डॉ.हरेराम सिंह की हिन्दी श्री से प्रकाशित पाँच पुस्तकें

1. ओबीसी साहित्य की आलोचना-पद्धति( आलोचना-ग्रंथ)
पृष्ठ संख्या:112
मूल्य:300 रुपये
कवर: पेपरबैक
रचनाकार: डॉ.हरेराम सिंह 
प्रकाशन : हिन्दी श्री
प्रकाशन वर्ष: 2022

"ओबीसी साहित्य की आलोचना-पद्धति"आलोचना ग्रंथ बुद्ध, कबीर, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले , कर्पूरी ठाकुर, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, ललई सिंह यादव आदि की महान् वैचारिक परंपरा से अनुस्युत्  ओबीसी साहित्य की आलोचना-पद्धति के महत्वपूर्ण बिन्दुओं, उसकी विशेषताओं से यह ग्रंथ परिचित कराता है। इस ग्रंथ में कुल 18 अध्याय हैं। कबीर, फणीश्वरनाथ रेणु, मधुकर सिंह, राजेंद्र यादव, दिनेश कुशवाह आदि की रचनाओं पर ओबीसी का गहरा प्रभाव ओबीसी साहित्य की विशेषताओं की ओर इंगित करता है। ओबीसी साहित्य मंडल आयोग और उसकी वैचारिक जरूरत से खुद को मजबूत बनाया है। ओबीसी साहित्य की परंपरा हिन्दी में बहुत पुरानी है। ओबीसी का प्रभाव से हिन्दी साहित्य अछूता नहीं है। ओबीसी साहित्य की आलोचना-पद्धति पर यह ग्रंथ खास रूप से फोकस करता है जिससे गुजरकर ओबीसी साहित्य की पहचान करना और उसकी विशेषताओं की पहचान करना बहुत ही आसान होगा। इस ग्रंथ के संबंध में ओबीसी साहित्य विमर्श के जनक डॉ.राजेंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि " इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक ओबीसी साहित्य विमर्श को लेकर हिन्दी में सदैव याद किया जाएगा। पारंपरिक आलोचना -पद्धति , रस सिद्धांत और साहित्य का सौंदर्य -बोध सभी को इसने प्रश्नबिद्ध किया है। इसकी धमक आलोचना, कहानी, उपन्यास, फिल्म और पत्रकारिता से लेकर काव्य-शास्त्र तथा भाषा विज्ञान के अनुशासनों में हैं। हिन्दी में ओबीसी साहित्य को बढ़ाने में विशेषकर बिहार का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें एक चमकता हुआ नाम डॉ.हरेराम सिंह का है।" डॉ.हरेराम सिंह की यह आलोचना-ग्रंथ ओबीसी साहित्य के लिए कई मायने में अद्वितीय है। 

2.लोकतंत्र में हाशिए के लोग(बहुजन वैचारिकी)
पृष्ठ संख्या:112         
मूल्य:300 रुपये
कवर: पेपरबैक
रचनाकार: डॉ.हरेराम सिंह
प्रकाशन: हिन्दी श्री
प्रकाशन वर्ष: 2022

"लोकतंत्र में हाशिए के लोग" पिछड़े -दलित समाज की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर केंद्रित एक ऐसी पुस्तक है जो बहुजन वैचारिकी को आगे बढ़ाने में काफी मदद करती है। यह पुस्तक पिछड़े समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए उनके समृद्धशाली अतीत से हमें परिचित कराती है साथ ही बुद्ध से लेकर सम्राट अशोक और सम्राट अशोक से लेकर भारत लेनिन जगदेव प्रसाद पर यह पर्याप्त फोकस भी करती है ।आज इस लोकतंत्र में हाशिए की आवाज क्यों और कैसे दब जा रही है?  जबकि हाशिए के लोग उत्पादन में अपेक्षित सहयोगी की भूमिका निभाते रहे हैं। बहुजनों की स्थिति यह है कि उनके श्रम के आज भी, न उचित मूल्य मिलते हैं और इज्जत। निजी शिक्षण संस्थान उनकी पहुँच से काफी दूर हैं। अगर है भी तो वह वहाँ भी उपेक्षित-सा हैं ।यह पुस्तक दलित-पिछड़े-स्त्री आदि के  सम्मान व उनके अधिकार के लिए एकजुटता और बहुजनों की आपसी एकता की माँग करता है। इस पुस्तक में कुल 14 अध्याय है। बहुजन समाज के नायकों पर, उनके भीतर के अंधविश्वास पर, जाति व्यवस्था की कमजोरियों पर नये तरीके से सोचने पर बाध्य करती है। यह पुस्तक में कोरोनो काल में हाशिए के लोगों की स्थिति पर भी काफी गहराई से विचार किया गया है।

3.जामुन का पेड़(कविता-संग्रह)
पृष्ठ संख्या:112         
मूल्य: 300 रुपये
कवर: पेपरबैक
रचनाकार:डॉ.हरेराम सिंह
प्रकाशक: हिन्दी श्री
प्रकाशन वर्ष: 2022

