सुमन कुशवाह

अर्थशास्त्री कीन्स के बारे में...

..............सुमन कुशवाह.
कीन्स व्यष्टि -अर्थशास्त्र के जनक माने जाते हैं.इनका जन्म 5जून 1883 ई.को कैंम्ब्रिज ,इंग्लैंड में हुआ. वे जोन मेनार्ड केन्स मार्शल के शिष्य और king's college कैंब्रीज के प्रशासक एवं   अर्थशास्त्री रह चुके जॉन नेविल कींस के पुत्र थे.उनकी माँ फ्लोरेंस एडेंस किंग्स कॉलेज की प्रथम स्नातक महिला थी.वह साल 1902 का था.अपने जमाने के मशहूर कला प्रेमियों से भी उनकी दोस्ती थी जिनमें वर्जीनिया वुल्फ भी एक थीं.हालांकि इनका बचपन अभाव में तो नहीं गुजरा पर संघर्ष से कभी पीछे न रहे.इन्होंने सन् 1905 में बी.ए. तथा 1909 में एम.ए.की शिक्षा प्राप्त की.युवावस्था में कुछ के साथ इनके समलैंगिक रिश्ते भी रहे.जिसका अंत प्राय:1985 में रूसी नर्तक लिडा लोपोकोव से शादी के बाद हो गया.1920के दौरान कीन्स ने बेरोजगारी,धन और कीमत के अंतर्संबंधों को लेकर जो सूत्र दिए वे अर्थशास्त्र में काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.'धन की संधि'(1930)इनकी काफी चर्चित पुस्तक रही.इन्हें 1942 ई.में वंशानुगत बडप्पन का खिताब भी मिला.उनका मानना है कि मजदूरी में कमी से बेरोजगारी की भयावहकता प्रभावित नहीं होगी.इनके रोजगार,ब्याज और धन के सिद्धांत काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.'भारतीय मुद्रा और वित्त'(1913),'जर्मनी में युद्ध का अर्थशास्त्र'(1915),'शांति का अर्थशास्त्र'(1919),'संभाव्यता पर एक ग्रंथ'(1921),मुद्रा की मुद्रास्फीति एक कराधान की विधि के रूप में'(1922) ,The End of Laissez-Faire'(1926),A Treatise on mony'(1930),The means to prosperity'(1933),The General Theory of Employment,Interest and mony'(1936),'How to pay for the war'(1940) इनके ग्रंथों में से खास हैं.अवसाद की वजह 1937 में इन्हें दिल के दौरे से गुजरना पड़ा.और इसी कारण 21 अप्रैल 1946 को Firle ,इंग्लैंड में इनका देहावसान हो गया.

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कीन्स के आर्थिक विचार
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अधिकांश मनुष्यों की यह प्रवृति रही है कि अपनी आय वृद्धि के अनुपात में उपभोग प्रवृति को विकसित नहीं कर पाते जिस कारण बेरोजगारी की स्थिति सदैव बनी रहती है और मनुष्य का जीवन स्तर निम्न बना रहता है.अगर आय बढने पर उपभोग व्यय पर वृद्धि हो तो रोजगार विकसित होगा.जिससे कई लोगों को रोजगार मिलेगा,परिवार लाभान्वित होगा.इससे जीवन स्तर में सुधार होगा.और वह भी अपनी आय से कुछ बचत कर लेगा.आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोक्ताओं की अधिकाधिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती जाती है और एक संतुलन बना रहता है.प्रत्येक व्यक्ति अपनी आय का अतिरिक्त वृद्धि को व्यय और बचत के बीच विभाजित करता है.प्रारंभ में आय की न्यूनता के कारण कोई व्यक्ति बचत करने में असमर्थ रहता है किंतु कालांतर में आय बढने पर भावी कठिनाइयों का सामना करने के लिए वह अवश्य ही अपनी आय का कुछ भाग बचत करता है.जब आय बढती है तो निश्चित ही मनुष्य की व्यय एवं बचत की राशियों में वृद्धि होती है,जिससे उसका भी उपभोक्ता व्यय बढता जाता है.दूसरी तरफ वैसे मनुष्य जो निर्धन एवं पिछडे हुए हैं उनका बचत एवं आय वृद्धि करना संभव नहीं हो पाता है.ऐसे व्यक्ति की बहुत सी आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती जिस कारण वे असंतुष्ट व अवसाद की स्थिति में रहते हैं.जब उनकी आय बढती है तो वे तत्काल अपनी असंतुष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में लग जाते हैं.इसलिए बचत नहीं कर पाते.आय में वृद्धि कर पाना भी इतना आसान नहीं होता.जिनकी आय अच्छी है वे भी अगर पूंजी को संग्रहीत कर रखें,उसे उपभोक्ता वस्तुओं पर खर्च  न करें तो रोजगार सृजन संभव नहीं होगा और गरीबों-पिछड़ों की आय बढने का सवाल ही नहीं उठता.वैसे उपभोग केवल आय पर निर्भर नहीं करता -आय का वितरण,कीमत स्तर,जनसंख्या वृद्धि की दर,व्यक्तियों की आदतें,फैशन और मानसिक प्रवृति आदि पर भी वह निर्भर करता है.कीन्स के मनोवैज्ञानिक उपभोक्ता वस्तु के सिद्धांत के अनुसार उपभोग व्यय मुख्यत:व्यक्ति की आय पर निर्भर नहीं करता बल्कि उसकी रुचि व मानसिक प्रवृति पर भी निर्भर करता है.किसी समाज में जब व्यय करने की प्रवृति घटेगी तो बेरोजगारी पैदा होगी और बेरोजगारी अराजकता को जन्म देती है.पूँजीवादी समाज का एक सामान्य लक्षण यह है कि हर कोई अधिक से अधिक बचत करना चाहता है,उसके भीतर यह प्रवृति पूंजीवाद की वजह पैदा होती है.किंतु वह अपनी स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाता और शारीरिक व मानसिक तौर पर खुद का नुकसान अधिक बचत के  सिद्धांत से ग्रस्त होकर करता है.इससे पूरा समाज व राष्ट्र आर्थिक अराजकता के दौर में पहुँच जाता है.और जिनका सत्ता पर कंट्रोल रहता है वे तथा पूँजीपति आवश्यकता से अधिक बचन करते हैं जिसका परिणाम होता है देश गरीब बना रहता है.कीन्स ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान आर्थिक क्षति को कम करने व आर्थिक संतुलन बरकरार रखने के लिए सैनिकों के वेतन की कटौती पर जोर दिया था किंतु मजदूरी कम कर आर्थिक विकास नहीं किया जा सकता,यह उनका मानना था.आय और व्यय के संतुलन से ही आर्थिक संतुलन या समाज में संतुलन लाया जा सकता है.ऐसा कीन्स के आर्थिक विचार के आधार पर कहा जा सकता है.पर,उनका आर्थिक सिद्धांत जितना विकसित देशों पर लागू होता है उतना अर्धविकसित या अल्पविसित देशों पर नहीं.कारण कि आय और व्यय की क्षमता बहुत ही सीमित वर्ग या व्यक्ति की जागीर-सी बन गई हैं.जिस कारण उसका फैलाव सर्वांगिण नहीं हो पाता है और गरीबी लोगों के बीच से जाने का नाम नहीं लेती.

संपर्क:ग्राम+पोस्ट:करुप ईंगलिश,भाया:गोड़ारी,जिला:रोहतास(बिहार),पिन.न.802214

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