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विनीता परमार की कविताएँ

विनीता परमार की कविताओं में स्त्री चेतना का विपुल विस्तार ............डॉ.हरेराम सिंह... विनीता परमार के पास कहने को तो अभी बहुत सफर तय करने हैं पर इनका सफरनामा इतना छोटा भी नहीं कि आप इन्हें छोड़कर चले जाएँ.अगर आप आलोचक हैं और इनकी कविताओं को पढते हैं या छुते हैं तो आप इन्हें 'बाय'कह नहीं जा सकते.थोड़ा ठहरेंगे,हालचाल पूछेंगे ,और उस दौरान आप उनकी कविताओं में उतरते चले जाएँगे कि और उनकी कविताएँ अपनी व्यवहार कुशलता,आत्मीयता, तार्किकता और संवेदना द्वारा आपको जीत लेंगी और आप उनके हो जाएँगे.बोधि प्रकाशन -जयपुर से "दूब से मरहम''काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है.''खनक आखर की''साझा काव्य संग्रह में भी इनकी कविताएँ संकलित हैं और "धप्पा'(संस्मरण संग्रह)का संपादन भी कर चुकी हैं और आजकल,बया,कादंबिनी,कथादेश,मधुमति,प्रकृति दर्शन ,निकट,सृजन सरोकार,अहा जिंदगी,समहुत आदि में भी लगातार छपती रही हैं और पेशे से  केंद्रीय विद्यालय ,पतरातू(झारखंड)में शिक्षिका हैं और पर्यावरण विज्ञान में ये शोध कार्य भी कर चुकी हैं.इनके पूरे आत्म चरित से आप सहज ही अनुमान लगा सकते है...

डॉ.हरेराम सिंह को मिला 'अशोक रत्न 2021'सम्मान.

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कुशवाहा क्षत्रिय की उपजाति समूह और उनके वैवाहिक संबंध

कुशवाहा क्षत्रिय की उप-जाति समूह और उनके वैवाहिक -संबंध ............... 1.कुशवंशी क्षत्रिय  श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज् कुशवंशी क्षत्रिय कहलाए.यह वर्तमान में कुशवाहा के नाम से जाति के रूप में जाने जाते हैं.बिहार,उ.प्र,म.प्र,राजस्थान,दिल्ली व कश्मीर में यह मुख्य रूप से बसे मिलते हैं.यह अपने को कुश का वंशज् मानते हैं.इन्हें कछवाहा व काछी भी कहा जाता है.इनका मुख्य ग्रंथ रामायण है. 2.शाक्यवंशी क्षत्रिय  यह लोग स्वयं को बुद्ध का वंशज् मानते हैं.यह अपने को क्षत्रिय से ज्यादा खत्तिय कहलाना पसंद करते हैं.यह लोग त्रिपिटक को अपना मुख्य ग्रंथ मानते हैं.उ.प्र,उत्तराखंड व देहली में यह मुख्य रूप से पाए जाते हैं.यह स्थानीय रूप में शाक्यसेनिया भी कहलाते हैं. 3.मौर्यवंशी क्षत्रिय  यह लोग चंद्रगुप्त मौर्य,अशोक व चित्रांगदा मौर्य के वंशज् खुद को मानते हैं.इनका बसाव मुख्यत: उत्तर प्रदेश व राज्य स्थान है.ये अशोक के धम्मनीति पर ज्यादा बल देते हैं. 4.कोईरी क्षत्रिय  कुशवंशियों की यह शाखा अपने को राम का वंशज मानती है.यह शाखा का यह भी मानती है कि इनके पूर्वज 'रामग्राम'गाँव बसाए थे...

कुशवाहा :एक चिंतन

चिंतन --------- कुशवाहा समाज ने जाति व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया.यह कदम तो बहुत प्रोग्रेसिव था;पर दूसरे समाज के लोगों ने सोचा कि इसकी(कुशवाहा) अपनी कोई जाति नहीं  रही;क्योंकि जो इसका विरोधी है उसकी जाति क्या?मतलब यह कि यह सिर्फ सिंगल होता है इसका कोई समूह नहीं होता.यह गाजर मूली है और न जाने किस पगलैट ने इसे सब्जी बोने वाले के रूप में प्रचारित कर दिया.इसके परिणाम बहुत बूरे हुए. हमारी राष्ट्रीय आईडेंटिटी 'कुशवाहा'कमजोर पड गई और हम कई शाखाओं  में गुम हो गए या आपस में लडते रहे.हमें सबको स्वीकारकर चलना भी नहीं आया.हमने ही अपना अस्तित्व दांव पर लगा,पूरे समाज को सुधारने का ठेका ले लिया.हुआ यह कि हम समाज से कट गए और इसका राजनीतिक लाभ दूसरों को मिला.यहाँ तक कि राजनीति में जाटव(चमार)भी हम पर सवार होकर हमसे आगे हो गए.और यादव कृष्ण को पूजते हुए अपने को सत्ता के केंद्र में लाकर खडा कर दिए.हम कुश से अलग हो गए,ईश्वर विरोधी बनकर वोट से दूर हो गए और लगातार हमपर जुल्म होते रहे;वजह लोगों ने सोचा कि जो जाति विरोधी है वह खुद की जाति पर भला कैसे विश्वास करेगा?बात भी सही थी.कुर्मी भी हमसे आगे रहे....

