हाल-ए-कुशवाह

कुशवाहा समाज राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश का वंशज है, इसीलिए इन्हें कुशवंशी भी कहते हैं। राम और बुद्ध दोनों इक्ष्वाकु वंश के थे। एक समय में अफ्रीका भी कुश के अधिन था, ऐसा हिन्दी के प्रख्यात लेखक आचार्य चतुरसेन ने लिखा है। इनका इतिहास ज्ञान राहुल सांकृत्यायन से भी ज्यादा और विकसित था। ' बोल्गा से गंगा' ब्राह्मणों की बड़वरगी में लिखा गया उपन्यास है। राहुल जी को राम से बैर थी, चूँकि वे ब्राह्मण थे। राम आज भी और कल भी समाज के एक आदर्श थे। उनके बिना भारत अधूरा है।
कुशवाहा को प्राचीन जाति है, कोइरी ब्रीटिश काल के पूर्व शायद ही कोई कहता था, सब कुशवंशी कहते थे। राजस्थान में डांगी या डड़ोत कछवाहा बिहार में दांगी कहे गए, सुकियार शाक्य का अपभ्रंष है। बुद्ध राम के ही वंशज थे। कुशीनगर ( कुश द्वारा बसाई नगरी) को उन्होंने अपने पूर्वजों की नगरी बतायी है। 
कई विदेशी जातियों और अंबेदकर धर्म(नव बौद्ध) मानने वाले, जो क्रमश: शक-हूड के वंशज हैं और महार-चमार जाति के हैं, कुशवाहा में 'हीन भावना' भरने के लिए उन्हें राम के विरुद्ध खड़ा कर रहे हैं, ताकि कुशवाहा की स्थिति महार-चमार से भी निम्न हो जाए, इसके लिए वे कुशवाहा के लडके को 'कोइरी' और 'शूद्र' कहने पर बल दे रहे हैं।
लक्ष्मण यादव नाम में यादव जो लगा है वह यदु से बना है। माननीय मुख्यमंत्री लालू प्रसाद जी या अखिलेश जी को यह नहीं समझाना लोकतंत्र के विरुद्ध है कि वे कृष्ण को मानना बंद करें या न माने। क्योंकि वे कृष्ण के ही वंशज हैं। 
कुशवाहा को कुशवाहा के खिलाफ खड़ा करने के लिए कई बामसेफी उनसे ही राम का विरोध करवाता है ताकि कुशवाहा समाज की स्थिति बाद ' चमार-महार ' की सामाजिक स्थिति की तरह निम्न हो जाए।
आज कुशवाहा की जो हाल है उसे देखकर आप सिर्फ रो सकते हैं। मायावती जी ने बाबू सिंह कुशवाह को ठगा। नीतीश जी उपेंद्र कुशवाहा को। तेजस्वी जी भी कुशवाहा को आगे बढने नहीं देखना चाहते, कुशवाहा जी के उपमुख्यमंत्री के सवाल पर चुप क्यों रहते!  'ओबीसी' के नाम पर राजनीतिक लाभ अहीर जन के सिवा कौन  भोग रहे हैं? बहुजन समाज पार्टी में कुशवाहा की औकात झोला ढोने वाले की रही। भीम आर्मी, कुशवाहा जाति के नवयुवकों में 'शूद्रवाद' का प्रचार कर रहा है ताकि कुशवाहा का चमारीकरण हो जाए।
अम्बेडकर जी से जितना फायदा अनुसूचित जाति व  चमार-महार को है उतना कुशवाहा या यादव या कुर्मी को है? कुशवाहा-कोइरी के संबंध में अम्बेदकर कुछ नहीं जानते थे। अम्बेदकर के अधिकतर अनुवायी चमार-महार हैं, तो इसके पीछे कारण है। अगर अम्बेदकर अहीर या कुशवाहा या ब्राह्मण रहते तो क्या महार-चमार उन्हें पूजते? कदापि नहीं । फिर भी अम्बेदकर देश रत्न हैं।
इसलिए एक ओर जहाँ ब्राह्मण जातिवादी हैं वहीं दूसरी तरफ अंबेडकर वादी महार-चमार और लक्ष्मण अहीर भी जातिवादी है।
कुशवाहा को ब्राह्मण और बामसेफी अम्बेकरवाद दोनों से बचने की जरूरत है।
जगदेव प्रसाद को हत्या की मंजिल तय करने में एक दलित का हाथ भी था। वह दलित टाइटल 'मौर्य' रखता था। कुशवाहा को भ्रमाने के लिए कई महार ने टाइटल मौर्य रख लिया।
मास्टर साहब कुशवाहा को मुसहरों ने हत्या कर दिया और चंद्रशेखर को शहाबुद्दीन या उसके गुर्गे ने क्यों हत्या कर दी?
दोस्तो! कुछ लोगों का कहना है कि अम्बेदकर के ही कारण जिस लोक सभा क्षेत्र में कुशवाहा की बहुलता थी उसे अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित कर दिया गया ताकि कुशवाहा की राजनीति समाप्त हो जाए। राजनीति में ब्राह्मण और चमार की दोस्ती पूर्व से ही देखी जा रही है। उ.प्र. इसका उदाहरण है। इसलिए  कुशवाहा अब सतर्क हैं। 

 *सुमन कुशवाह*

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