सब एक भइले,
तिवारी के फाटल कपार,
अब एहनी के उलझावल जाव,
नाहीं त हमनी के चल जाई राज,
मिसिरा जी समझईले रात के,
बबुआन टोली में बात,
तबे एगो लइका उठके जोर से बोललस,
मार ओहनी के लात,
यह प सिगासन सिंह उठले,बोलले खबरदार!
तोहनी के बइठले खाय के आदत कब जाई?
अउर उल्टा बोले हजार,
पंडित जी के हिगरा के बोलले,
उ बांस के कोठी में बांस जनमल बाड़े,तू ही बाड़ भूआ,
फोड़-फाड़ के समाज के ,काहे चाभल चाहताड~ पूआ?

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सुगनी
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 मुसहरवा भईया ,कहां भूलइली तोहर सुगनी?
बाजार~भूलइली,हाट भूलइली,
कि चल गइली शहर के ओर हो,
मुसहरवा भईया,काहे खिआवत रह भउजी के मूस हो,
काहे तू राखत रह,घरवा जे फूस हो?
सुन-सुन हो बबुआ,मोरी दुईगो बतिया,
जमिनिया हड़प लेलस,भूमिहरवा के नतिया,
हमनी फुसलाई उ,दरुइया पिलाइ उ,लिखा लेलस पतिया,
ईहे गलतिया से,भउजी तोहर भगली,
सच रही उ त ,नाम भइल पगली।
बबुआ बाकिर उ,रही असली।

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मेंहदी
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बुआ जी मेंहदी राउर लाल,
बुआ जी.....................
गोरे कलइया पे,कोमल बहिंया पे,
टह-टह लाल,
बुआ जी मेंहदी राउर लाल,
मेंहदी के लाली पे,फूफा जी रिझिहें,
यहीं जे लाली देखी,राउर ननद जी खिजिहें,
बुआ जी,कइसे करब एडजस्ट ,
फुआ जी....
 मेंहदी के लाली ले के,जांत चलइबो,
गेहूं के आंटवा से रोटिया पकइबो,
सासू- मां ,ननदिया के प्यार से खिलइबो,
मान जइहें सब मोरि बात हे!

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पिंजड़ा से छोड़ द
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माई मोरि सुगवा के पिंजड़ा से छोड़ द।
कब से तड़पत बडुए ,मइया भीरी जाएके,
कब से छछनत बडुए इयरीयन से बतियावे के।
माई मेरि...
यही रे पिंजड़वा के लोहे के सिखचवा,
जेई से रगड़ाई टूटी जाला,हरियर पंखवा,
मोर मनवा जइसन,ओकर मनवा।
माई मेरि....
संझिया के बेरिया ,आसमान के पतरिया,
जाइल चाहे सुगवा के मन रे माई।
चाहे जतना खिलइबू मिठाई,
चाहे करबू कतनो ढिठाई,
पर,केहू के पसंद नाही गुलामी के जिनिगिया हो माई।

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बतकही
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हर कोई चाहता कि वोट हमरे में पड़े,
यह से जोगाड़ तकनालॉजी हर कई भिडावत बा,
जे तकनालॉजी से बाहर बा,ओकरा के मुआवत बा,
राम राम कहके अपने चल गइल सत्ता में,
ताहरा के राम से दूर भगावत बा,
जे फिट नइखे बइठत ओकरा सांचा में ,ओकरा नासमझदार बतावत बा,
हेने से ना त होने से आव~,सब कोई के अपने हव~बतावत बा,
सत्ता में पहुंचते गरीबन के अउर गरीब बनावत बा।
तहरा के कहे राजनीति खराब चीज़ ह,अपने पैठ जमावत बा,
ताहरा के लेमनचूस दे,अपने असली माल उडावत बा,
तहर मन के बात न सुनी,आपन मन के बात बतावत बा,
फिर भी तहरा के आपन बतावत बा।

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कैदी
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का कभी सोचल ~ह कि हमनी सब कैदी हईं,
ना नू,सोचबो न करब काहे कि तो हरा के पाठे अईसन पढावल गइल बा,
कि तोहार लगबे ना करि कि तू गुलाम बाड़~।
तहरा से कहल जाई जैकारा लगावे के,तू जयकारा लगावे लगब~।
तोहरा से कहल जाई पूजा करवाके,तू पूजा करवावे लगब~।
तहरा से कहल जाई कि दान करे से संपत्ति बढेला,तू दान करे लगब~।
अउर एक दिन गरीब हो जइब~।

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राम-राम
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लूटा जा बेटा राम-राम,
पिटा जा बेटा राम-राम,
सब कुछ गंवा के भोला जी कहला जा बेटा राम-राम,
विदया गइल,बुधियो गइल,मान-सम्मान संपत्तियो गइल,
तबो भगत बनल फिरे बेटा राम-राम।
घाम में घमौरी भइल,कपड़ा सिये में रतौंधी भइल,
तबो सुबह-शाम दिया देखावस बेटा राम-राम।
हजार बार जोतिष आईल,हजार बार हाथ देखाइल,
तबो भाग न बदलल,घंटी डोलावे बेटा राम-राम।
एक पीढ़ी गइल,दूसरा ,तिसरा सब गइल,
पर,एको न रचना समझसल ,बेटा राम-राम।

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बेंगुची
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शासकवा हमनी समझे बेंगुची रामा,
शासकवा हमनी .........।
हमनिये नियन मुँह-नाक ओकर,हमनिये लेखा ओकर बहिनी,
हमनिये लेखा ढीढ-ढेडार,हमनिये लेखा ओकर भूख पिआस,
पर,काहे समझे हमनी के बेंगुची रामा?
कि समझे नाली के कीड़ा,शासकवा हमनी?
हमनी कमाईं,उ बइठे-बइठे खाई?
उ काहे खाई?
उ काहे कही?
ओकरे काहे इतिहास लिखाई?
शासकवा हमनी काहे समझे बेंगुची?
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कुदाल
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आव~ हमनी कुदाल ले कोड़ दी ओकर राज सिंहासन ।
आव~हमनी खुरपी से छिल दी ओकर मुंह
आव~हमनी रामी से राम नाम सत्य कर दिहीं,
ओकर अभिमान,
आव~हमनी गंड़ासी से बना दिहीं ओकर हजामत।
आव~हमनी हल चला दिहीं ओकर दरबार में,
अउर रोप दीं-धान,गेंहूं,सरसों,
आव~हमनी मिलके यहीं किसानी के औजार से लड़ -भीडल जाव 
ओकर करिंदन से,
अउर नया ,बराबरी के राज ,मेहनत के राज कायम कइल जाव।
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मूल नाम:हरेराम सिंह,
शिक्षा: एम.ए.,पीएच-डी.,
पिता:राम विनय सिंह,माता:तेतरी कुशवंशी,
अबतक बीस पुस्तकें प्रकाशित।
ग्राम+पोस्ट: करुप इंगलिश,भाया:गोड़ारी ,जिला:रोहतास (बिहार),पिन.न.802214.

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