"जामुन का पेड़" कविता-संग्रह में कवि हरेराम सिंह ने आमलोगों के जीवन को आधार बना कई मार्मिक व हृदयस्पर्शी कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविताओं को केदारनाथ सिंह की कविताओं से तुलना की जा सकती है। इस काव्य संग्रह में 'गाँव बदल रहा है', 'धरती बेटी है, दान में मत दो!',' चैत मास',' जातिवाद के संरक्षक',' जामुन का पेड़',' 'इस बार शासक खुश थे',' जागो, जागो गाँव वालों',' 'लोकतंत्र बढ़े जा रहा है','ससुरैती लड़कियाँ','खेत और नदी ' जैसी कुल 70 कविताएँ इसमें संकलित हैं। कवि भोलानाथ कुशवाहा ने वैचारिक प्रौढता के तौर पर हरेराम सिंह की इन कविताओं की तुलना कबीर से की है। हरेराम सिंह ने कविता में गाँव और आमजन की पीड़ा को अपनी पीड़ा बना कर कई बार रोते हैं और कई बार शासकों से उनके खातिर लड़ते हैं। इनकी पॉलिटिकल साउंड वाली कविताएँ लोकतंत्र के भीतर मुखौटा ओढ़े लोगों को बेपर्द करने से नहीं चूकतीं।

4 .जड़ से काटी गई स्त्री (कविता-संग्रह)

पृष्ठ संख्या: 112      
मूल्य : 300 रुपये
कवर : पेपरबैक
रचनाकार : डॉ.हरेराम सिंह
प्रकाशन : हिन्दी श्री
प्रकाशन वर्ष : 2023

" जड़ से काटी गई स्त्री" आधुनिक भावबोध से उपजी हुई कुल 76 कविताओं का संग्रह है। यह कविता-संग्रह स्री जीवन के संघर्ष, उनकी पीड़ा और उनकी उपादेयता को पूरी गंभीरता के साथ उभारने में सक्षम है। 'भूखे पेट सोती हैं जवान बेटियाँ','लड़कियाँ',' बिटिया रोअत बाड़ी', 'जड़ से काटी गई स्री' कुछ इसी तरह की कविताएँ हैं। ऐसे हरेराम सिंह मूलत गाँव के कवि हैं। स्वाभावत: इनकी कविताएँ गाँव को अपने में समेटना नहीं भूलती। चंद्रेश्वर ने कहा है कि हरेराम सिंह एक ऐसे कवि हैं जिनके कहन में गँवई किसान का भोलापन है तो चतुरायी भी शामिल है। " जड़ से काटी गई स्त्री" झोपड़ी में पलती आशा से लेकर बड़े लोगों की नरभक्षता को भी सामने लाती है। बचपन और जवानी के कई खट्टे-मिट्ठे अनुभव, प्रेम और आँसू के बीच के तिलिस्म, चाँद और तारे की घनिभूत कहानी तो इनकी कविताओं में ही ; मेला और खलिहान -सा साधारण दिखने वाले विषयवस्तु को भी कविता के लिए विशिष्ट विषयवस्तु बना देना इस कविता संग्रह की विशेषता है। स्त्री विमर्ष, किसान विमर्ष और बहुजन विमर्ष को तीखे रूपों में यह कविता-संग्रह सामने लाकर वर्तमान से रू-ब-रू भी कराता है।

5. हिन्दी आलोचना : एक सम्यक् दृष्टि (आलोचना-ग्रंथ)
पृष्ठ संख्या: 136     
मूल्य : 300 रुपये
कवर : पेपर बैक
आलोचक : डॉ.हरेराम सिंह
प्रकाशन : हिन्दी श्री
प्रकाशन वर्ष : 2023

" हिन्दी आलोचना : एक सम्यक् दृष्टि" डॉ.हरेराम सिंह की एक महत्वपूर्ण आलोचना कृति है। महत्वपूर्ण इसलिए कि इस आलोचना पुस्तक में हिन्दी के कई विशिष्ट आलोचक जैसे- आचार्य रामचंद्र शुक्ल, राम विलास शर्मा, नामवर सिंह, मैनेजर पाण्डेय,राजेंद्र प्रसाद सिंह,  उपन्यासकारों में फकीर मोहन सेनापति, प्रेमचंद,  जयशंकर प्रसाद, रेणु, आचार्य चतुरसेन, उषा प्रियंबदा,  कहानीकारों में उदय प्रकाश, रूपनारायण सोनकर, सीडी सिंह, ललन प्रसाद सिंह, , कवियों में राम निहाल गुंजन, कुमार बिन्दु और राकेश कुमार दिवाकर आदि की रचनाओं पर आलोचना की दृष्टि से न सिर्फ सार्थक टिप्पणी की गई है बल्कि सार्थक हस्तक्षेप भी किया गया है और जगह-जगह सम्यक् दृष्टि से 'गीता महाबोध' जैसी रचनाओं का मूल्यांकन करते हुए नई अवधारणा विकसित करने की सफल कोशिश भी हुई है। ओबीसी साहित्य विमर्ष और कविता में किसानों की उपस्थिति को अलग से दर्ज किया गया है। 
यह आलोचना पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों के साथ हिन्दी के सामान्य और गंभीर पाठकों को एक तरह से हिन्दी रचना और आलोचना के परिदृष्य से परिचय कराता है। डॉ.हरेराम सिंह एक गभीर आलोचक हैं। यह आलोचना पुस्तक इसका प्रमाण है। इस आलोचना पुस्तक में रोहतास की साहित्यिक विरासत के साथ हिन्दी नाटक के इतिहास पर भी विहंगम दृष्टि डालती है जहाँ दया प्रकाश सिन्हा जैसे नाटककार की धज्जियाँ उड़ गई हैं।
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पुस्तक के लिए संपर्क करें-9530696004 (हिन्दी श्री)

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