कवि को रोहतासगढ़ के पहाड़ी व मैदानी इलाकों ने बखूबी सींचा

कवि को रोहतासगढ़ के पहाड़ी व मैदानी इलाकों ने बखूबी सींचा!
.....
हिंदी कविता व आलोचना को बखूबी अपनी कलम से सींचा है बिहार के रोहतास जिला के युवा कवि हरेराम सिंह ने.इनकी अबतक बाइस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.ग्रामीण पृष्ठभूमि में पगी ,प्रेम व आक्रोश के बल पर खड़ी इनकी कविताओं में अमावस्या की अंधियारी रात व सुबह की सिंदूरी लाली भी है और कवि-हृदय को विशाल बनाने वाली रोहतासगढ़ के पहाड़ी व मैदानी इलाकों की अनुभूति व साथ.सोन नद के प्रवाह ने निरंतर किसान-मजदूरों के साथ खड़ा रहने की शक्ति प्रदान किये हैं.ऐसे तो इस कवि का जन्म सोन नद के तट पर नासरीगंज में जन्म हुआ था,पर गाँव काराकाट के करुप ईंगलिश हुआ.बचपन नाना-नानी के घर कोनी में बीता.जहाँ कवि गवईं चेतना और दुख से परिचित हुआ.और पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर जुल्म की अंतहीन कई कहानियाँ सुनी.गाँव पर आने के बाद इस इलाके के सीमांत किसानों व मजदूरों पर वर्षों से होते आए अत्याचार ने कवि को विद्रोही मिजाज का बना दिया.'रोहतासगढ़ के पहाड़ी बच्चे 'में कवि ने लिखा-
"एक तीली माचिस की जला सकती है दुनिया।
एक तीली माचिस की जिला सकती है दुनिया।
एक तीली माचिस की बुझा सकती है भूख।"
'हाशिए का चाँद','रात गहरा गई है!','मैं रक्तबीच हूँ','पहाड़ों के बीच से','चाँद के पार आदमी','मुक्ति के गीत' इनके चर्चित काव्य संग्रह है.'ओबीसी साहित्य का दार्शनिक आधार','हिंदी आलोचना का बहुजन दृष्टिकोण','डॉ.ललन प्रसाद सिंह:जीवन और साहित्य','हिंदी आलोचना का प्रगतिशील पक्ष','डॉ.राजेंद्र प्रसाद सिंह की वैचारिकी ,संस्मरण और साक्षात्कार",'आधुनिक हिंदी साहित्य और जनसंवेदनाएँ',और 'किसान जीवन की महागाथा:गोदान और छमाण आठगुंठ' डॉ.सिंह की प्रमुख आलोचना पुस्तकें हैं.साहित्य और सत्ता की टकराहट को समझने में इनकी आलोचना पुस्तकें मददगार हैं.इनका मानना है कि रेणु को आँचलिक कथाकार कहकर उन्हें अंचल तक सिमटना ,उनकी वैश्विक चेतना को नकारने जैसा है .मतलब यह कि रेणु जी के पास देश -दुनिया की अच्छी समझ थी और गाँव में चल रहे रंघर्ष व परिवर्तन को वे वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देख रहे थे.'जनपथ'में छपा लेख'जिंदगी है किरान्ती की,किरान्ती में लुटाए जा'में इनके विचार देखे जा सकते हैं.साथ ही साहित्य में हाशिए के समाज से संबंध रखने वाले लेखकों की रचनाओं पर बेबाक टिप्पणी व उनके महत्त्व  को रेखांकितकर युवा पीढ़ी के आलोचकों में सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है.और इससे हिंदी साहित्य को इस होनहार युवक से इक उम्मीद सी बंध गई है.

Comments

Popular posts from this blog

हरेराम सिंह

साहित्यकार डॉ.हरेराम सिंह