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हरेराम सिंह
युवा कवि हरेराम सिंह का कविता संग्रह ' रात गहरा गई है ! ’ कुछ समय पूर्व मुझे प्रियवर सुमन कुमार सिंह जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ । इसका प्रकाशन 2019 में ही हुआ था लेकिन तब से हरेराम जी से भेंट नहीं हुई है । यह पुस्तक भी वे मेरी अनुपस्थिति में ही सुमन जी को दे गए थे । यह उनका संभवतः पहला ही संग्रह है जिसके कारण इसमें उनके प्रारंभिक दौर की कुल 141 रचनाएं शामिल हैं । इसमें प्रकृति है ,परिवार है , गांव -समाज है , सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश है और कई आदरणीय लोगों के प्रति सम्मान और श्रद्धा से ओतप्रोत भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति है । अपनी एक रचना में उन्होंने मुझे भी सादर स्मरण किया है। -नीरज सिंह
साहित्यकार डॉ.हरेराम सिंह
हरेराम सिंह:भारतीय मूल के हिंदी लेखक हैं।इनका जन्म ३०जनवरी १९८८ को बिहार के रोहतास में काराकाट के करुप ईंगलिश गाँव में एक किसान परिवार में हुआ.ये लाल मोहर सिंह कुशवंशी के पौत्र तथा राम विनय सिंह के पुत्र हैं.इनकी माँ का नाम तेतरी कुशवंशी है.इन्होंने सन् २००९ में नालंदा खुला विश्वविद्यालय से एम.ए तथा २०१५ में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय-आरा से पी-एच.डी की डिग्री प्राप्त की.ये हिंदी कवि व आलोचक है.इन्होंने अबतक एक दर्जन पुस्तकों की रचना की.इनकी चर्चित पुस्तकों नें "ओबीसी साहित्य का दार्शनिक आधार" व "हिंदी आलोचना का जनपक्ष" है.कविता-संग्रहों में "हाशिए का चाँद" व "रात गहरा गई है!" मुख्य है.डॉ.हरेराम सिंह साहित्य का मुख्य लक्ष्य इंसान के मस्तिष्क का रचनात्मक विकास मानते हैं ,जो इंसान को सचमुच इंसान बनाता है.
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