when you prosper

हरेराम सिंह गंवई चेतना के समकालीन लेखक , कवि हैं। इनकी अबतक पन्द्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो चर्चा में हैं। इनकी एक कविता ' जब तुम बढ़ोगे ' का मेरे द्वारा अंग्रज़ी में किया गया अनुवाद प्रस्तुत है - जब तुम बढोगे जब तुम बढ़ोगे  तुम्हारे शत्रुओं की संख्या लगातार बढ़ेगी जब तुम बढ़ोगे  तुम्हारी शिकायतें हर तरफ़ सुनाई देंगी जब तुम बढ़ोगे तुमसे जलने वाले और जलेंगे जब तुम बढ़ोगे तुम्हारे हर कदम पर बाधा होगी जब तुम बढ़ोगे तुम्हारी हत्या की साजिश रची जाएगी जब तुम बढ़ोगे तो यह कहा जाएगा कि यह दुश्चरित्र है जब तुम बढ़ोगे तुम्हारे अपने तुमसे बोलना छोड़ देंगे जब तुम बढ़ोगे यह कहा जाएगा कि यह बेईमान है जब तुम बढ़ोगे तुमसे सच्चा प्रेम बहुत कम करेंगे पर ,यह भी सच है जब तुम बढ़ोगे  पहले से ज्यादा विनम्र होगे जब तुम बढ़ोगे  तुम अधिकतर से प्रेम करोगे जब तुम बढ़ोगे हर समय कुछ देना चाहोगे पर,यह भी सच है जब तुम बढ़ोगे तुम्हारे प्रेम,तुम्हारी विनम्रता, तुम्हारी देयता को  सभी इंकार करेंगे      कवि, हरेराम सिंह     ......   अंग्रेज़ी अनुवाद-   ...

कवि को रोहतासगढ़ के पहाड़ी व मैदानी इलाकों ने बखूबी सींचा

कवि को रोहतासगढ़ के पहाड़ी व मैदानी इलाकों ने बखूबी सींचा! ..... हिंदी कविता व आलोचना को बखूबी अपनी कलम से सींचा है बिहार के रोहतास जिला के युवा कवि हरेराम सिंह ने.इनकी अबतक बाइस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.ग्रामीण पृष्ठभूमि में पगी ,प्रेम व आक्रोश के बल पर खड़ी इनकी कविताओं में अमावस्या की अंधियारी रात व सुबह की सिंदूरी लाली भी है और कवि-हृदय को विशाल बनाने वाली रोहतासगढ़ के पहाड़ी व मैदानी इलाकों की अनुभूति व साथ.सोन नद के प्रवाह ने निरंतर किसान-मजदूरों के साथ खड़ा रहने की शक्ति प्रदान किये हैं.ऐसे तो इस कवि का जन्म सोन नद के तट पर नासरीगंज में जन्म हुआ था,पर गाँव काराकाट के करुप ईंगलिश हुआ.बचपन नाना-नानी के घर कोनी में बीता.जहाँ कवि गवईं चेतना और दुख से परिचित हुआ.और पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर जुल्म की अंतहीन कई कहानियाँ सुनी.गाँव पर आने के बाद इस इलाके के सीमांत किसानों व मजदूरों पर वर्षों से होते आए अत्याचार ने कवि को विद्रोही मिजाज का बना दिया.'रोहतासगढ़ के पहाड़ी बच्चे 'में कवि ने लिखा- "एक तीली माचिस की जला सकती है दुनिया। एक तीली माचिस की जिला सकती है दुनिया। ए...

कोविड 19

कोविड-१९ का जलवा बीच बिलखती जिंदगी ............हरे राम सिंह.... । तुम आई हो मौसमे-बहार बनके। किसी के अपने यार बनके। तो किसी की गले का फाँस बनके। तुम्हें क्या कहा जाए- आफत,विपदा,महामारी कि प्राणहारी? कि राजनीति की सजनी? समझ नहीं आ रहा! अगर आ भी रहा है तो चुप रहना है,न्यूज रूम से बाहर नहीं निकलना है। नहीं तो कोई पागल दिवाना,तुझे देख लेगा, और हो सकता है बलात्कार कर देगा। हे,कोविड़-१९ ,मेरी जान ,मेरी माशूका! तुम कितनी प्यारी हो,जो मेरी सहयोग करती हो। कई तरह के आरोपों से वरी करती हो। तुम्हारे एहसान कभी नहीं भूलूंगा। कमल की पंखुड़ियों पर बिठाकर, तेरा यशोगान करूँगा । ये जो जिंदगियाँ बिलख रही हैं उसकी छोड़ो, आओ,शयनगार में शयन करें, बिलखना उनका काम है! रोना-धोना राँड़ की तरह। हे,मेरी सहचरी मैं सत्ता हूँ। तुम जितना' चबाती'हो,उतनी ही खूबसूरत लगती हो और तुम्हारे गाल पूप जैसे मुलायम । इसलिए तुम ऐसी ही सदा बनी रहो। और तेरा यह रूप मुझे बहुत भाता है! +++हरेराम सिंह+++