Posts

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन -पटना(दिनांक-02-04-2022)

Image
(डॉ.अनिल सुलभ जी के संग) (जनार्दन मिश्र जी -आरा जी के संग) डॉ.ललन प्रसाद सिंह व ओम प्रकाश जी के साथ (डॉ.सीमा विजय वर्गीज जी के संग) (हिंदी साहित्य सम्मेलन में शिरकत करते हुए डॉ.हरेराम सिंह) (हिंदी साहित्य सम्मेलन की कुछ झलकियाँ)

मेरे राम का चरित्र

राम का पूरा चरित्र पढ़ जाइए वे 'क्रूर' व 'आक्रामक'नजर नहीं आएंगे न ही वे 'राजपूत'नजर आएंगे ;वे क्षत्रिय नजर आएंगे.वे सौम्य नजर आएंगे,अन्याय से लड़ते नजर आएंगे ;आज के 'कुशवाहों'सा सीधा नजर आएंगे;गलती का प्रतिकार करते नजर आएँगे.आखिर ऐसा क्यों?उनका व उनके भाईयों का 'रामायण'व'रामचरितमानस'पढने से जो मानसपटल पर जो छवि उभरती है ढील-डौल की वह भी 'राजपूतों'की तरह भयानक नहीं है और न ही फूलन देवी व हाथरस की लडकी मनीषा बाल्मीकि से बलात्कार करने वाले 'राजपूतों'की तरह है.आखिर ऐसा क्या क्यों है?इसे समझने के लिए इतिहास में जाना होगा,वर्ण व्यवस्था को समझना होगा.'राजपूत'वर्ण नहीं है.वह जाति है और यह जाति 7वीं शताब्दी के बाद की है.यह जाति आक्रमण कर भारत को जीतना चाहा.पर भारत के पूराने राजवाडे व क्षत्रिय इन्हें भीतर प्रवेश नहीं करने दिए .उन्हें सीमा तक सीमिता दिए.ऐसा विचार डॉ.राम प्रकाश कुशवाहा का है.इतिहासकार श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि विभिन्न राजाओं जो भिन्न कुल व वंश के थे वे 'राजपूत'खुद को घोषित कर दिए.यहां तक कि '...

तुम कहाँ हो?

Image

कर्नल टॉड और कुशवाहा

Image
पृ.सं.567 पर कछवाहा या कुशवा लिखा है।यह कुशवा(हा) है। 'हा' मिसप्रिंट है। कुशवाहा ........ ■हरेराम सिंह... कुशवाहा जाति कुश के वंशज है। उरावों से इसका संबंध नहीं है। अयोध्या से रोहतासगढ और रोहतासगढ से नरवर गई। वहाँ जाने पर कुशवंशी/ कुशवाहा ही कछवाहा हो गए। इसकी दूसरी शाखा लाहर के पास कोहरी या कोहारी दर्रा के पास बस गई। कुछ लोग कोहारी से कोइरी की उत्पत्ति भी मानते हैं। कुशवाहा किसी बानरी सेना से नहीं सीधे रामचंद्र से बनी है यानी उनके ज्येष्ठपुत्र कुश से। किसी इतिहासकार सोमवंशी ने भी 'क्षत्रियार्णव ' में ऐसा ही लिखा है। ऐसे विभिन्न जगहों पर कर्नल टॉड कुशवाहा शब्द का प्रयोग किये हैं और कछवाहा भी। रोहतासगढ़ को बनाने का श्रेय भी कुशवंशी/कुशवाहों को ही देते हैं। अलग-अलग राय हो सकते हैं पर कुशवाहो का नस्ल देखे तो वह आर्य प्रतीत होगा अतएव उन्हें उराँव से नहीं जोड़ा जा सकता। जबकि यह भी सच है कि आमेर को ...

हरेराम सिंह की कविताएँ

Image
हरेराम सिंह की कविताएँ 1. छल! मैं तुम्हें जानता था  कि छल में माहिर हो जब बीएचयू में आया था कई छात्र जो चेहरे पढ़ नहीं पाते समझते थे तुम्हें देवता जबकि सच है कि तुम शुरू से थे दलित-पिछड़ों का विरोधी इनका हक़खाऊ! और अपना चेहरा दिखा ही दिया! तुमलोग कबकत खून पिओगे जोकों की तरह सूअर तो गू खाता है और गंदगी साफ़ करता है चलो एक तो बड़ा काम करता है! ' नॉट फाउंड सुटेबल' क्या होता है रे पतित बता-बता यही तुम्हारी योग्यता है रे प्रतिभा-हत्यारे! बहुजन विरोधी चिकनी बोली बचन वाले विषैले सर्प तुम किस जंगल से आया? न जाने कितने ऐसे विषधर  विश्वविद्यालयों में निछुका विचर रहे हैं रह-रह डँस रहे है गरीब आदिवासी छात्र-छात्राओं को एक अंक देकर इंटरव्यू में उनके मूत्र से अपनी संतानों को अमर बना रहे हैं? यह कबतक चलेगा रे 'गऊ' हत्यारे क्या तुम्हें पता नहीं कि सीधी-साधी जनता  गरीबी और जहालत की मार से बेहाल है और हजारों वर्षों से इन्हें तुमलोग दूहते आए? तुम्हें शर्म नहीं आई 'पंत-संस्थान'के तथाकथित रखवाले कि पिछड़े वर्ग के छौने राष्ट्र की संपत्ति हैं? इनकी आशाओं को मारना देश को मारने के समान ...

अंश सिंह का पत्र प्रधानमंत्री जी के नाम

Image

मेरे शहर की रवायत

मेरे शहर की रवायत ....... मेरा शहर कभी ऊँघता नहीं जगता रहता है रात भर या नींद में ही स्वप्न देखता है मधुर- मधुर  कुशवाहों के रोहतासगढ़ की तरह  सर ऊँचाकर अपने शहरवासियों को संदेश देता है जीवों शान से अपनी भुजाओं पर विश्वास करों इन कुशवाहों की तरह मेरा शहर खुशनसीब है कि यहाँ सभी रंग के फूल सभी दिशाओं में खिलते हैं सोनवागढ़ के उस पार भी सोन नद के पानी से सींचकर निहाल हो जाता है जब बारिश की बूँदे काव नदी से होकर गुजरती हैं मछलियों के हौसले देखते बनते हैं 'महतो' किसानों की दँतारियाँ अँग्रेजों व जमींदारों के गर्दन पर गिरने से नहीं चूकती वजह; 'महतो' में ताब है वह 'राय' में कहाँ? ऐसा मानते हैं लोग और अदब के साथ महतो जी को सलाम करते हैं! मेरा शहर दूर है जरूर राजधानी से पर; आशीर्वाद पाया है ऐसा कि कोई भूखे मर नहीं सकता और कोई किसी का हक़ मार नहीं सकता जो मारेगा वह टिकेगा नहीं क्योंकि यहाँ का हर बच्चा न्याय निमित्त लड़ना जानता है अपने और ग़ैरों की पहचान आँखों में झाँकर कर लेता है प्यार के आगे झुकना उसकी संस्कृति का हिस्सा है और जो स्त्रियों की इज्जत लूटकर बड़े बनते हैं उनक...